मंगलवार, 17 नवंबर 2009

चिपको आंदोलन

  • चिपको आंदोलन की जननी

‘जब कभी चिपको आंदोलन का ज़िक्र आता है तो वृक्षों की रक्षा के लिए एक व्यापक जंग छेडने वाले सेवी बहुगुना का चित्र मस्तिष्क में घूमने लगता है। बहुगुना जी ने इस आंदोलन को विस्तार दिया, परंतु पेडों की रक्षा की प्रथम मुहीम चलाने का श्रेय जाता है एक महिला को! यह महिला न किसी शहर की थी और न पढ़ी-लिखी। वह थी गढ़वाल हिमालय के जिला चमोली के एक गाँव रैंणी की साधारण गृहणी गौरा देवी, जिसने पेड़ों के कटने का दुष्परिणाम ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा के पहले ही देख लिया था।

१९६२ के चीनी आक्रमण के बाद जब भारत सरकार ने अपने सरहदों की सुध ली और वहाँ सड़कों का निर्माण किया तो धड़ाधड़ पेड काटे जाने लगे। इसे देखते हुए सन्‌ १९७२ में रैंणी गाँव के लोगों में चर्चा हुई और एक महिला मंगलदल का गठन हुआ जिसकी अध्यक्षा गौरा देवी को बनाया गया। गाँवों के जल, जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए लोगों में जागरण पैदा किया गया।

बात सन्‌ १९७४ की है जब रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई। गौरा देवी ने महिला मंगलदल के माध्यम से उक्त नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नही आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे तो गौरा देवी और उनके २१ साथियों ने उन लोगों को समझाने का प्रयास किया। गौरा देवी ने कहा कि ये जंगल हमारे देवता हैं और यदि हमारे रहते किसी ने हमारे देवता पर हथियार उठाया तो तुम्हारी खैर नहीं। जब ठेकेदार के लोगों ने पेड़ काटने की ज़िद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को हाथ लगाना। काफी जद्दोजहद के बाद ठेकेदार के लोग चले गए।

गाँव के लोगों ने गौरा देवी की निडरता को सराहा । ग्रामवासियों ने मिल कर ठेकेदार तथा स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी। परिणाम यह हुआ कि रैंणी गाँव का जंगल नहीं काटा गया और यहाँ से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई॥


कोलकाता से निकलने वाली मासिक सदिनामा [नवम्बर] अंक में दिए गए तथ्यों के आधार पर साभार सहित --


22 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा जानकारीं प्रदान की है आपने, आभार ।

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

सरल चर्चा सुलभ करवाई आपने..आभार...

बेनामी ने कहा…

गौरा देवी के स्मरण के लिए अभिनंदन.

SACCHAI ने कहा…

" gaura devi ke samaran ke liye badhai ..aur aapko bhi "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जान कारी दी आप ने, हमारे यहां एक लडकी इसी इलाके की पी एच डी करने आई थी, बिलकुल सीधी साधी, भोली भाली, उस ने हमे बताया था कि हमारे यहां आज भी चोरी नही होती, ओर पेड पोधो को भी देवता समान पुजा जाता है, कोई भी पेड से लकडी तो क्या पता भी नही तोड सकता.
धन्यवाद

Khushdeep Sehgal ने कहा…

प्रशाद जी,
अब कभी मसूरी जाते हैं तो लगता ही नहीं इसे कभी पहाड़ों की रानी कहा जाता था...पैसे कमाने की ललक में ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जा रही जहां भवन निर्माण न किे जा रहे हों...ज़ाहिर है ये सब पेड़ों को बलिदान करने की कीमत पर होता है....इससे पर्यावरण ऐसे बिगड़ रहा है कि दिल्ली जैसे मैदानी इलाकों में कहा जाने लगा है कि अगर जाड़े में ठंड से बचना है तो मसूरी चले जाओ...वहां ज़रूर मौसम गरम होगा...आज फिर ज़रूरत है पहाड़ पर पेड़ों को बचाने के लिए गौरा देवियों और सुंदर लाल बहुगुणाओं की....

जय हिंद...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रसंग, प्रसाद जी ! आपने यादे ताजा कर दी, आपको बताता चलू कि १९७८-७९ में श्री सुन्दर लाल बहुगुणा की अगुआई में टिहरी गढ़वाल के बडियार गड़ पट्टी अंतर्गत माल्ग्डी ग्रामसभा क्षेत्र में जब उ. प. सरकार द्वारा दिए गए ठेके के अंतर्गत चीड के पदों की कटाई हो रही थी तब मैंने भी एक छात्र की हैसियत से इस आन्दोलन में वहाँ सक्रीय भाग लिया था!ठेकेदार के लोग जब पेड़ काट रहे होते थे तो हम उस पेड़ पर चिपक जाते थे कि इसे मत काटो !

Arvind Mishra ने कहा…

सी एम् जी बहुगुणा नहीं चिपको आन्दोलन के प्रणेता चांदी प्रसाद भट्ट थे ,बहुगुणा ने बाद में पूरा आन्दोलन लोक लिया !
माग्सासे पुरस्कार चांदी प्रसाद भट्ट को ही मिला था इस आन्दोलन के लिए !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

दुबे जी, प्रखर जी, ऋषभदेव जी, सच्चाई जी, राज भाटिया जी, खुशदीप जी, गोदलियाजी तथा अरविंद जी, आप सब का आभार।
गोदलिया जी तो धन्य हुए इस चिपको आंदोलन से जुड़ कर।

अरविंद जी, मैंने लेख में यह नहीं लिखा कि बहुगुणा इस आंदोलन के प्रणेता थे। वे इस आदोलन के प्रसिद्ध नेता हैं। मेगसेसे पुरस्कार किसी भी सर्वश्रेष्ठ समाजसेवी को दिया जाता है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं होता कि वह उस फ़ील्ड का प्रणेता है।

Unknown ने कहा…

sadrey alam mai chipko aandolan ki wapsi chahta hu.

बेनामी ने कहा…

bahut achha laga ye jaan kar pero ko bachane ke lie kabhi insano ne andolan kiya

बेनामी ने कहा…

Wakai.. ek sadharan si mahila ne ek asadharan sa kaam kr dikhaya jiske liye hm unke sadaiv rini rahenge..!

Unknown ने कहा…

Goairy devi ne bhout he accha work kya

Sandeep Maurya ने कहा…

maa to maa hai

Unknown ने कहा…

Agar hm sare ese ho jaye to hmara desh bahut kuch kr skta h

Prateeksha Mishra ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

Easy to learn ..... Thank you

Unknown ने कहा…

aapka danyawad itne sundar tipndi likhna ke liye

Unknown ने कहा…

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Unknown ने कहा…

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Unknown ने कहा…

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Let’s Travel ने कहा…

article is very informative and impressive,it helped me a lot while writing an Urdu article on chipko movement,