रविवार, 6 मार्च 2011

उत्तर आधुनिकता का उत्तर


दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में एक शाम -
‘उत्तर आधुनिकता’ के नाम

कल, यानि ५ मार्च २०११ई. को आदरणीय प्रो. ऋषभ देव शर्मा जी के निमन्त्रण पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के एक कार्यक्रम में जाने का शुभावसर मिला।  कार्यक्रम था ‘सभा’ की पत्रिका ‘स्रवंति’ के फरवरी अंक का लोकार्पण- जो ‘उत्तर आधुनिकता विमर्श और समकालीन साहित्य विशेषांक’ के रूप में प्रकाशित हुआ है।  कार्यक्रम के विस्तार और चित्र तो ‘ऋषभ उवाच’ ब्लाग पर देखे जा सकते हैं।  मैं तो यहाँ अपने कुछ अहसासात से आपको दो-चार कराना चाहता हूँ।

जब मैं सभा में पहुँचा तो ‘स्रवंति’ की सह-सम्पादक डॉ. नीरजा और कार्यक्रम संयोजक डॉ. बलविन्दर कौर जी ने स्वागत किया  और मुझे उस कमरे में ले गईं जहाँ मेरी पहली प्रतिक्रिया चौंकने की थी।  मेरे सामने लीबिया  से आए ‘मुहाजिर’ प्रो. गोपाल शर्मा थे।  मैं उन्हें इसलिए मुहाजिर कह रहा हूं कि अब भारत में उनका स्टेटस एक शरणार्थी का है।  पहले जब वे हैदराबाद में रहते थे उनका स्टेटस शरारती का था क्योंकि वे किसी पर भी व्यंग्य-बाण चला देते थे और वह छप भी जाता था:)॥ इंग्लिश व फॉरेन लेंग्वेजेस विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष  प्रो. एम. वेंकटेश्वर  जी के पधारने पर कार्यक्रम शुरू हुआ। [इस कार्यक्रम के सुंदर चित्र डॉ. ऋषभ देव शर्मा के ब्लाग ‘ऋषभ उवाच’ पर लग गए हैं; और रिपोर्ट भी ।]

कार्यक्रम की चर्चा में उत्तर आधुनिकता पर तो बात हुई, साथ ही लिबिया में उत्तर- उत्तर आधुनिकता की चर्चा पर भी प्रो. गोपाल शर्मा ने शरमाते हुए कहा:)।  कार्यक्रम का अंत एक कवि गोष्ठी से हुआ।  कविता पाठ के लिए पांच/ छः कवि थे जिनमें गुरुदयाल अग्रवाल जी और श्रीमती ज्योतिनारायण जी भी थे। गुरुदयाल जी कविता पाठ के समय अपने रंग में नज़र नहीं आए तो डॉ. ऋषभदेव शर्मा जी  ने कहा कि वि्द्यार्थियों को ध्यान में रख कर कुछ सुनाइये तो  कुछ अशआर सुनाकर वे मंच से लौटे।  ज्योतिनारायण जी ने जब सूफियाना इश्क पर एक गीत प्रस्तुत किया तो गुरुदयाल जी को शायद उससे प्रेरणा मिली।  वे अध्यक्ष के पास जाकर कुछ सुनाने की अनुमति मांगने लगे तो समय-सीमा को देखते हुए उन्होंने कहा कि जो कुछ सुनाना है, उसे बाद में थाने [अध्यक्ष के चेम्बर] में सुनाएं।  कार्यक्रम के बाद हम बाहर निकले।  विदाई समारोह हुआ। सब अथितियों को नमन करके हम ऐसे ही  थानाध्यक्ष [संस्थानाध्यक्ष] प्रो. ऋषभ देव शर्मा जी के चेम्बर में बैठ गए।  

असल मज़ा तो किसी गोष्ठी या आयोजन की समाप्ति के बाद ही आता है जब आयोजनकर्ताओं के दिलो-दिमाग से काम का बोझ उतर जाता है और कार्यक्रम की सफलता का जश्न मनाया जाता है।  जी नहीं, गलत मत समझिए, यह जश्न किसी लाल परी का नहीं था।...

हाँ, तो हम... यानि प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. जी. नीरजा, डॉ. बलविन्दर कौर, श्रीमती ज्योतिनारायण, श्री गुरुदयाल अग्रवाल, डॉ. बी. बालाजी, श्री भगवानदास जोपट और मैं, मिल कर मौज ले रहे थे।  तब गुरुदयाल जी ने को श्रीमती ज्योतिनारायण की प्रेम पर लिखी कविता पर अपनी टिप्पणी करते हुए उन्हें  बताया कि उनके विद्यार्थी-काल में उन्हें प्रेम पर एक पर्चा हुआ करता था।  और उन्होंने प्रेम का वह पर्चा सुनाया जिसमें कई विषयों जैसे गणित, अंग्रेज़ी, अर्थशास्त्रादि पर  प्रेम-प्रश्न थे।  फिर, लहर में आकर उन्होंने महिलाओं से  कुछ समय के लिए अजनबी रहने का वादा लेकर एक ग़ज़ल  सुनाई जिसमें अपने प्रेम का इज़हार उन्होंने कुछ इस तरह किया:-

मैं खाक हो गया तेरी हर खुशी के लिए
ये कम नहीं है मुहब्बत की ज़िंदगी के लिए
अजीब शर्त है बुनियादे-दोस्ती के लिए
कि एक अजनबी को ज़रूरत है अजनबी के लिए

अब एक पचहत्तर वर्ष का अजनबी मिल जाए तो कौन महिला भला इन्कार करेगी!! :) :)

घड़ी की तेज़ रफ़्तार को देखते हुए महिलाओं ने विदा ली।  हम भी सोच रहे थे कि चलो कुछ समय ‘क्षेत्रा’ में बिताएं। आखिर वो कहते हैं ना कि- भूखे भजन न होए गोपाला॥ तो हम लोग, यानि प्रोफ़ेसर द्वय [ऋषभ देव शर्मा, गोपाल शर्मा], एक डॉक्टर[बालाजी] और तीन कम्पाउंडर[गुरुदयाल अग्रवाल, भगवान दास जोपट और मैं जिनके पास ‘वैसी’ डिग्री नहीं है] उस होटल की ओर चले जिसे ‘क्षेत्रा’ कहते हैं।  जब कभी ‘सभा’ का ऐसा कोई कार्यक्रम होता है तो हम लोगों के बिछड़ने का अंतिम क्षेत्र ‘क्षेत्रा’ ही हुआ करता है।  वहाँ पर उतर-आधुनिकता से लेकर उत्तर- उत्तर आधुनिकता [लिव-इन रिलेशनशिप, गे मूवमेंट ...] पर बात चली और साथ ही मुँह भी चले। रात के लगभग दस बजे हम विदा हो रहे थे कि गुरुदयाल जी ने फिर  दो शेर उछाले  -

क्त के साथ बदलने को हुनर कहते हैं
गिर-गिर के सम्भलने को हुनर कहते हैं
कुछ लोग तो छुप-छुप के गुनाह करते हैं
हम सरे-बज़्म मचलने को हुनर कहते हैं॥  

अब यह  लिव-इन रिलेशनशिप है या गे.... :)  उत्तर-उत्तर आधुनिकता पर अभी शोध बाकी  है॥

17 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लजवाब संस्मरण ... आनंद आ गया पढ़ कर ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी सुन्दर रिपोर्ट।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी ओर सुंदर रिपोर्ट जी, धन्यवाद

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया पोस्ट ...पेश करने का अंदाज़ बहुत अच्छा लगा !

कुछ लोग तो छुप-छुप के गुनाह करते हैं
हम सरे-बज़्म मचलने को हुनर कहते हैं॥

Arvind Mishra ने कहा…

धाँसू उत्तरोत्तर आधुनिकता के अनुभव !

Gopal Sharma ने कहा…

आपने तो होली से पहले ही रंग से सरोबार कर दिया . पाणिनी जी को प्रणाम

Gopal Sharma ने कहा…

आपका पूरा प्रोफाइल देखना पड़ेगा

डॉ.बी.बालाजी ने कहा…

बिना कम्पाउंडरों के भी कोई डॉक्टर हुआ है भाला ! यह आप का बड़ापन है कि आपने मुझे डॉक्टर कहकर मान दिया.धन्यवाद.

आपकी कविता का हलंत अभी भी याद है मुझे. रही उत्तर-गोष्ठी की रिपोर्ट की बात तो आपकी याददाश्त जबरदस्त है. कविताओं के उद्धरण के साथ मजेदार प्रस्तुति के लिए बधाई

और उत्तर-उत्तर आधुनिकता पर होने वाली गोष्ठी का, उसके बाद होने वाली उत्तर गोष्ठी और उसकी रिपोर्ट का हमें भी इंतज़ार है.

-बी.बालाजी

Gurramkonda Neeraja ने कहा…

गुरूजी

आपके संस्मरण पढ़कर उस दिन की यादें फिर से ताजा हो गईं|


प्रेत सी छाया बन
यादें पीछा करती बार बार


यादगार लम्हों को हमारे सामने लिखित रूप में प्रस्तुत करने के लिए पुनः धन्यवाद

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर् प्रस्‍तुति ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

गोष्ठी का बढ़िया लेखा जोखा प्रस्तुत किया आपने !

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत खूब प्रशाद जी । ये हुई ना बात । मज़ा आ गया पढ़कर ।

Suman ने कहा…

jis tarikese aapne pesh kiya vaha andaj badhiya laga.........

बलविंदर ने कहा…

इतनी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | उस दिन अध्यक्षीय चैम्बर में मैंने तो आप लोगों द्वारा प्रस्तुत कविताओं, व्यंग्यों का भरपूर मजा लिया | मैंने पहली बार आपका संस्मरण पढ़ा (ब्लॉग पर) | बहुत ही प्रभावित हुई | काश यदि हर कोइ जीवन के हर क्षण को इसी तरह जीता तो जीवन में मस्ती ही मस्ती भर जाती | पुनः इतनी सुन्दर और सजीव प्रस्तुति के लिए धन्यवाद|

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
महत्वपूर्ण दिन अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को सुगना फाऊंडेशन जोधपुर की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ..

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

adbhut anand ki prapti!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आप लोगों को यह संस्मरण पढ़ कर अच्छा लगा , इसके लिए आभारी हूं। चलते-चलते एक राज़ की बात बता दूं, इस संस्मरण की प्रेरणा के पीछे हमारे प्रेरणाकार[ रचनाकार की तर्ज़ पर:)] हैं डॉ. ऋषभ देव शर्मा जिन्होंने कहा- चलो संस्मरण लिख डालो :)