सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

घूस का लेन-देन


भ्रष्टाचार का राष्ट्रीयकरण


[भ्रष्टाचार का मुद्दा दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है।  इस मुद्दे पर मेरे  कुछ विचार २ अक्टूबर २००० (गांधी जयंति) को ‘स्वतंत्र वार्ता’ में प्रकाशित हुए थे।  शायद आज भी वे और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं, इसलिए यहाँ उसे पुनः उद्धृत कर रहा हूँ]


भ्रष्टाचार के मामले में विश्व के कुल राष्ट्रों में भारत को एक ‘विशिष्ठ’ स्थान प्राप्त है।  यह कोई गर्व की बात नहीं है अपितु गौरतलब बात ज़रूर है।  आए दिन भ्रष्टाचार के कई मामले समाचारपत्रों में छपते हैं जो सनसनी तथा खीज पैदा करते हैं।

एक समय ऐसा था कि कोई घूस देने के लिए हिचकिचाता था यह सोच कर कि सामने वाला न जाने क्या समझ बैठे और कैसे उससे घूस की बात करें।  एक नीली नोट दिखाई और काम बन गया।  अब तो सौ रुपये कोई चपरासी भी नहीं लेता है!!

जैसे-जैसे भ्रष्टाचार बढ़ता गया, वैसे-वैसे हिचकिचाहट भी खत्म होने लगी- देनेवाला भी खुलेआम देने लगा और लेनेवाला भी बिना शर्म-ओ-हया के हाथ फैलाने लगा।  पर इस बेइमानी में भी एक ईमान होता था।  घूस लेनेवाला उस काम को अंजाम देता था जिसके लिए उसने पैसे लिए हैं।  रफ़्ता-रफ़्ता हालत यह हो गई है कि अब देनेवाले को यह भरोसा भी नहीं रह गया है कि पैसे देने के बाद भी काम बनेगा या नहीं! यानि, इस बेइमानी के काम में भी बेइमानी आ गई है।

हाल ही में, समाचार पत्र में यह समाचार देखने को मिला जिसमें हैदराबाद के सरकारी कर्मचारियों के एक नेता श्री पूर्णचंद्र राव का बयान छपा था कि छोटी-छोटी रिश्वत के मामलों को पकड़ कर कर्मचारियों को परेशान किया जा रहा है।  इसका अर्थ यह है कि वे छोटी-छोटी चोरियाँ कर सकते हैं और अधिकारी को उनकी अनदेखी कर देनी चाहिए!  पर इन्हीं छोटी चोरियों से उनकी जुर्रत इतनी बढ़ जाती है कि ये भ्रष्टाचार के बड़े फाटक खोल देती है।  सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता अब ऐसी हो गई है मानो भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं है और घूस लेना कोई बुरी बात नहीं है, वह तो केवल काम करने के लिए एक ‘तोहफ़ा’ मात्र है।

एक और चौंकानेवाला समाचार दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली नगर निगम के वकील रमण दुग्गल का आया।  उन्होंने स्वीकार किया कि निगम के अधिकारी व अभियंता भ्रष्ट हैं पर उनके खिलाफ़ इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकती कि तब निगम में कोई कर्मचारी नहीं बचेगा!!

हैदराबाद के एक भूतपूर्व मुख्य अभियंता सुरेंद्र बहादुर श्रीवास्तव के पास से करीब तीन करोड़ रुपये बरामद होने की खबर अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि एक ‘अ-भूतपूर्व’ डिप्टी कमिशनर, वाणिज्य कर विभाग, श्री ए.जे.फ़्रेंकलिन के पास से चार करोड़ मूल्य की सम्पत्ति ज़ब्त होने का समाचार फैला।  ऐसा लगता है कि हर राज्य के अधिकतर सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।   अर्थात, भ्रष्टाचार का राष्ट्रीयकरण हो गया है।

भारत की सड़कों पर इतने पढ़े-लिखे बेरोज़गार घूम रहे हैं।  यदि सारे भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करके उन्हें निकल दिया जाए और इन बेरोज़गारों को नौकरी दी जाए तो इससे दो लाभ होंगे।  एक तो  कार्यालयों में ईमानदारी आने की संभावना बढ़ जाएगी क्योंकि नए कर्मचारी भ्रष्टाचार का परिणाम देख चुके होंगे।  दूसरे, यदि वे भी भ्रष्ट बनें तो उनकी जगह दूसरे बेरोज़गार को रोज़गार दिया जा सकेगा।  इस प्रकार बेरोज़गारी की समस्या का हल भी हो सकेगा।

भ्रष्टाचार को अब तक एक मामूली तथ्य समझकर उसकी अनदेखी की गई जिसका गंभीर परिणाम यह हुआ कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साठ वर्ष बाद भी भारत की गिनती संसार के भ्रष्टतम देशों में होने लगी है।  क्या हमारे राष्ट्र के नेता भ्रष्टाचार के इस राष्ट्रीयकरण का सफ़ाया करने के लिए दृढ़संकल्प हैं???

इससे पहले उन्हें अपने गिरेबां में झाँक कर देखना होगा, अपना चरित्र सुधारना होगा, केवल तब ही वे राष्ट्र चरित्र के निर्माण की ओर अग्रसर हो सकते हैं।  क्या हमारे नेता इस इन्किलाब के लिए तैयार हैं?  क्या ‘सत्यमेव जयते’ को साकार बनाने का प्रण लेकर वे इस सत्य और अहिंसा के देश को पुनः वही आचरण दे पाएँगे जिसके लिए भारत की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी???


18 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कुछ ऐसा ही बाकया अभी मैने भी देखा. बहुत गहरी हैं रिश्वत की जड़ें.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

वर्तमान में बेरोजगार अधिकतर वे ही हैं जो कामचोर हैं इसलिए भ्रष्‍टा‍चारियों का ये विकल्‍प बन सकेंगे मुझे इस पर संदेह है।

केवल राम ने कहा…

@ अपना चरित्र सुधारना होगा, केवल तब ही वे राष्ट्र चरित्र के निर्माण की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

सटीक इसके बिना हम भ्रष्टाचार के समाप्त होने का सिर्फ सपना देख सकते हैं ...बाकी कुछ भी नहीं ...!

Shah Nawaz ने कहा…

यकीनन आपका यह लेख आज भी उतना ही प्रसांगिक है, बल्कि आज और भी अधिक है... गंभीर चिंतन और स्वयं में परिवर्तन लाने की अत्यंत आवश्यकता है.

Pratik Maheshwari ने कहा…

यह बात तो सौ टके सही है कि आजकल घूसखोर बेईमान भी हो गया है.. घूस ले कर काम न करने वालों की तादाद बढ़ रही है.. इसका अच्छा नतीजा कम-स-कम यह तो होगा कि लोग घूस देना बंद कर देंगे क्योंकि काम तो वैसे भी नहीं होना है...
और बेरोज़गारी वाली बात आपकी है बिलकुल सही पर अगर बेरोजगारों को रोज़गार मिल गया तो चुनावों में नेता किस बात का वादा करेंगे? यही तो एक विषय है जिसे सालों से नेताओं ने घुमाया है और वोट इकट्ठे किये हैं...

Gyan Darpan ने कहा…

भारत में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी धंस चुकी है कि इन्हें निकालने के लिए तगड़ी राजनैतिक इच्छा शक्ति चाहिए जो किसी में नहीं है बस इसे उखाड़ फैंकने की सिर्फ बातें ही होती है|

way4host

Suman ने कहा…

भाई जी बधाई आपको !
भ्रष्टाचार को मिटा पाना असंभव बात है !
सार्थक लेख ! आभार ....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

असली इमानदार वही कहलायेगा जिसे अवसर मिले और रिश्वत न ले । लेकिन ऐसे कर्मचारी भी हैं ।

Amrita Tanmay ने कहा…

इसका मतलब तो यही हुआ कि खरबूजा को देख सब उसी रंग के हो जाए. अजीब हालत हो गये हैं. ईमानदार भी डर से अब भ्रष्ट हो जाए..तो इसे जड़ से कौन ख़त्म करेगा..?

Pallavi saxena ने कहा…

आपका सुझाव भी अच्छा है बेरोजगारों को मिल कर नौकरियों से निकालना शायद देश के लिए लाभप्रद सीध हो मगर उसे पहले हमे खुद को सुधारना होगा। क्यूंकी इस भ्रष्टाचार के जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद ही हैं ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

ZEAL ने कहा…

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भारत की सड़कों पर इतने पढ़े-लिखे बेरोज़गार घूम रहे हैं। यदि सारे भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करके उन्हें निकल दिया जाए और इन बेरोज़गारों को नौकरी दी जाए तो इससे दो लाभ होंगे। एक तो कार्यालयों में ईमानदारी आने की संभावना बढ़ जाएगी क्योंकि नए कर्मचारी भ्रष्टाचार का परिणाम देख चुके होंगे। दूसरे, यदि वे भी भ्रष्ट बनें तो उनकी जगह दूसरे बेरोज़गार को रोज़गार दिया जा सकेगा। इस प्रकार बेरोज़गारी की समस्या का हल भी हो सकेगा।.....

Great suggestion ! It will surely work .

Very appealing post indeed .

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डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

आप का जन्म विश्व स्वास्थ दिवस पर हुवा ..इस लिए आपने मेरे ब्लॉग में दिल और गुर्दे की ही बात लिखी... :)) आपका आभार ..
आपने जिस मुद्दे पर बात उठाई है ...आपका लेख सामयिक है.. और तथ्यों के साथ है ...लेकिन मुल्क की जड़ों तक भ्रष्टाचार पहुच चुका है.. बहुत मुश्किल होगी इस को जड़ से हटाना ..

अजय कुमार झा ने कहा…

आपने बिल्कुल सही बात कही है चंद्र जी ।और सच तो ये है कि अब तो ये और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गया है , सार्थक चिंतन करती पोस्ट

दिगम्बर नासवा ने कहा…

६३ वर्षों में या कहिये सदियों से भारत में भ्रष्टाचार रहा है किसी न किसी लेवल पर और ये इतनी आसानी से नहीं जाने वाला सख्त क़ानून के बिना ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुधरने की ओर एक कदम तो बढ़ाएं ... विचारणीय पोस्ट

संगीता पुरी ने कहा…

सटीक लिखा है ..

विचार करने योग्‍य बातें !!

Arvind Mishra ने कहा…

चिंतनपरक -भ्रष्टाचार अब इस देश की दैनन्दिनी है समाज में रच बस गया है ..नैतिकता का पूर्ण क्षरण इसका जिम्मेदार है ....हम दूसरे का भ्रष्टाचार देखने को आदी हो गए हैं खुद अपने गिरेबान में नहीं झांकते ...

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

मुझे तो कोई समाधान नजर नहीं आता! अण्णा हजारे की टीम पर जैसे सुनियोजित प्रहार हो रहे हैं; उससे लगता है कि भ्रष्टाचार को ईमानदारी से नहीं मिटाया जा सकता! :(