गुरुवार, 17 मार्च 2011

आनंद भवन- Anand Bhawan




स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र ‘आनंद भवन’   

सैंकड़ों वर्ष तक भारत पर राज्य करने वाले अंग्रेज़ शासकों ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि उन्होंने जिस भवन को अपना शासन सुदृढ़ करने के लिए बनाया है, वही कभी उनके पलायन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा!

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की कर्मस्थली तथा सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों का साक्षी रहा इलाहाबाद स्थित ‘आनंद भवन’ है जो अंग्रेज़ों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन का प्रमुख केंद्र रहा।  नेहरू परिवार के इस पैत्रिक भवन का अलग ही इतिहास है।

सन्‌ १८७१ में देश के छोटे लाट सर जॉन स्ट्रेची ने लाट मेयो की अनुमति लेकर उसी वर्ष नवम्बर में २२ एकड़ आबंटित भूमि पर लगभग १९ हज़ार रुपये की लागत से ‘स्वराज भवन’ का निर्माण करवाया था।  उस समय के अंग्रेज़ गवर्नर ने वायसराय की कौंसिल के सदस्य रहे सर सैयद अहमद खां के प्रति सम्मान दर्शाते हुए उनके पुत्र एवं इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सैयद महमूद के नाम पर इस कोठी का नाम ‘महमूद मंज़िल’ रखा।

सैयद महमूद अपने पद से इस्तफ़ा देकर जब निज़ाम, हैदराबाद के यहां चले गए तो मुरादाबाद के रायबहादुर राजा परमानन्द पाठक ने इस भवन को खरीद लिया और इसका नाम ‘पाठक निवास’ हो गया।  उन्होंने १८९९ में पं. मोतीलाल नेहरू के हाथ इसे बेच दिया जिन्होंने इसका नाम ‘आनंद भवन’ रखा।  सन्‌ १९२६ई. में जवाहरलाल नेहरू ने यह इच्छा व्यक्त की थी कि भवन का मालिकाना हक मिलने पर वह इसे राष्ट्र को समर्पित कर देंगे।  पुत्र की इच्छा का आभास होने पर बैरिस्टर मोतिलाल नेहरू ने ६अप्रेल१९३०ई. को ‘आनन्द भवन’ को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया।  उसी समय से इसका नाम ‘स्वराज भवन’ हो गया।  ‘स्वराज भवन’ १९४६ तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय भी रहा।  ‘स्वराज भवन’ को राष्ट्र के नाम समर्पित करने के निर्णय के बाद पं. मोतीलाल नेहरू ने इस पुरानी कोठी की बगल में ही एक नया भवन बनवाया और इसका नाम ‘आनंद भवन’ रखा।

लम्बे आंदोलन के बाद देश आज़ाद हुआ और अंग्रेज़ों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा।  जिस भवन को अंग्रेज़ों ने अपना शासन मज़बूत करने के लिए बनवाया था आखिरकार उसी ने उन्हें खदेड़ने में अग्रणी भूमिका निभाई। इलाहाबाद आनेवाले पर्यटक भी अब इस ऐतिहासिक धरोहर को देखे बिना नहीं रह सकते।

[दैनिक समाचार पत्र ‘स्वतंत्र वार्ता’ के १७ मार्च २०११ अंक के सौजन्य से]   


19 टिप्‍पणियां:

Suman ने कहा…

bahut khas khas jankariya dete hai aap.....
bahut bahut shukri .........

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

और भ्रष्टाचार के सारे बीज भी इसी भवन से अंकुरित हुए ! जिसकी परिणिति आज बेशरमी की सारी हदें पार गई है !:)

Gurramkonda Neeraja ने कहा…

बेहद उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद |

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लम्बा इतिहास लमेटे है आनन्द भवन।

ZEAL ने कहा…

कभी इलाहाबाद आना हुआ तो आनंद भवन ज़रूर देखेंगे।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अच्छा लगा यह जानकारी पाकर ।
आभार ।

केवल राम ने कहा…

हाँ जी स्वतंत्रता का जो आनंद आज हम ले रहे हैं इसका केंद्र आनंद भवन भी रहा है ..आपका आभार इस जानकारी के लिए

राज भाटिय़ा ने कहा…

नही जी अग्रेजॊ को नेहरु परिवार ने नही खदेडा, ओर नाही गांधी बाबा ने ही, जब इन अग्रेजो के पिछावडे लाते पडी, ओर उन्हे मुंह तोड जबाब दिया हमारे वीर बहादुर शहीदो ने, तभी हरामी भागे हे, नेहरु तो चम्चा था उन का. आज भी इस देस का सत्यनाश इसी परिवार ने किया हे, धन्यवाद
पी.सी.गोदियाल "परचेत" जी की टिपण्णी से सहमत हे जी

Luv ने कहा…

aur chowk bhi zaroor hi jaate hai, chahe karan aitihasik ho ya kuchh aur :P

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत ही अच्छी जानकारी. ....होली की हार्दिक शुभकामनायें

लघुकथा --आखिरी मुलाकात

समयचक्र ने कहा…

रंगों के पावन पर्व होली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...

Patali-The-Village ने कहा…

अच्छा लगा यह जानकारी पाकर|
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

होली की हार्दिक शुभकामनायें.

Asha Joglekar ने कहा…

अंग्रेजों ने उसे एक हिंदुस्तानी सर सैयद अहमद शाह के बेटे के नाम पर महमूद मंजिल नाम दिया ये बात कुछ हज़म नही होती ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आनद भवन का इतिहार बता दिया ... शुक्रिया ....
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

रंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

महत्‍वपूर्ण जानकरी देने के लिए आभार।

Unknown ने कहा…

It is great to know the exact history of the individual sacrifice for the present India but very much hurting the negative comments of the persons who cannot evaluate the present price of that amount 150 years back but they cannot place any second example equal to or even few percentage of that so only for abusing habits are doing so......