हिंदी- एक बीमारी???
अभी हाल ही में संसद में जब राज्यमंत्री जयराम रमेश जी अंग्रेज़ी में अपना वक्तव्य दे रहे थे तो सपा के मुलायम सिंह जी ने उन्हें हिंदी में देने के लिए कहा था क्योंकि मंत्री महोदय अच्छी तरह राष्ट्रभाषा से परिचित हैं।
राज्यसभा में फिर जब मंत्रीजी ने अपना भाषण अंग्रेज़ी में देना प्रारम्भ किया तो भाजपा के सदस्य श्री कलराज मिश्र ने उन्हें टोकते हुए कहा कि वे अपना वक्तव्य हिंदी में दें। इस पर मंत्री महोदय ने हिंदी में धाराप्रवाह उत्तर तो दिया पर इससे पहले उन्होंने यह टिप्पणी भी की --"कलराज मिश्र जी यह मुलायम सिंह जी की बीमारी आपको भी पहुंच गई है।" रमेश जी का संकेत लोकसभा में सपा नेता मुलायम सिंह यादव द्वारा हिन्दी बोलने में सक्षम मंत्रियों के अंग्रेज़ी के प्रयोग को लेकर उठाए गए मुद्दे की ओर था।
इस टिप्पणी को लेकर भाजपा, सपा और बसपा के सदस्यों ने आपत्ति जताई और कहा कि हिंदी कोई बीमारी नहीं है। शोर-शराबे को शांत करते हुए सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी जी ने कहा कि सदन में हिंदी और अंग्रेज़ी, दोनों भाषाओं के इस्तमाल की अनुमति है। उन्होंने सभासदों को यह भी आश्वासन दिया कि वे रिकार्ड की जांच करेंगे और यदि हिंदी के विरुद्ध कुछ भी आपत्तिजनक लगेगा तो हटा दिया जाएगा। मंत्री महोदय ने भी कहा कि हिंदी का अपमान करने का उनका कतई उद्देश्य नहीं था और यदि ऐसा कोई संदेश निकला है तो वे उसके लिए क्षमा चाहते हैं।
आज जब करोडो़ रुपये हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सरकार खर्च कर रही है तो कम से कम वो मंत्री व सांसद जो हिंदी में सक्षम है, वे राष्ट्रभाषा का प्रयोग करके उसको देश में उचित स्थान दिलाने का कार्य तो कर ही सकते हैं। या फिर, क्या यह मान लें कि आज भी हम वही गुलामी मासिकता से ग्रसित हैं और उससे नहीं निकल पा रहे है???
10 टिप्पणियां:
मेरे विचार से जयराम रमेश ने हिन्दी को बीमारी नहीं कहा।
कलराज मिश्र और मुलायम सिंह की हिन्दी के प्रति प्रतिबद्धता में मुझे श्रद्धा नहीं है। ये शत प्रतिशत राजनेता हैं - हिन्दी सेवक नहीं।
कुछ रोग गुलामों को नहीं होते, वे केवल गुलामी की भाषा ही बोलते जो हैं !
हम हिंदी बोलें. हिंदी लिखें. जहाँ तक हो सके उसका प्रयोग करें. लेकिन नेतागीरी के लिए हिंदी का सहारा न लें. यही सब के लिए अच्छा है.
वास्तव में ऐसे नेता खुद एक बीमारी है..!कोई इनसे पूछे की आपने कभी कहीं अंग्रेजी में वोट मांगे है क्या?अगर नहीं भी आती हो तो सीखनी चाहिए..!इन्हें भूलना नहीं चाहिए की अब वे पूरे देश के नेता है...!देश की कितने प्रतिशत जनता अंग्रेजी जानती है ये उन्हें पता ही होगा....
बीमारी तो जयराम रमेश जी को है - चापलूसी की बीमारी। मुलायम सिंह जी ने उस समय एक और सही बात कही थी कि अंग्रेजी तो इटली में भी नहीं बोली जाती। वैसे इन नेताओं का हिन्दीप्रेम राजनीतिक ही है, अन्यथा वे संविधान में संशोधन कर अंग्रेजी को कार्यवाहक राजभाषा के पद से हटाने की मांग करते। दोहरी राजभाषा की नीति ही सारी समस्याओं की जड़ है।
अवकाश मिले तो हिन्दी से संबंधित इस आलेख को पढ़ें और अपने मंतव्य से भी अवगत कराएं http://khetibaari.blogspot.com/2008/08/blog-post_27.html
एक बार जयराम रमेश जी नेपाल आए । नेपाल मे जिस समुह के साथ वह बैठे थे वे हिन्दी अच्छी बोलते समझते थे। फिर भी दुतावास वालो ने सभीको अपनी बाते अंग्रेजी मे कहने का निर्देश दे रखा था। लेकिन बातचीत शुरु होते ही जयराम रमेश समझ गए की लोग अंग्रेजी मे सहज नही है, तो उन्होने कहा की अंग्रेजीको गोली मारिए और आईए हम लोग हिन्दी मे बात करते है । जयराम रमेश जी के इस व्यवहार से लोग बेहद प्रभावित हुए । दक्षिण एसिया मे हिन्दी के विकास के लिए जयराम रमेश जैसे राजनेता की आवश्यकता है। उनके उस दिन के व्यवहार से मेरे मन मे उनके प्रति सम्मान बढा है।
कहीं हिन्दी के लगातार सशक्त होने को तो बीमारी नहीं समझा गया?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
पहले तो मुलायम सिंह जी से पूछा जाय कि उन्हें हिन्दी की याद लोकसभा में देर से क्योँ आयी ? हम जानते हैं कि इनके पास अब जुगाड कम बचे हैं इसलिए यह जुगाड आजमाया जा रहा है .
दूसरे इस तरह हिन्दी की सेवा होने वाली नहीं है, इससे तो केवल हिन्दी के प्रति गैर हिन्दी भाषियों में द्वेष ही बढने वाला है ,
अगर हिन्दी की वाकई सेवा करना चाहते हैं तो हिन्दी भाषी प्रदेशों में इतने रोजगार पैदा किये जायँ कि गैर हिन्दी लोगों को स्वयं ही हिन्दी की जरूरत महसूस हो !
अभी इतना ही !
और हाँ , आपने टिप्पणी का फोण्ट छोटा क्यों किया हुआ है ?
अपनी पोस्ट का फोण्ट बडा और टिप्पणी का फोण्ट छोटा ?
हमारी कोई वैल्यू नहीं है क्या ?
हम सत्याग्रह करें उससे पहले ही माँगें मान लीजिये :)
विवेक भाई, ई टेक्निकल काम में तो हम दक्ष नाहि। कोई उपाय बता देब तो सुधार करहि लें॥
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