सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

एक अविवाहित की मौत- The death of a bachelor


एक अविवाहित की मौत  
मूल : अर्थर श्निट्ज़्लर  
भावानुवाद : चंद्र मौलेश्वर प्रसाद  

रात के दो बजे दरवाज़े पर दस्तक की आवाज सुनकर डॉक्टर की नींद खुल गई।  देखा तो पत्नी गहरी नींद में सो रही थी।  आहिस्ता से कमरे के बाहर निकलकर जब उसने दरवाज़ा खोला तो एक वृद्ध महिला सिर पर से शॉल ढके उसके सामने खड़ी थी।

‘मालिक की तबीयत एकदम खराब हो गई।’  इस आवाज़ को सुनकर डॉक्टर ने तुरंत पहचान लिया कि यह तो उसके उस दोस्त की नौकरानी है जिसने इस आयु की ढलान तक भी विवाह नहीं किया था।
‘जरा ठहरो, मैं अभी आता हूँ।’ कहकर डॉक्टर मुड़ा ही था कि नौकरानी ने कहा- ‘माफ कीजिए सर, मुझे व्यापारी और लेखक के घर भी जाना है.... सूचना देने के लिए।  मालिक ने कहा है कि सभी को बुला लाऊँ।’
‘तो क्या, मालिक के पास कोई है?’
‘हाँ, जॉन है ना।’
‘ठीक है, तुम निकलो, मैं अभी पहुँचता हूँ।’

जब दोस्त के घर पहुँचा तो डॉक्टर ने जॉन को देखा जो हाथ को हवा में लहराते हुए संकेत दे रहा था कि मालिक नहीं रहे।  डॉक्टर ने गहरी साँस ली और भीतर के कमरे में पहुँचा जहाँ उसके दोस्त की लाश बिस्तर पर पड़ी थी। 

‘यह सब कैसे हुआ?’
‘क्या बताऊँ सर, कुछ देर वे बेचैन से कमरे में घूमते रहे... मेज़ और बिस्तर के बीच और फिर आकर यहाँ लुढ़क गए।’ जॉन ने जानकारी दी।

दोस्त के बीते दिनों को याद करते हुए डॉक्टर विचारों में डूब गया।  तभी गाड़ी रुकने की आवाज़ ने उसके विचारों के तार को विराम दिया।  खिड़की से झाँक कर देखा तो उसे व्यापारी दिखाई दिया।  कमरे में आते देख डॉक्टर ने उसी तरह हाथ लहराया जैसे उसे देखकर जॉन ने लहराया था।
‘क्या! नहीं! ऐसे कैसे हो गया?’ कहकर व्यापारी अपनी टोपी मेज़ पर रख दिया और कोट के बटन ढीले करने लगा।  डॉक्टर ने बताया कि उसके आने से पंद्रह मिनट पहले ही वह मर चुका था।
‘पिछले सप्ताह ही मैंने उससे बात की थी।  डिनर के लिए आमन्त्रित किया तो उसने नकारते हुए बताया कि उसे एक ‘गुप्त अपांय्टमेंट’ है।’
‘तो क्या ... अब भी!’ कहकर इस गम्भीर माहौल में भी डॉक्टर मुस्करा दिया।  बाहर एक और गाड़ी रुकने की आवाज़ आई।  व्यापारी ने खिड़की से झाँक कर देखा। लेखक भीतर आ रहा था।

‘क्या तुम जानते हो मैं किसी शव को चौदह वर्ष बाद देख रहा हूँ... तब मैंने अपने पिता को कॉफ़िन में देखा था।’ व्यापारी ने कहा तो डॉक्टर ने टोका- ‘पर... तुम्हारी पत्नी?’
‘हाँ, उसे मैने उसके अंतिम समय से पहले देखा था, बाद में नहीं’ व्यापारी ने रूखे स्वर में कहा।

लेखक भीतर आते ही शव के पास खड़ा हो गया। कुछ देर बाद बोला-‘तो यह है हम सब से पहले जानेवाला।... पर मरने से पहले उसने हमें क्यों बुलाया था? शायद मर्सिया पढ़ने के लिए!’
‘मैं तो डॉक्टर हूँ, शायद उसे मेरी मदद की ज़रूरत महसूस हुई हो, व्यापारी से उसके कुछ व्यापारिक संबंध थे। पर तुम्हें...।’

बात करते करते तीनों मेज़ के करीब पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए।  इतने में जॉन भीतर आया और काफिन आदि की व्यवस्था के बारे में बतलाने लगा।  व्यापारी ने जॉन से पूछा कि उन्हें इस समय यहाँ बुलाने का अभिप्राय क्या है?  तब जॉन ने अपने मोटे से पर्स से एक चिट्ठी निकाली जिसमें पाँच नाम लिखे थे। उसने बताया कि जब मालिक को पाँच वर्ष पहले दिल का पहला दौरा पड़ा था, तब उन्होंने आज्ञा दी थी कि उनके देहांत पर इन पाँच लोगों को बुलाया जाय।  इन तीन व्यक्तियों के अलावा एक नाम और था जिसका देहांत हो चुका था और दूसरे व्यक्ति का पता-ठिकाना मालूम नहीं था।

तीनों मित्र इसी उधेड़बुन में थे कि आखिर ऐसी आज्ञा मृतक ने क्यों दी थी, तभी डॉक्टर की नज़र मेज़ की दराज़ से झाँकते लिफ़ाफ़े पर पड़ी।  कौतुहलवश उसने वह लिफ़ाफ़ा बाहर निकाला।  उस पर लिखा था- दोस्तों के नाम।  सब की उत्सुकता बढ़ गई।  लेखक ने झट से पत्र डॉक्टर के हाथ से खींच लिया और नाटकीय ढंग से पढ़ने लगा-
"मेरे दोस्तो, जब यह पत्र तुम्हारे हाथ लगेगा तो मैं इस लोक को छोड चुका होऊँगा।  अगर मैंने यह पत्र अपने मरने से पहले नष्ट नहीं कर दिया तो अब वह तुम्हारे हाथ में होगा।  खेद है कि पत्र पढ़ते देखकर तुम्हारे चेहरे पर आते भावों को मैं नहीं देख पाऊँगा।  यह भी सच है कि यदि मैं सही मानसिक स्थिति में रहूँगा तो मरने से पहले सम्भवतः इसे नष्ट कर दूँ क्योंकि मैं समझ सकता हूँ कि इस पत्र को पढ़ने के बाद तुम्हारे जीवन में ज़हर घुल सकता है।"

‘ज़हर घुल सकता है!’ डॉक्टर ने आश्चर्यचकित होकर कहा।  ‘आगे पढो, आगे पढ़ो....’

लेखक आगे पढ़ने लगा-
"हां, इसे क्रूर मज़ाक कह सकते हो और कुछ नहीं।  मैं तुम लोगों को अपनी तरह से चाहता हूँ, जैसाकि तुम लोग भी मुझे अपने-अपने तरह से चाहते हो।...."
‘अरे, जल्दी-जल्दी पढ़ो, पत्र के अंत को देखो’ बेचैनी जताते हुए डॉक्टर ने कहा।  व्यापारी झपट कर पत्र लेखक के हाथ से ले लिया और पत्र पर उंगली चलाते हुए पढ़ने लगा- "यह मेरा भाग्य है, मेरे मित्रो, और मैं इसे बदल नहीं सकता।  मैंने तुम्हारी पत्नियों .... सभी की पत्नियों के साथ सम्बंध बनाए थे।"  व्यापारी ने अचानक पढ़ना रोक दिया और पृष्ठ पलटकर पहले पृष्ठ को देखते हुए कहा कि यह पत्र तो नौ वर्ष पूर्व लिखा गया था।
‘आगे पढ़ो’ - लेखक ने कहा।  
"हाँ, परिस्थितियां हर एक के साथ अलग-अलग थीं।  किसी के साथ मेरा संबंध ऐसा था जैसे हम पति-पत्नी हों, तो किसी के साथ मानों एक अडवेंचर है।  तीसरी के साथ तो ऐसे साम्बंध बन गए थे कि दोनों एक साथ आत्महत्या करना चाहते थे।  चौथी को तो मैंने सीढ़ियों से धक्का दिया था क्योंकि उसने किसी और से भी संबंध बना रखे थे; और अंतिम से मेरा एक बार का ही संबंध रहा था।
"तो दोस्तो, क्या तुम्हारी साँस फूल रही है। वो क्षण मेरे और उनके सब से मधुर क्षण थे।  अब मुझे कुछ और कहना नहीं है।  मैं इस पत्र को मोड़कर इसे अपनी मेज़ की दराज़ में रख रहा हूँ।  यह पत्र तब तक यहाँ पड़ा रहेगा जब तक मैं इसे नष्ट न कर दूँ या फिर तुम लोगों के हाथ में न आ जाए।  अलविदा दोस्तो॥"

डॉक्टर ने पत्र को हाथ में लेकर उस पर सरसरी नज़र दौड़ाई और फिर व्यापारी से कहा-‘तुम्हारी पत्नी की तो पिछले साल ही मृत्यु हो चुकी है ना।  फिर भी, यह सत्य ही है।’

लेखक विचलित होकर कमरे के चक्कर लगाता हुआ बड़बड़ा रहा था- ‘सुअर का बच्चा.... साला... ’। उसे अपनी पत्नी से की गई बेवफाई के किस्से याद आने लगे जिन्हें जानकर वह कभी चिल्ला उठती तो कभी रो पड़ती थी।

डॉक्टर की आँखों के सामने अपनी सौम्य व हँसमुख पत्नी का चेहरा तैरने लगा जिसके साथ उसकी तीन संतानें भी हैं; अब पत्नी बूढ़ी हो चली है और बच्चे जवान।  उसे पंद्रह-सोलह वर्ष पूर्व की घटना याद आई जब वह भी एक स्त्री के लिए अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर दूसरे शहर में बसने की सोच रहा था।  यह तो अच्छा हुआ कि उस औरत ने किसी अन्य प्रेमी के लिए आत्महत्या कर ली और इस प्रकार उसका परिवार टूटने से बच गया था।

व्यापारी को अपनी स्वर्गवासी पत्नी की याद आई जो लम्बे अर्से तक उसके विदेश से लौटने की प्रतीक्षा करती रही। शायद तब ही...
‘शुभ रात्री, अब हमारा यहाँ क्या काम है।’ डॉक्टर की आवाज़ से दोनों मित्र भी अपने खोए खयालों से वापस यथार्थ की धरातल पर लौट आए और अपने-अपने घर के लिए निकल पड़े।

घर की ओर जाते हुए लेखक ने सोचा कि वह अपनी पत्नी से इस बारे में कुछ नहीं बताएगा।  उसने अपनी जेब पर हाथ रखा।  पत्र उसकी जेब में सुरक्षित था।  उसने तय किया कि यह पत्र अपने वसियतनामें के साथ रखेगा।  उसके सामने वह दृश्य तैरने लगा जब उसकी पत्नी उसकी कब्र पर गिर कर फुसफुसाएगी- ‘कितने महान थे तुम .... कितने अच्छे!’ 
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16 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

कहानी कई सन्देश एक साथ देती है ...लेकिन यह सन्देश सबसे ज्यादा मुखरित होता है जैसे को तैसा .....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नयी सी कहानी, पहले कभी न पढ़ी जैसी।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बेचारा लेखक, उसका साहित्यिक मन खयाली पुलाव ही पकाता रह जाता है जिन्दगी भर :) मगर ऐसा पापी चुटकी में हार्ट अटैक से मर कैसे गया उसे तो ........कलयुग है न :)

बटव: आपने मेरी हाल की कहानी पीच्ची पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी :)

Satish Saxena ने कहा…

अलग ही कहानी ! शुभकामनायें भाई जी !

डॉ टी एस दराल ने कहा…

कमाल है , पत्र पढ़कर किसी को हार्ट अटैक नहीं हुआ ।
लगता है सारे के सारे एक ही थैली के चट्टे बट्टे थे ।

विशाल ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कहानी.
अनोखी तो है पर यथार्थ के बहुत ही करीब.
आपकी चुनिन्दा कहानियां बहुत ही अद्भुत होती हैं.
सलाम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर मैने इसे पहले भी कही पढा हे याद नही कहा?

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

विदेशी कहानी है जहाँ ये सब जीवन का हिस्‍सा हैं लेकिन भारत के लिए अजूबा है।

सञ्जय झा ने कहा…

bilkul alag kahani.....bahut achhi lagi....

pranam.

ZEAL ने कहा…

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भारत में ऐसा नहीं होता । एक स्त्री के लिए सम्मान और भी बढ़ जाता है जब वो दोस्त की पत्नी होती है । भाई बहन का रिश्ता होता है मित्र की पत्नी के साथ। भैया और भाभी बोलते हैं एक दुसरे कों

अजीत गुप्ता जी की बात से सहमत हूँ।

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ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

ज़िन्दगी के राज़ छुपे ही रहें तो अच्छा है !
कहानी अच्छी है !

Arvind Mishra ने कहा…

मैं तो आपके चयन की दाद देता हूँ बिना किसी पूर्वाग्रह के जस के तस प्रस्तुत कर दी कहानी ...

Suman ने कहा…

rochak lagi kahani.bahut sunder anuvad karte hai aap prasad ji........

amit kumar srivastava ने कहा…

interesting ......

बेनामी ने कहा…

हुम्म!

रंजना ने कहा…

पश्चिमी परिवेश में यह एक रोमांचक कहानी कहलायेगी,पर भारतीय परिपेक्ष्य में अविश्वसनीय...

पर जो भी हो ,कहानी पाठक को बाँध कर घोर उत्सुक कर रखती है अंत तक..

आपके श्रम के लिए बहुत बहुत आभार....