शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

यहूदी वृद्धा- नेहरू परिवार की बहू



नेहरू परिवार की सब से वृद्ध यहूदी बहू 

कसौली  [हिमाचल प्रदेश] में रह रही स्व. बी.के.नेहरू की पत्नी फ़ोरी नेहरू आज भी १०२वें वर्ष की आयु में भी तंदुरुस्त और स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रही है। फ़ोरी ने अपना १०२वाँ वर्षगांठ ५ दिसम्बर २०१० को शांतिपूर्वक मनाया था। अब भी वे स्थानीय समाज सेवा में सक्रिय हैं। पर्यावरण से सम्बंधित स्थानीय संस्था ‘सोसाइटी फॉर प्रिज़र्वेशन ऑफ़ कसौली’ की हर सभा  में वे उपस्थित रह कर सक्रिय भागीदारी निभाती रहती हैं।

फ़ोरी की चर्चा नेहरू परिवार में कम ही होती है परंतु  उनकी उपस्थिति परिवार के हर विशेष अवसर पर रही है।  संजय गांधी की अचानक मृत्यु के अवसर पर इंदिरा गांधी को ढाढ़स बंधाने के लिए वह उनके निकट ही रहीं।  

यद्यपि फ़ोरी  अपने इस नाम से जानी जाती है परंतु बहुत कम लोगों को पता है उनका नाम  मग्डोल्ना फ़्रीडमॉन्न  है। मग्डोल्ना का जन्म ५ दिसम्बर १९०८ को बुडापेस्ट में हुआ था।  जब यूरोप में यहूदियों पर अत्याचार हो रहा था, उस समय फ़्रीडमॉन्न से फ़ोर्बथ रखा गया। स्कूल में फ़ोर्बथ को फ़ोरी पुकारा जाने लगा और यही नाम जीवनपर्यंत चिपक गया है।  

१९३० में उनकी भेंट बी.के.नेहरू से इंग्लैंड में हुई।  प्रेम परवान चढ़ा और १९३४ में वे एक वर्ष के लिए भारत को समझने के लिए आई; आई तो फिर लौटी नहीं। १९३५ में उन्होंने ने बी.के.नेहरू से विवाह कर लिया और उनका नाम शोभा नेहरू रखा गया।  उनके गोरे रंग को देखकर नेहरू परिवार के मिलनेवाले उन्हें कश्मीरी समझते थे। 

१०२ वर्ष के इस लम्बे जीवनकाल में फ़ोरी ने दो विश्व युद्ध की घोर अराजकता से लेकर नाज़ियों द्वारा उनके अपनों को गैस चेम्बरों में झोंके जाने की त्रासदी;  अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का स्वतंत्रता संग्राम, भारत की आज़ादी और विभाजन के बाद का खून-खराबा जैसी कई घटनाओं की साक्षी रहीं।  उसके बाद के उभरते भारत की नई उम्मीदों को भी देखा तो आज के नेताओं की नाकामी की भी चश्मदीद गवाह रहीं। इसे देश का गौरव ही कहा जाएगा कि फ़ोरी नेहरू - नेहरू परिवार की ही नहीं यहूदी जाति की भी सब से प्रौढ महिला हमारे बीच आज भी है।

[साभार:  द वीक के २ जनवरी २०११ अंक में लिखे कल्लोल भट्टाचार्जी के लेख पर आधारित]


16 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

इस नयी जानकारी के लिए आभार.

P.N. Subramanian ने कहा…

इस नयी जानकारी के लिए आभार.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

अच्छी जानकारी, वैसे वे अपनी इटालियन बहु को भी वही बुला लेती तो ज्यादा बेहतर होता :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी दी, वेसे इस परिवार ने देश को विदेशी चीजे ही दी हे,
लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

102 वर्ष में तो सारा इतिहास देख लिया होगा।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

प्रशाद जी , हमारे लिए तो यह एक दम नई जानकारी है ।
आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ।

Satish Saxena ने कहा…

नयी जानकारी दी आपने ! हार्दिक शुभकामनायें भाई जी !

Mithilesh dubey ने कहा…

इस नयी जानकारी के लिए आभार

Arvind Mishra ने कहा…

नयी जानकारी ,आभार !

सञ्जय झा ने कहा…

aapke soujanya se ek 'aitihasik' jankari mili.

pranam.

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

बहुत धन्यवाद चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी। यह प्रसंग मालुम न था।

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

मैं आपकी इस प्रस्तुति को भी आपकी वृद्धावस्था वाली लेखमाल की ही नई कड़ी मान रहा हूँ .
आशा है , आप इस तरह की और भी सामग्री खोज निकालेंगे.
इससे उस पूरी चर्चा को आज और भारत के संदर्भ से जोड़ा जा सकेगा.
स्वतंत्र वार्ता में कुछ समय पूर्व शुक्ल जी ने जो जानकारियाँ नई खोजों की दी थीं, उन्हें भी संकलन में जोड़ा जा सकता है.

शिवा ने कहा…

चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी,नमस्कार
वृद्धावस्था साहित्य में एक और नयी सामग्री , देने के लिये बहुत -बहुत धन्यवाद् .
shivkumar

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत ही अच्छी जानकारी............सुंदर प्रस्तुति.

ZEAL ने कहा…

Thanks for this informative post .