कवि परिचय
कविः डॉ.बी.गोपाल रेड्डी
जन्मः ५ अगस्त १९०७
राजनीति: १९२१ से स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे
मंत्री की हैसियत से तक मद्रास, कर्नूल, हैदराबाद में कार्यरत।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल।
आंध्र विश्वविद्यालय, वाल्टेर के प्रोचांसलर।
प्रकाशित- मौलिक संग्रह: १३ कृतियां
बांग्ला से तेलुगु में काव्य-रूपांतर: ६ कृतियां
क्या होगा ‘मृत्यु के बाद’
असाधारण व्यक्ति नहीं हूँ मैं,
मुझ में नहीं है
नेता का साहस और पहुँच...
विनम्रता में मैं
निहार रहा हूँ जीवन के।
यह कथन है एक असाधारण व्यक्ति का, जिन्हें रजनीति और साहित्य के क्षेत्र में अपार प्रेम व ख्याति मिली और जिन्हें लोग डॉ.बी.गोपाल रेड्डी के नाम से जानते हैं। डॉ. रेड्डी ने अपना रजनीतिक जीवन सन् १९२१ में एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आरम्भ किया और फिर स्वतंत्र भारत में मंत्री, राज्यपाल तथा आंध्र विश्वविद्यालय के प्रोचान्सलर की हैसियत से अपना कार्य कौशल प्रमाणित किया। डॉ.रेड्डी एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ एक कविहृदयी व्यक्ति और अच्छे अनुवादक भी हैं। उन्होंने कवींद्र रवीन्द्र के बांग्ला नाटकों, कहानियों आदि का तेलुगु काव्यानुवाद किया है। अपने जीवन के अंतिम दो दशकों से साहित्य की सेवा में लगे हैं और उनकी कई रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। इसी अवधी में लिखी उनकी २२ दीर्घ कविताओं का तेलुगु से हिंदी में रूपान्तरित किया है तेलुगु-हिंदी के मर्मज्ञ आचार्य डॉ. आदेश्वर राव ने। इन कविताओं को ‘मृत्यु के बाद’ नामक कविता संग्रह में संकलित किया गया है और आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के अनुदान से प्रकाशित किया गया है।
‘मृत्यु के बाद’ की अधिकतर कविताओं में मृत्यु से संबंधित विषय को किसी न किसी प्रसंग में प्रस्तुत किया गया है। जन्मदिन की बधाई को भी कवि ने मृत्यु से जोड़कर देखा है।
वे भूल गए होंगे
कि जन्म दिन
मृत्यु के पास ही
सब को ले जाता है। [पृ.५]
रोगों के अग्निकुंड हैं
आत्मीयों और परिजनों की
मृत्यु की खबरें।
मृत्यु में सभी समस्याओं का
समाधान है
निदान है
सभी रोगों का। [पृ.११]
व्यक्ति जब पैदा होता है तो अपने साथ काल का चिथड़ा पहन कर आता है और कालक्रम की समाप्ति के बाद चला जाता है। इसे डॉ. रेड्डी ने अपनी कविता ‘दिगम्बर’ में इस प्रकार प्रस्तुत किया है --
काल का चिथड़ा पहन कर
पृथ्वी पर आता है मानव... [पृ.२७]
जीवन के पर्दे को गिरा कर
साथ लाए हुए
चिथडे को फेंक कर
होकर दिगम्बर
विश्राम पाता है मानव। [पृ.३१]
डॉ. बी.गोपाल रेड्डी ने अपनी कविता ‘समुद्री तूफान’ में कुछ मिथकों का प्रयोग उस प्रलय के लिए किया है, जो समुद्र ने ढाया था। कविता के अंत में वे कहते हैं--
यह महा वीभत्स है
दारुण-मारण यज्ञ है
तिमिर दुःस्वप्न है
संहार का तांडव है
मत्त प्रभंजन का उद्वेलन है
वरुण का विलय-विलास है [पृ.५०]
वृद्धावस्था का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है-
वृद्धावस्था में
कितना बदल जाता है
मानव!
पके बालों के साथ
कांपते शरीर के साथ
शुष्क मांसपेशियों के साथ....
वह
धारण करता है
कैसा विकृत रूप! [पृ.१५]
जैसा कि आचार्य पद्मश्री डॉ. यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद ने पुस्तक के ‘दो शब्द’ में कहा है- "रेड्डी जी इन कविताओं में उनके विचारक, दार्शनिक, भावप्रणव कवि तथा संवेदनशील कलाकार के दर्शन होते हैं।"
डॉ. रेड्डी की कविताओं की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए रूपांतरकार आचार्य पी.आदेश्वर राव मानते हैं कि "छंद रहित नई कविता ही उनकी कविता शैली की विशेषता है। परंतु उसमें लय-तत्व है, विचारों एवं बिम्बों की क्रमबद्ध श्रृंखला है, अन्विति है। आवश्यकतानुसार उन्होंने शब्दालंकारों तथा साम्यमूलक अलंकारों का प्रयोग किया है, जिनमें अनुप्रास, रूपक, सांगरूपक, उपमा, अतिशयोक्ति, उत्प्रेक्षा आदि प्रमुख है।"
अपने इस लम्बे जीवनकाल में डॉ. रेड्डी ने यश, सत्ता, वैभवादि का सुख भोगा ही है, फिर भी उनका यह सवाल अपनी जगह सटीक है जब वे पूछते हैं--
इस जग में कितने ऐसे हैं
जिसका यश अटल रहा है
मृत्यु के बाद?
*** *** *** *** *** *** *** ***
रूपान्तरकार: पुरुगुल्ल आदेश्वर राव
जन्म: २३ दिसम्बर १९३६
शिक्षा : एम.ए. कासी हिंदू विश्वविद्यालय
पीएच.डी. [श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय], साहित्यरत्न
अध्यापन: ४४ वर्ष का स्नातकोत्तर अध्यापन एवं शोध-निर्देशन।
प्रकाशित लेखन: २० कृतियां, विभिन्न विषयों पर।
11 टिप्पणियां:
वृद्धावस्था में
कितना बदल जाता है
मानव!
पके बालों के साथ
कांपते शरीर के साथ
शुष्क मांसपेशियों के साथ....
वह
धारण करता है
कैसा विकृत रूप! [पृ.१५]
जीवन के सत्यों को उद्घाटित करने वाले रचनाकार से हमारा परिचय करवाने के लिए आपका आभार ...
तेलुगु साहित्यकारों का हिंदी में परिचय देकर आप बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं.
मृत्यु और वृद्धावस्था अनछुये विषय हैं पर इनमें भी भावनाओं का ज्वार समाहित है।
बहुत अच्छी जानकारी देने का आभार !
जब मनुष्य ही नाशवान है , तो यश कैसे अटल रह सकता है ?
तेलुगु साहित्यकारों से हमारा परिचय करवाने के लिए आपका आभार...
डॉ गोपाल रेड्डी से परिचय कराने के लिए आभार ।
उनके काव्य में जिंदगी का फ़लसफ़ा नज़र आ रहा है ।
डॉ.बी.गोपाल रेड्डी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
यह महा वीभत्स है
दारुण-मारण यज्ञ है
तिमिर दुःस्वप्न है
संहार का तांडव है
मत्त प्रभंजन का उद्वेलन है
वरुण का विलय-विलास है...
मर्मस्पर्शी रचना के लिए डॉ.बी.गोपाल रेड्डी हार्दिक बधाई।
तेलगु साहित्य से परिचय करवाने के लिए आभार.
sundar parichya.........sukriya chacha......
pichale aur 5 post banch li hai....
pranam.
तेलुगु साहित्यकारों का हिंदी में परिचय देकर आप बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. हिंदी ब्लॉग जगत आपका आभारी रहेगा...
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