सोमवार, 9 मई 2011

ले-जनरल जे.एफ़.आर.जेकब - Lt-General J.F.R.JACOB



१९७१ युद्ध के जांबाज़- लेफ़्टनेंट-जनरल जे.एफ़.आर.जेकब

१७ दिसम्बर १९७१ को भारत के लेफ़्टनेंट-जनरल जैक फ़्रेड्रेक राल्फ़ जेकब  ने पूर्व पाकिस्तान के हेडक्वाटर में प्रवेश किया और पाकिस्तान के लेफ़्टनेंट-जनरल ए.ए.के.नियाज़ी [टैगर] से भेंट की।  उस समय नियाज़ी पूर्व पाकिस्तान के मिलिटरी एड्मिनिस्ट्रेटर थे।  ले-जनरल जेकब के हाथ में भारत के सेनाध्यक्ष जनरल मानेकशॉ की ओर से नियाज़ी के नाम समर्पण दस्तावेज़ का मसौदा था।  नियाज़ी का कमरा पाकिस्तान के सैनिक अधिकारियों से भरा था।  वे समझ रहे थे कि भारत की ओर से युद्ध विराम के समझौते का संदेश लाया गया है।  ले-जनरल जेकब ने वह मसौदा पाकिस्तान के ले-जनरल नियाज़ी के सामने रखा और अपना पाइप सुलगा कर सामने आराम से बैठ गए।  नियाज़ी की आखों में आँसू थे।  ले-जनरल जेकब ने तीन बार पूछा कि क्या यह उन्हें मंज़ूर है पर नियाज़ी की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला।  ले-ज. जेकब ने वह मसौदा वापिस ले लिया और कहा कि मैं यह मान रहा हूँ कि यह तुम्हें स्वीकार है।  यह कहते हुए वे आराम से मेस की ओर चल दिए जहाँ उनके भोज का प्रबंध पाकिस्तान सेना ने किया था।

ले-जनरल जेकब उन जाबाज़ों में से हैं जिन्होंने बांग्ला देश की स्थापना में अपनी अहम भूमिका निभाई और भारत के सैन्य-इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया।  उनका मानना है कि भारत के ३००० सैनिकों के आगे पाकिस्तान के ३०,००० सैनिक आसानी से और तीन सप्ताह तक चुनौती दे सकते थे, लेकिन उन्होंने कुछ ही घंटों में आत्मसमर्पण कर दिया।

जैक जेकब कोलकाता के यहूदी परिवार में जन्में और भारत की ब्रिटिश आर्मी की ओर से दूसरे विश्व युद्ध में भाग लिया था।  पाकिस्तान से हुए १९६७ युद्ध में उन्होंने मौत को धोखा देकर दुश्मन की गोलियों को झेला और जीवित लौटे।   सेवा निवृत्ति के बाद वे गोवा और चंडीगढ में गवर्नर के पद को सुशोभित किया।  

ले-जनरल जेकब ने अब अपनी आत्मकथा ‘द ओडिसे इन वार एंड पीस’ नाम से लिखी है जिसमें बांग्ला देश युद्ध के बार में भी चर्चा है।  इस युद्ध के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि युद्ध के दौरान अलग राष्ट्र बनाने का भारत का कोई इरादा नहीं था पर हालात ऐसे बन पड़े कि बांग्ला देश का जन्म हुआ।  मानेक्शॉ की रणनीति पर सवाल उठाते हुए वे बताते हैं कि ‘मानेकशॉ दिल्ली में थे और उन्हें ज़मीनी हकीकत के बारे में उतनी जानकारी नहीं थी।’ वे ढाका पर कब्ज़ा करने के पक्ष में नहीं थे पर जेकब ने जब यह ज़ोर दिया कि पूरे पूर्वी पाकिस्तान पर कब्ज़ा करना है तो ढाका को कब्ज़े में लेना अनिवार्य होगा तो मानेकशॉ ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान बिखेरते हुए कहा था- ‘जैक स्वीटी, क्या तुम नहीं देखते कि अगर हम खुलना और चट्गांव पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो ढाका का स्वतः ही पतन हो जाएगा।’

कुछ पाकिस्तानी संदेश जो पकड़े गए थे, उनका हवाला देते हुए जेकब बताया कि इन संदेशों के आधार पर मानेकशॉ ने यह आकलन किया कि पाकिस्तानी सेना बर्मा भागने की कोशिश कर रही है।

जैकब ने अपनी पुस्तक में यह भी रहस्योद्‌घाटन किया कि मानेकशॉ को यह भी अंदेशा था कि चीन की ओर से भारत पर हमला किया जाएगा जब कि तिब्बत के पठार के पार कोई चीनी गतिविधि नहीं थी।

ले-जनरल जेकब ने एक और रहस्य को उजागर किया जब वे बताते हैं कि दुर्भाग्य से सेना और वायुसेना प्रमुखों के बीच संबंध सामान्य नहीं थे और उनके बीच सामान्य बातचीत का अभाव था।  तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल पी.सी.लाल के साथ मानेकशॉ के संबंधों के बारे में वे बताते हैं कि शिलांग और इलाहाबाद में वायुसेना की कमान निर्धारित करने के बारे में मानेकशॉ ने लाल से बात करने से मना कर दिया था।  

यह भारत का सौभाग्य ही कहिए कि हम वह युद्ध जीत गए पर वरिष्ठ अधिकारियों की ऐसी अहम मानसिकता देश को डुबो भी सकती है।  देश के सम्मान के लिए क्या हम अपने अहम को डुबो नहीं सकते?  यह एक यक्ष प्रश्न इस आत्मकथा से झांकता है॥

[३ जुलाइ २००६ के इंडिया टुडे और ९ मई २०११ के डेली हिंदी मिलाप से साभार]

8 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

जनरल जेकब तो बहुत रोचक जानकारी दे रहे हैं! और नियाजी की सेना के हतोत्साह के बारे में आकलन सही लगता है!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अच्छी और एतिहासिक जानकारी ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सी जानकारी पहली बार जानी।

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया जानकारी के लिए आभार !

राज भाटिय़ा ने कहा…

जी तब मै बहुत छोटा था, ओर उस समय समाचार पत्रो मे पाकिस्तानी सेना के हत्य चारो के बारे बहुत पढा था, ओर जनरल जेकब ओर जनरल नियाजी के आत्म समर्पण के बारे भी, आज आप के इस लेख से बचपन की याद ताजा हो गई, धन्यवाद

Suman ने कहा…

अच्छी रही जानकारी !
धन्यवाद..........

ZEAL ने कहा…

Informative and inspiring post. Thanks for introducing him.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

इसी लडाई में चटगांव में मेरे पिता पाकिस्तानी गोली से घायल हो गये थे वो भी जब , जब सब लडाई खत्म होने पर वापस आने की तैयारी कर रहे थे