गुरुवार, 20 जनवरी 2011

ओ. हेनरी -O.HENRY


प्रेस की शक्ति   
मूल  : ओ.हेनरी   


[विलियम सिडनी पोर्टर[(१८६२-१९१०) नार्थ केरोलिना के ग्रीन्स्बोरो में पैदा हुए थे।  दो वर्ष आस्टिन में एक बैंक कर्मचारी रहे। जब उन पर गबन का आरोप लगा तो वे होन्डारुस भाग गए।
विलियम सिडनी पोर्टर ने ओ.हेनरी के उपनाम से कहानियाँ लिखी और इसी नाम से साहित्य जगत में उन्हें ख्याति मिली।  उनकी कहानियों का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। उनकी कहानी ‘ए न्यूज़पेपर स्टोरी’ का भावानुवाद प्रस्तुत है।]


सुबह के आठ बजे दुकान पर समाचार पत्र के ताज़ा अंक रस्सी पर लटक रहे थे।  ग्राहक चलते फिरते समाचार पत्र के शीर्षक देखते या फिर एक पेन्नी का सिक्का डिब्बे में डाल कर एक अंक खींच लेते। अपनी कुर्सी पर बैठा दुकानदार ग्राहक की ईमानदारी पर नज़र रखे हुए था।

हम जिस समाचार पत्र  की बात कर रहे हैं वह एक ऐसा पत्र है जो समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ परोसता है।  इसलिए इस पत्र को एक शिक्षक, पथप्रदर्शक, हिमायती, सलाहकार और घरेलु परामर्शदाता का दर्जा मिला हुआ है।

आज के समाचार पत्र  में तीन अलग-अलग सम्पादकीय हैं - एक में शुद्ध एवं सरल भाषा में माता-पिता और शिक्षकों से अपील की गई है कि बच्चों का पालन-पोषण बिना मार-पीट के किया जाय। दूसरा सम्पादकीय मज़दूर नेताओं के नाम है जिसमें यह आह्वान किया गया कि वो मज़दूरों को हड़ताल करने के लिए न उकसाए।  तीसरे सम्पादकीय में पुलिस बल से मांग की गई है कि वे बल के प्रयोग से बचें और जनता से अपील है कि वे पुलिस को अपना मित्र समझें।

इन सम्पादकियों के अतिरिक्त ऐसे लेख भी हैं जिनमें युवकों को अपनी प्रेमिका का दिल जीतने के गुर बताए गए हैं; महिलाओं को सौंदर्य साधन के प्रयोग और सदाबहार सुंदरता के नुस्खे दिए गए हैं.... आदि आदि।

एक पन्ने के कोने में एक बक्से में ‘निजी’ संदेश छपा है जिसमें कहा गया है- "प्रिय जैक, मुझे माफ कर दो।  तुम सही थे।  आज सुबह ८-३० बजे मेडीसन के चौथे एवन्यु के नुक्कड़ पर मुझसे मिलो।  हम दोपहर को निकल पड़ेंगे। - पश्चातापी।"

सुबह के आठ बजे दुकान पर एक युवक आया। उसके बाल बिखरे हुए थे, दाढ़ी बड़ी हुई थी और आँखों से लग रहा था कि वह रात भर जागता रहा है।  उसने एक पेन्नी का सिक्का बक्से में डाला और समाचार पत्र लेकर निकल पड़ा।  उसे नौ बजे दफ़्तर पहुँचना था और रास्ते में नाई की दुकान पर दाढ़ी भी बनवाना था। उसके पास अब समाचार पढ़ने के लिए समय नहीं था।  इसलिए समाचार पत्र को उसने अपनी पैंट  के पिछले जेब में ठूंस लिया।

वह नाई की दुकान में घुसा और फिर दफ़्तर की ओर निकल पड़ा।  उसे पता ही नहीं चला कि समाचार पत्र कब उसकी जेब छोड़कर सड़क की धूल फाँक रहा है।  तेज़ी से चलते-चलते उसने अपनी जेब पर हाथ लगाया तो पत्र गायब था।  वह कुढ़कुढ़ाता हुआ लौट ही रहा था कि उसके होंटों पर मुस्कान की बारीक लकीर उभर आई।  नुक्कड पर उसकी प्रेमिका खडी दिखाई दी।  वह दौड़ी-दौड़ी आई और उसके हाथ थाम कर बोली, "मैं जानती थी जैक, तुम मुझे माफ कर दोगे और मुझसे मिलने ज़रूर आओगे।" वह बुदबुदा रहा था- ‘क्या कह रही है, समझ नहीं आता।....ठीक है, ठीक है।’

खैर, अब हम अपने समाचार पत्र की खबर लेते हैं। तेज़ हवा का झोंका आया और समाचार पत्र सड़क पर उड़ने लगा।  पुलिसवाले ने इसे ट्रेफिक में व्यवधान मान कर अपनी लम्बी बाँहें पसारी और उसे दबोच लिया।  एक पन्ने का शीर्षक था- ‘आप की सहायता के लिए पुलिस की सहायता कीजिए’। इतने में पुलिसवाले को देखते ही बगल के बार की खिड़की से आवाज़ आई- "एक पेग आपके लिए है श्रीमानजी"।  एक ही घूँट में उसे गले के नीचे उतारते हुए वह पुनः अपनी ड्यूटी पर लग गया।  शायद सम्पादक महोदय का संदेश बिन पढ़े भी ठीक स्थान पर पहुँच गया था या फिर उस पेग का असर था!  पुलिसवाले ने अपने अच्छे मूड का प्रदर्शन करते हुए राह चलते एक लड़के की बगल में वह समाचार पत्र अटका दिया।  जॉनी ने घर पहुँच कर अपनी बहन ग्लेडिस को वह समाचार पत्र  थमा दिया।  एक पन्ने पर सुंदरता के टिप्स दिए गए थे। ग्लेडिस ने बिना देखे वह पन्ना फाडकर अपना लंच पैक लपेटा और सड़क पर निकल पड़ी;  मनचले सीटी बजा रहे थे।  काश! ‘सुंदरता के टिप्स’ का पन्ना लिखनेवाला सम्पादक इस दृश्य को देखता।

जॉनी और ग्लेडिस का पिता मज़दूर नेता था।  उसने समाचार पत्र के उस पन्ने को खींचा जिस पर मज़दूरों पर सम्पादकीय लिखा था। उसे फाड़ कर उसने पज़ल का अंश ले लिया और उसे हल करने बैठ गया।  इसका परिणाम यह हुआ कि तीन घंटों की प्रतीक्षा के बाद भी यह नेता मज़दूरों के संघर्ष पर निर्णय लेने नहीं पहुँचा। अन्य नेताओं ने यह फैसला लिया कि आंदोलन को रद्द कर दिया जाय।

जॉनी ने बचे हुए पन्नों को उस जगह खोंस लिया जहाँ मास्टर की बेंत पड़ने की अधिक सम्भावना होती है।  इस प्रकार आज उस सम्पादकीय की सार्थकता सिद्ध हुई जिसमें शिक्षकों को बच्चों से क्रूर व्यवहार न करने की बात कही गई थी।

इसके बाद अब प्रेस की शक्ति से क्या कोई इंकार कर सकता है???   





14 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

बढिया जानकारी के लिए आभार ।

Arvind Mishra ने कहा…

:) तभी तो ओ हेनरी ओ हेनरी हैं -जोरदार कहानी है -सहज और एक सांस में ही समाप्य ! आभार !

Arvind Mishra ने कहा…

दुनियावी जीवन के रोजमर्रा के कार्य विधान को नियतिवाद से खूबसूरती से जोड़ गए हेनरी !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, सब परी कथा जैसा। शक्ति तो दिख ही जाती है प्रेस की इन परी कथाओं में। पर पढ़कर कहाँ असर होता है लोगो में आजकल।

शिवा ने कहा…

बढिया जानकारी के लिए आभार ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया अनुवाद, समाचार पत्र को और किस-किस रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है , इसे बखूबी दर्शाया गया है कहानी में

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जॉनी ने बचे हुए पन्नों को उस जगह खोंस लिया जहाँ मास्टर की बेंत पड़ने की अधिक सम्भावना होती है। इस प्रकार आज उस सम्पादकीय की सार्थकता सिद्ध हुई जिसमें शिक्षकों को बच्चों से क्रूर व्यवहार न करने की बात कही गई थी।
हा...हा..हा.....

आपने अनुवाद किया है .....?

समाचार पत्र पर शायद ही किसी ने इतनी गहन खोज की हो .....
बहुत खूब .....!!

विशाल ने कहा…

आप का प्रयास बहुत सराहनीय है.बदिया रचना.समाचार पत्र के बढ़िया प्रयोग बताएं गए हैं.कुछ लोग संडास में भी समाचार पत्र ले जाते हैं.कैसे प्रयोग करते होंगे .......शोध का विषय है.

सञ्जय झा ने कहा…

bahut sundar vichar.....kaise hain chachaji....

pranam.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति........ समाचार पत्र की उपयोगिता भी हर जगह अलग अलग होती है. वाकई प्रेस की शक्ति से इंकार नहीं किया जा सकता है.

ZEAL ने कहा…

बच्चे जानते हैं कागज़ के टुकड़ों का बेहतर इस्तेमाल.

Satish Saxena ने कहा…

जल्दी होने के बावजूद, पूरा लेख बिना पढ़े न छोड़ पाया बड़े भाई ! ऐसा कोई पेपर है अपने यहाँ ??
हार्दिक शुभकामनायें आपको !

बेनामी ने कहा…

ओ हेनेरी का लेखन सदैव बान्ध लेता है। आपको धन्यवाद यह पढ़ाने के लिये।
जो ये कहानी का अखबार है न, ब्लॉगिंग के लिये बहुत आइडिया दे रहा है!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

अखबार में शक्ति तो आज भी है मगर अच्छे कामों के उदाहरण कम ही मिलेंगे !
लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ आज काफी कमज़ोर पड़ गया है