सोमवार, 30 नवंबर 2009

चुगलची का मकबरा



चुगली से सब में ये लगाए आँच
मिलकर इसको मारो जूते पाँच॥



चुगली करने वाले को कोई पसंद नहीं करता। चुगलीखोर तो इतना खतरनाक भी हो सकता कि वह अच्छे खासे दोस्तों में लडाई करा दे, राजाओं के बीच जंग छिडा दे। एक ऐसे ही चुगलची का मकबरा एटावा नगर के बाहरी क्षेत्र में फ़रूखाबाद-कन्नौज राजमार्ग पर है जिस पर जाकर आज भी लोग पांच जूते मार कर पुण्य कमाते हैं। अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी के मोहम्मद मन्सूर ने अपने साथियों के साथ इस मकबरे पर जाकर पाँच जूते मारे और अखबार की सुर्ख़ियों में आए!



कहा जाता है कि यह एक दरबारी विदूषक भोला सैयद का मकबरा है जो राजा सुमेर सिंह चौहान के दरबार में रहा करता था। अपनी चुगली की आदत से मजबूर और धन की लालच में उसने एक बार पडोसी अतेर के राजा [भिंड] के दरबार में जाकर यह कहा कि राजा सुमेर सिंह चौहान की सेना उनके राज्य पर हमला करने वाली है। उधर राजा सुमेर सिंह चौहान को बताया कि अतेर के राजा उन पर हल्ला बोलने की तैयारी में है। दोनों के बीच लडाई होना ही था कि उन्हें भोला सैयद की चुगली का पता चल गया। सैयद को यह सज़ा दी गई कि उसे जूतों से तब तक मारा जाय जब तक वह मर नहीं जाता।


भोला सैयद के मरने के बाद उसे जहाँ दफ़नाया गया वहाँ एक गुम्बद भी बनाया गया और यह फ़रमान जारी हुआ कि वहाँ आनेवाला हर राहगीर उसके मकबरे पर पाँच जूते मारेगा और पुण्य का भागीदार होगा। वैसे तो, अब इस मकबरे के गुम्बद की खस्ता हालत है और वहाँ कोई चौकीदार भी नहीं रहता परंतु अब भी लोग वहाँ जाकर पांच जूते मारते है और अपनी मुराद पूरी करते हैं।


[इंडिया टुडे के ७ दिसम्बर अंक से साभार]

18 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह कितने भले व आज्ञाकारी हैं हम लोग ...
कि आज भी जूतमपैजार कर रहे हैं मजार पर.
वाह.

राज भाटिय़ा ने कहा…

फ़िर बुश को दो ही क्यो मारे, उसे भी पांच मारने थे ना:)
यह सब बकवास बात है, लेकिन जुते वालो की बिक्री खुब होती होगी

Mithilesh dubey ने कहा…

भाई माना पड़ेगा , मान्यता तो बहुत बढ़िया है ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

शायद यहीं से उपरोक्त कहावत भी चली होगी? आपने बढिया जानकारी दी है, अब कभी उधर से आते-जाते देखेंगे भी, आभार

संगीता पुरी ने कहा…

बिल्‍कुल नई बात पता चली !!

Udan Tashtari ने कहा…

कहावत सुनी थी..इस मकबरे के बारे में आज जाना.

शरद कोकास ने कहा…

अगर ऐसा ही प्रथा होती तो हमारे देश मे बहुत से मकबरे बनाने पड़ते.. हाहाहा ।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

नारायण...नारायण...

जय हिंद...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बिल्‍कुल नई बात पता चली .....और बहुत बढ़िया लगी यह पोस्ट.....

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

विअसे भी जूतम पैजार में तो हम हमेशा ही आगे रहें हैं .........अब समझ आया कि ट्रेनिंग कैसे मिली होगी?

अनूप शुक्ल ने कहा…

रोचक जानकारी है यह तो। मकबरा देखना पड़ेगा भाई!

Shiv ने कहा…

बढ़िया जानकारी. भोला सैयद नाम से लगता है बड़े सेकुलर टाइप थे ये. सही भी है. जो सबकी चुगली कर सकता हो, उससे सेकुलर और कौन हो सकता है? आर्किओलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इस मकबरे को अपने अधीन नहीं लिया क्या? अगर नहीं लिया हो तो एक पेटीशन कर दिया जाय?

Girish Kumar Billore ने कहा…

जय हो इस महत्त्व पूर्ण आलेख पर कोई कापी राईट की गंभीर शर्तें न हो तो मैं इसकी छाया प्रतियां बांटना /नोटिस बोर्ड पर चस्पा करना चाहता हूँ ?

विवेक सिंह ने कहा…

कोई भी काम करें मन लगाकर करें ।

बहुत अच्छे ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

हा-हा-हा, प्रसाद जी कहाँ कहाँ से ढूंढ निकाल लाते है आप, बहुत मजेदार जानकारी !

बेनामी ने कहा…

आप कहाँ से इस चुगलीचर्चा में चोंच मारने पहुँच गए? अब देखिये हमें भी जूते जमाने आना पड़ा न!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

चुगलखोर की सज़ा तो सही है।
पर अब किसको जूते मार रहे हैं लोग ?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आदरणीय काजल कुमार जी, राज भाटिया जी, मिथिलेश दूबे जी, संगीता पुरी जी, ललित शर्माजी, समीरलाल जी, शरद कोकास जी, खुशदीप सहगल जी, प्रवीण त्रिवेदी जी, महफूज़ अली जी, अनूप शुक्ल जी, शिवकुमार मिश्र जी, गिरीश बिल्लोर मुकुल जी, विवेक सिंह जी, पी.सी. गोदियाल जी, ऋषभ देव शर्मा जी तथा डॊ. टी एस दराल जी, आप सब का आभार कि आप लोगों ने टिप्पणी करने का भार उठाया। बहुत बहुत धन्यवाद॥