‘दूसरी पत्नी’ को अनुकम्पा नियुक्ति का अधिकार?
भारत के हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक व्यक्ति एक ही शादी कर सकता है। अर्थात एक ही पत्नी के साथ निर्वाह कर सकता है और कोई दूसरी पत्नी का प्रश्न ही नहीं रहता। यदि पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह करता है तो वह एक अपराध माना जाता है जिसे इंडियन पेनल कोड की धारा ४९४ तथा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा १७ के तहत उसे सात साल की कड़ी सज़ा हो सकती है। दूसरे अर्थों में एक पत्नी के रहते दूसरी पत्नी का वजूद ही गैरकानूनी और अपराधिक माना जाएगा।
अब कानून की लडाई में - कर्नाटक सरकार बनाम लक्षमी में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ती श्री मार्कण्डेय काटजू तथा न्यायमूर्ति श्री आर. एम. लोढा़ ने जो निर्णय सुनाया उससे लगता है कि कोई भी न केवल दो विवाह कर सकता है बल्कि दूसरी पत्नी का कानूनन हक भी बनता है कि वह सरकारी नौकरी कर रहे पति की मृत्यु के पश्चात उसके स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति की हक़दार भी होगी!!!!
उच्चतम न्यायालय का मानना है कि " जब दोनों पत्नी राज़ी हो गई हैं तो आप आपत्ति करने वाले कौन होते हैं! यदि एक पत्नी अनुकम्पा नियुक्ति चाहती है और दूसरी मुआवज़ा सम्बंधी लाभ, तो आपको क्या परेशानी है?"
इस पूरे मुद्दे पर यदि गौर किया जाय तो लगता है कि दो विवाह करना अवैध नहीं है। यह भी कि पहली पत्नी सदा ही वंचित रही - पति के जीवित रहते एक अन्य नारी ने उसके पति को छीना तो मरने के बाद भी उसकी सम्पति की हकदार बनी। पति ने दूसरा ब्याह किया तो उसकी त्रासदी पहली पत्नी झेलती रही और पति के मरने के बाद कोर्ट-कचहरी। निश्चय ही वह टूट गई होगी और समझौता करना पड़ा होगा।
मुद्दा यह है कि क्या दूसरा विवाह अवैध है? यदि हां, तो दूसरी पत्नी को कोई हक नहीं मिलता और यदि दूसरा विवाह वैध है तो कानून को ऐसे में सज़ा देना नहीं चाहिए जो आई पी सी के तहत दिया जाता है। इसका अर्थ क्या यह नहीं होगा कि गैरकानूनी हरकत को कानूनी अनुमति मिल गई है? इस निर्णय से क्या यह संदेश नहीं जाता कि दो विवाह जायज़ है? शायद इस पर कानूनदां बहस कर सकते हैं॥
15 टिप्पणियां:
मुझे नहीं लगता कि यह किसी भी प्रकार से ठिक होगा, खासकर हिन्दू समाज के लिए । ऐसे फैसले हिन्दुओं पर अप्रत्यक्ष रुप से वार है । मिला जुड़ाकर सरकार की यही चाहत है कि हिन्दुओं को आहत किया जाये ।
जहॉं तक हमें ज्ञात है भले ही दूसरा विवाह अवैध हो, दूसरी पत्नी के कानूनी अधिकार बने रहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि वाल विवाह तो अवैध है पर इस विवाह के फल से बनी पत्नी तथा उसके बच्चों के कानूनी अधिकार बने रहते हैं।
चंद्र मौलेशवर जी ,
सर्वोच्च न्यायालय बहुत बार इस तरह के फ़ैसले लेती है जो बेशक ऊपरी तौर पर कानून से परे जाने जैसा लगता है ...मगर वास्तव में इंसाफ़ की कसौटी पर खरा उतरता है । खास कर वैवाहिक मामलों तो ये अक्सर देखने सुनने में आता है । आपको शायद ध्यान हो एक सोलह वर्षीय बालिका को अपने अकाट्य तर्कों और कारणों से वैध ठहराया था ..यानि बालिग मान कर ॥ हां सामान्य स्थितियों में ये कानून वैसे ही रहता है
सोलह वर्षीय बालिका के विवाह को ...
बाल विवाह और नाबालिग विवाह में एक ही नारी केंद्र में है। यहां एक नारी दूसरी नारी का पति छीन रही है और उसकी नौकरी भी :(
प्रसाद जी ,
मुझे लगता है आप इस मामले को अलग नजरिये से देख रहे हैं ..कानून का पहला मकसद होता है विवाद को हल करना या उसे फ़ैसले तक पहुंचाना । यानि एक छत के नीचे , एक व्यक्ति की दो पत्नियां तब तक रह सकती हैं जब तक दोनों में विवाद न हो ..। मतलब कानून का वहां कोई काम नहीं ॥ अब रही उपर के मामले में तो यहां तो दोनों को ही लाभ पहुंचाने की कोशिश जैसा न्याय किया गया है ॥ वैसे भी यदि ये अपराध था तो तो उस व्यक्ति के लिये था जिसने दो विवाह किए ..। इसे अदालत के मानवीय फ़ैसले की तरह देखा जाना चाहिये..।विधिक पक्ष पर तो कानूनविद ही ज्यादा बेहतर बता पाएंगे ॥
ek mard ki galti kai logon ki zindagi tabaah kar deti hai....
गलत गलत ओर गलत है, नारी कभी नही चाहती की उस के हिस्से का प्यार उस की सोतन या उस की सगी बहन भी ले, क्या मर्द चाहे गा कि उस की बीबी दुसरी शादी करे? ओर पहले के साथ साथ दुसरे मर्द के संग भी रहे? अगर नही तो यही बात दुनिया की हर नारी के संग है, अगर हम मजबुर कर दे तो यह अलग बात है, ओर हम फ़िर उस नारी के दिल मै नही रह सकते, क्योकि किसी को मजबुर कर के प्यार नही पाया जाता. कानून ओर धर्म तो बहुत बाद की बात है
लॉजिकली गलत लगता है पर कानून...वो तो कानूनीविद ही बता पायेंगे.
Section 494 does not say that the marriage in null & void, it only says that "...shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine..."
यही नहीं एक पत्नी के रहते हुए लिव-इन रिलेश्न वाली महिला को पहले भरण -पोषण का अधिकार दिया गया अब एक फ़ैसले के आधार पर लिव इन वाली महिला दहेज का केस भी कर सकती है ऐसा इसी सप्ताह के स्टेटमेन ने लिखा है-क्या यह विवाह पर आघात नहीं है और तो और इस लिव इन में पुरूष अपने restoration of conjugal rights का मुद्दा नहीं उठा सकता।भारत का संविधान सबको बराबरी का हक देता है फ़िर केव्ल महिला को सारे हक क्यों ? कृपया इस बारे में शोध कर के लिखें।
lav ji, On the same anology does it mean that theft is punishable but is not a crime? :)
डॊ. श्याम जी, इससे अच्छा हो कि संशोधन करके एक पत्नी का प्रावधान ही निकाल दें ताकि कोई भी पुरुष एक नारी से शादी करने के बाद एक रखैल रखे, लिव इन रिलेशन भी रखे ... जब तक दम में दम है :)क्या हम गोमोरोह की ओर बढ़ रहे हैं?
अच्छी जानकारी है ।
on the same analogy, theft is not null & void, it still has occurred, not that the thief now owns whatever he had picked up. Like the 2nd marriage does still stand.
कुछ घालमेल सा है -काटजू जी ऐसे बोल्ड निर्णयों के लिए जाने जाते रहे हैं !
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