मंगलवार, 25 जनवरी 2011

गणतंत्र की आत्मकथा - On Republic Day



गणतंत्र की आत्मकथा   

चंद्र मौलेश्वर प्रसाद   


२६ जनवरी १९५० को मेरा जन्म हुआ था।  मेरी माँ - भारतमाता ने मेरा नाम गणतंत्र रखा।  मेरे जन्म पर यहाँ की सभी संतानों ने हर्षोल्लास से मेरा स्वागत किया।  मुझे अपनाने के लिए माँ के सभी रत्न लालायित हो रहे थे पर मुझे पलने-बढ़ने के लिए जवाहर की गोद में दिया गया।  मेरा लालन-पालन बड़े आरज़ुओं से होने लगा।  सभी अपनेआप को स्वतंत्र व स्वच्छंद समझने लगे।  गणतंत्र का गलत अर्थ निकाल कर कुछ लोग समझने लगे कि उनको कुछ भी करने की छूट है।  परंतु धीरे-धीरे उन्हें मेरा अर्थ समझ में आने लगा कि स्वतंत्रता के साथ कुछ दायित्व भी उनको निभाना है।

जब मैं सोलह बरस की हुई, तब मुझे समझ में आने लगा कि गण और तंत्र अलग-अलग दिशा में जा रहे हैं।  मुझे गण की चिंता सताने लगी जिन पर तंत्र बड़े मज़े से राज कर रहा था और मेरी माँ की संताने मेरे नाम पर पिसी जा रही थीं।  इतने में राष्ट्रीयकरण की ऐसी आँधी आई कि माँ के धन-दौलत की रखवाली करनेवालों का बोलबाला होने लगा।  जिस जवाहर की गोद में पलकर मैं बड़ी हुई, उसी की बेटी ने अपने मोह जाल में फँसा लिया।

अभी मैं अपनी आयु के पच्चीस वर्ष भी नहीं छू पाई थी कि मेरा अपहरण कर लिया गय़ा।  मुझ पर गर्व करनेवाली माँ की संतानों को जेल में ठूँस दिया गया।  ..... जब कभी गण पर अधिक अत्याचार होता है तो उसका जुल्मी तंत्र ढह जाता है।  ऐसा ही हुआ भी।  अत्याचार की अंधेरी रात का अंत हुआ।  जिस तरह द्वापर में, अष्टमी की रात में कृष्ण को स्वतंत्र करने के लिए बंदीगृह के ताले खुल गए थे, उसी प्रकार ‘नारायण’ को स्वतंत्र करने के लिए जेल के ताले खुल गए और अमा की अंधेरी रात में ‘प्रकाश’ की जय-जयकार गूँजने लगी।  फिर से आशा की ज्योति जल उठी और माँ की संतानों ने एक बार पुनः मेरा मंगलगान किया।  इस प्रकार मेरे आपात को काल ने लील लिया।

मुझे जन्म लिए जब आधी सदी बीत गई, उस समय नई शताब्दी के आगमन पर पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है कि कितना कुछ बीत गया, बदल गया... परंतु मेरी माँ की संताने अब भी उसी आस में जी रही थी कि तंत्र गण की सेवा के लिए जुट जाएगा। हाय री किस्मत, कुछ नहीं बदला।

पिछले वर्ष मेरी षष्टिपूर्ति हुई और अब भी देख रही हूँ कि तंत्र मेरे नाम पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके भ्रष्टाचार के कगार पर बैठा मलाई चाट रहा है और गरीब गण निराशा के चक्रव्यूह में फँसता चला जा रहा है। अब तो उसे दाल रोटी के भी लाले पड़े हुए है, दाम आसमान छू रहे है और प्याज जैसे गरीब के सहारे पर जन आँसू बहा रहे हैं तो हमारे नेता नेत्र बंद करके बैठे हुए हैं।

अपनी इस इक्सठवीं वर्षगांठ पर मै इसी आशा में बैठी हूँ कि मेरे बासठवें वर्ष के पदार्पण पर ही सही,  तंत्र सच्चे अर्थों में जनता को जनार्दन समझेगा और मेरा नाम सार्थक करेगा - जनता का ऐसा राज होगा जिसमें नेता ईमानदार होंगे और तंत्र सच्चे मन से गण की सेवा करेगा।  तब गणतंत्र  की जयजयकार होगी और मैं समझूंगी कि मेरा जन्म सफल एवं सार्थक हो गया है । जयहिंद॥
  




21 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

गणतंत्र की सुन्दर समीक्षा ।
कैसी भी हो , लेकिन हमें ये जान से भी प्यारी है ।
शुभकामनायें ।

Arvind Mishra ने कहा…

एक शोभायमान यादगार है आपका यह गणतंत्र षष्टिपूर्ति आलेख -बहुत सुन्दर!

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खूब लिखा है आपने , इधर आपने लिखना कम कर दिया है ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गणतन्त्र की व्यथा कथा, आँख खोलती पोस्ट।

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

मुझ गँवार का प्रश्न यही है संसद से सचिवालय से :
लोक गँवा के तंत्र बचा के क्या उत्ती के पात्थोगे?

राज भाटिय़ा ने कहा…

जवाहर की गोद में दिया गया बस यही गलती हो गई, किसी सुभाष चंद्र की गोद या लाल लाजपतराय या बहगत सिंह की गोद मे पलती तो हम सब को आज तुम पर नाज होता, लेकिन तुम तो पली एक गुलाम की झोली मे तो संस्कार भी वेसे ही मिले

राज भाटिय़ा ने कहा…

भगत सिंह पढा जाये बहगत सिंह की जगह, गलती के लिये माफ़ी चाहूंगा

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

गणतंत्र की व्यथा कहता बहुत ही सुंदर लेख.

ZEAL ने कहा…

इमानदार लोगों की खैर नहीं । आज बासठवें गणतंत्र पर यशवंत सोनगणे , जो इमानदारी से ड्यूटी निभाते हुए पेट्रोल पम्प की जांच करने गए थे , उनको निर्ममता से माफिया ने जला दिया।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
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Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

वाह, यह तो बहुत सुन्दर पोस्ट है..अच्छा लगा यहाँ आकर. गणतंत्र दिवस पर आपको हार्दिक बधाई....'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है .

सञ्जय झा ने कहा…

'ATHMKATHA' ACHHI BUNI HAI CHACHHA NE .........
BALAK KHUSH HUA..................

PRANAM.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अपनी इस इक्सठवीं वर्षगांठ पर मै इसी आशा में बैठी हूँ कि मेरे बासठवें वर्ष के पदार्पण पर ही सही, तंत्र सच्चे अर्थों में जनता को जनार्दन समझेगा और मेरा नाम सार्थक करेगा - जनता का ऐसा राज होगा जिसमें नेता ईमानदार होंगे और तंत्र सच्चे मन से गण की सेवा करेगा।

आदरणीय चंद्र मौलेश्वर जी ये दुआ तो हमारी भी है .....
बशर्ते अगले वर्ष जिए तो ........

और इस शानदार लेखन की आपको बधाई ....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

पीड़ा साफ़ झलक रही है चन्द्र मौलेश्वर जी !

Patali-The-Village ने कहा…

गणतंत्र की व्यथा कहता बहुत ही सुंदर लेख|शानदार लेखन की आपको बधाई

केवल राम ने कहा…

गणतंत्र की आत्मकथा के माध्यम से आपने बहुत सार्थक सन्देश देने का प्रयास किया है ...अंतिम पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं ..शुक्रिया आपका

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

अपनी इस इक्सठवीं वर्षगांठ पर मै इसी आशा में बैठी हूँ कि मेरे बासठवें वर्ष के पदार्पण पर ही सही, तंत्र सच्चे अर्थों में जनता को जनार्दन समझेगा और मेरा नाम सार्थक करेगा - जनता का ऐसा राज होगा जिसमें नेता ईमानदार होंगे और तंत्र सच्चे मन से गण की सेवा करेगा। तब गणतंत्र की जयजयकार होगी और मैं समझूंगी कि मेरा जन्म सफल एवं सार्थक हो गया है । जयहिंद॥

गणतंत्र दिवस पर बधाई

रंजना ने कहा…

बहुत सार्थक ढंग से आपने गणतंत्र की पीड़ा को चित्रित किया है...

Suman ने कहा…

bahut badhiya post......harkirat ji ke blog se sidha apke blog par ayi hun.milap me aap bhi likhate hai aur kabhi kabhar hamari bhi rachnaye chhpti hai suman patil ke namse sahayed ap bhi khabar rakhte honge. bus itnahi kahana tha ki apse istarha blog par milna huva hai. badi khushi hui apse milkar........

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आदरणीय चंद्रमौलेश्वरजी ,

शुक्रिया सलीम जी का पता देने के लिए ....
जब आप भी उसी अखबार से जुड़े हैं तो निश्चित तौर पे आप मिलते भी होंगे ...
कभी मिलें तो मेरा शुक्रिया पहुंचा दीजियेगा ....

daanish ने कहा…

aaeeye
ummeed kareiN
k aaoki har duaa meiN
asar aa paae....