गुरुवार, 31 मार्च 2011

आरिगपूड़ि- Arigapudi Ramesh Choudhary



दक्षिण के हिंदी साहित्यकार- आरिगपूडि


आरिगपूड़ि हिंदी के ऐसे साहित्यकार हैं जो अपनेआप को हिंदी के रचनाकार मानते थे और उन्हें यह दरकार नहीं था कि उन्हें हिंदीतर भाषी हिंदी रचनाकार कहा जाए।  उनका मानना था कि जो भी रचनाकार जिस भाषा में रचता है उसे उस भाषा का ही साहित्यकार समझना चाहिए भले ही उसकी मातृभाषा कोई अन्य क्यों न हो।  आरिगपूडि के व्यक्तित्व और कृतित्व पर डॉ.अनीता ने गहन अध्ययन किया है और उनकी जीवनी पर अपनी पुस्तक ‘आरिगपूड़ि-व्यक्ति और रचनाकार’ में प्रकाश डाला है।  आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी ने इस पुस्तक को आर्थिक अनुदान देकर प्रकाशन में सहयोग दिया है।

‘आरिगपूड़ि-व्यक्ति और रचनाकार’ पुस्तक को जिन छः अध्यायों में बाँटा गया है, वो है- दक्षिण में हिंदी लेखन की परम्परा, आरिगपूड़ि: जीवन और व्यक्तित्व, उपन्यासकार आरिगपूड़ी, कहानीकार आरिगपूड़ि, कवि नाटककार एकांकीकार अनुवादक तथा आलोचक आरिगपूड़ि और उपसंहार।

डॉ. अनीता ने पुस्तक के पहले अध्याय में दक्षिण में हिंदी लेखन की लम्बी परम्परा को उद्धृत करते हुए आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के प्रदेशों में किए जा रहे हिंदी लेखन की विस्तार से चर्चा की है।  इस अध्याय में दक्षिण भारत के इन प्रदेशों में काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक व एकांकी, निबंध, शोधकार्य तथा अनुवाद पर हुए कार्य की विस्तृत जानकारी का ब्यौरा है।

‘आरिगपूड़ि- व्यक्ति और रचनाकार’ के दूसरे अध्याय में लेखिका ने आरिगपूड़ि के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला है।  उनेक जन्म, बाल्यावस्था, संघर्षपूर्ण जीवन, साहित्यिक रुचि आदि की जानकारी इस अध्याय में मिलेगी। आरिगपुड़ि रमेश चौधरी का जन्म २८ नवम्बर १९२२ में आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के वुय्यूर ग्राम में हुआ था।  उनकी माता माणिक्यम्मा धार्मिक विचारों की गृहणी थी और पिता वेंकटराम चौधरी स्वतंत्रता सेनानी थे जो गांधी जी के आदर्शों पर चलते रहे और अपनी सम्पत्ति बेचकर अनेक शिक्षा संस्थाओं में लगाते रहे।  इसके कारण आरिगपूड़ी का जीवन बचपन से ही संघर्षपूर्ण रहा।   उनका बचपन हरिद्वार स्थित गुरुकुल कांगड़ी में बीता।

एक रचनाकार की हैसियत से आरिगपूड़ि की यात्रा एक अंग्रेज़ी पत्रकार के रूप में शुरू हुई। दक्षिण भारत की प्रसिद्ध पत्रिका ‘द हिंदू’ से लेकर ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ और ‘नवभारत टाइम्स’ के संवाददाता के रूप में वे कार्यरत रहे।  फिर मासिक पत्रिका ‘दक्षिण भारत’ और ‘चंदामामा’ के सम्पादक के रूप में वे ख्याति पाई । उनके लेखादि भारत की शीर्षस्थ पत्रिकाओं जैसे- धर्मयुग, हिन्दुस्तान, सापताहिक हिंदुस्तान, आजकल, नई कहानियाँ, कादम्बिनी, सारिका आदि में छपते रहे।  प्रेमचंद, यशपाल, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, हरिकृष्ण प्रेमी, रांगेय राघव, गुरुदत्त, मन्मथनाथ गुप्त, प्रभाकर माचवे, अनंत गोपाल शेवड़े, देवेन्द्र सत्यार्थी, चंद्रगुप्त विद्यालंकार, मोहन राकेश जैसे कथाकारों से वे प्रभावित रहे।

‘आरिगपूड़ि-व्यक्ति और रचनाकार’ के तीसरे अध्याय में आरिगपूड़ि के उपन्यासों का ब्योरा दिया गया है, जिनमें नारी जीवन, ग्रामीण जीवन, सामाजिक विसंगतियों और ऐतिहासिक यथार्थों पर उनके विचार मिलते हैं।  उन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से आंध्र के जन जीवन को अपने समग्र रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। डॉ. अनिता बताती है कि ‘स्वयं एक आंध्रवासी होने के कारण आंध्र की संस्कृति से वे इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अपने कुछ उपन्यासों में आंध्र की प्रथा के अनुसार लड़की के रजस्वाला के अवसर पर किए जानेवाले उत्सव का भी चित्रण निस्संकोच रूप से कर डाला तथा हिंदी भाषी पाठकों को आंध्र की संस्कृति से परिचित करवाया है।’

चौथे अध्याय में आरिगपूड़ि को डॉ.अनीता ने कहानीकार के रूप में  प्रस्तुत किया है।  कहानीकार आरिगपूड़ि का मानना था कि "कहानी की अनेक परिभाषाएँ हैं, याने दूसरे शब्दों में इसकी कोई निश्चित परिभाषा ही नहीं है।...लेखक को इस क्षेत्र में पर्याप्त स्वतंत्रता रहती है।  कहानी वह इतिहास है जिसमें घटनाएँ लेखक की आज्ञा पर एक विशेष उद्देश्य से घटती हैं। वास्तविकता ही लेखक का कल्पना पथ है।"

पुस्तक के पांचवे अध्याय में आरिगपूड़ि को कवि, नाटककार, एकांकीकार, अनुवादक तथा आलोचक के रूप में देखते हुए उनकी रचनाधर्मिता की पड़ताल की गई है।  डॉ. अनीता बताती हैं कि स्वयं आरिगपूड़ि ने यह स्वीकार किया था कि "कवि की सामग्री कवि के अंदर होती है।  कविता कवि की प्रतिक्रिया है।  उसको क्रिया, प्रतिक्रिया, सामग्री, द्वंद्व, प्रक्रिया... इन सबको अपनी रचना में देने की आवश्यकता नहीं है।  यह व्यक्तिगत है और उसका चिंतन निष्कर्षात्मक है, अगर कहीं क्रमबद्ध रूप में है तो।"  इसी प्रकार लेखक के दायित्व पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वे कहते हैं कि "लेखक वह है जो जनसाधारण की भावनाओं को अनुभवों को संदर्भानुसार वाणी देता है।  उसके कष्ट सुखों को, कलात्मक रूप में अभिव्यक्त करता है, जो व्यक्ति को, समाज के साथ जोड़कर दोनों का यथोचित स्थान और परस्परावलंबन के आधार पर अपने अपने दायित्व का बोध कराता है।"

पुस्तक के उपसंहार में लेखिका बताती है कि "साहित्य के माधयम से आरिगपूड़ि ने हिंदी तथा अहिंदी का भेदभाव दूर करना चाहा था।  जब कभी बोलने या लिखने का अवसर मिलता तो वे अपने को ‘अहिंदी भाषी’ नहीं कहलाना चाहते थे।  ‘हिंदी साहित्यकार’ के रूप में प्रसिद्ध होने की अतीव लालसा उन में थी।"  

अप्रैल १९६९ में जब आरिगपूड़ि को पहली बार दिल का दौरा पड़ा था तो उन्होंने कहा था कि ‘शायद अप्रैल का महीना मेरी जान लेकर ही रहेगा।’ और यह कथन उस समय सत्य सिद्ध हुआ जब २८ अप्रैल १९८३  को उनके प्राण पखेरू उड़ गए।  शायद ऐसे ही समय के लिए उन्होंने लिखा था-

मैं उड़ चला, विहग-सा
न वियोग का खेद
न विदा का विषाद
एकाकी, सोत्साह
निर्लज्ज, निर्भय
सजग निरीक्षक-सा
नीड शून्य मेरा।


पुस्तक विवरण:

पुस्तक का नाम: आरिगपूड़ि- व्यक्ति और रचनाकार
लेखक : डॉ. अनीता
मूल्य: २७५ रुपये
प्रकाशक: मिलिंद प्रकाशन
४-३-१७८/२, कन्दास्वामी बाग
सुलतान बाज़ार, हैदराबाद-५०० ०९५.

12 टिप्‍पणियां:

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

इनका नाम पहली बार सुना है।

केवल राम ने कहा…

साहित्य के हस्ताक्षर से परिचय करवाने के लिए आपका आभार

Sunil Kumar ने कहा…

नए साहित्यकारों से परिचय करवाने के लिय आभार

ZEAL ने कहा…

बड़े-बड़े साहित्कारों का यहाँ परिचय मिल जाता है । आपका प्रयास अनुकरणीय है ।

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

आरिगपूड़ि और आलूरी बैरागी जैसे बड़े हिंदी साहित्यकारों से हिंदी जगत का प्रायः अपरिचित रहना दुर्भाग्य का विषय है. ऐसा इसलिए हुआ कि तेलुगुभाषी ये दोनों साहित्यकार इतिहास लेखकों की उपेक्षा का शिकार रहे हैं.आप इनकी ओर लोगों का ध्यान खींचकर बड़ा महत्व का काम कर रहे हैं.

amit kumar srivastava ने कहा…

nice introduction..

Suman ने कहा…

bhai ji,
hamesha achhi jankari dete hai......
bahut aabhar.......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मैं उड़ चला, विहग-सा
न वियोग का खेद
न विदा का विषाद
एकाकी, सोत्साह
निर्लज्ज, निर्भय
सजग निरीक्षक-सा
नीड शून्य मेरा।

अद्भुत पंक्तियाँ।

Gurramkonda Neeraja ने कहा…

आरिगपूडि ऐसे रचनाकार हैं जो तेलुगु भाषी होने पर भी हिंदी में ही सोचते हैं और हिंदी में ही अभिव्यक्‍त करते हैं। उनके बारे में जानकारी प्रदान करके हमारे ज्ञान को और बढ़ाने के लिए धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

He is my grand father. I never knew that he is so great when he was alive. I used to call him Madras tatagaru because he stayed in Madras(chennai) l feel so happy to know about him today. I thank Internet which made me realise what he is.

Unknown ने कहा…

Dr. K. Ramadevi

Unknown ने कहा…

पड़ोसी एकांकी के रचनाकार कोन हैं ।