‘इंडियन’ जो भारतीय नहीं हैं
पृथ्वी के पश्चिम गोलार्ध के उत्तरी ध्रुव के पास का क्षेत्र जो अब कनाडा कहलाता है, वहाँ के मूल निवासी लगभग बीस हज़ार वर्ष पूर्व एशिया महाद्वीप से गए थे। तब एशिया और उत्तरी अमेरिका के बीच अस्सी किलोमीटर चौडी भूमि एक सेतु का काम कर रही थी। समय के साथ यह भूमि जलमग्न हो गई और अब अलास्का के इस क्षेत्र को बेयरिंग स्ट्रेट के नाम से जाना जाता है।
सन् १४९२ ई. में जब स्पेन से भारत पहुंचने का करीबी समुद्री रास्ता तलाशते हुए क्रिस्टोफ़र कोलम्बस अटलांटिक महासागर के रास्ते इंडीज़ के पश्चिमी छोर पर पहुँचा तो यह समझ बैठा कि वह भारत पहुँच गया है। तब कोलम्बस ने वहाँ के निवसियों को इंडियन कहा।
हज़ारों वर्ष पूर्व से यहाँ निवास कर रहे लोगों को पश्चिम के लोग उन्हें ‘रेड इंडियन’ या नेटीव अमेरिकन के नाम से पुकारने लगे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि करीब तीस-पैंतीस हज़ार वर्ष पूर्व जब पृथवी के उत्तरी गोलार्ध में एशियाई एवं अमरीकी भूमि जुड़ी हुई थी, तब एशिया के निवासी जानवरों का शिकार करते-करते अमरीकी धरती पर पहुँचे थे। उस समय यह धरती बर्फ़ से ढकी हुई थी। भूगोल ने करवट ली, ज़मीन पानी के भीतर चली गई और एशिया व अमेरिका बिछड़ कर अलग-अलग महाद्वीप बन गए। तब से लेकर कोलम्बस के उस धरती पर पैर रखने तक यूरोपीय लोग यहाँ के भूगोल से अनभिज्ञ थे।
उत्तर और दक्षिण अमरीका में फैले ये मूल निवासी सैकड़ों अलग-अलग भाषाओं में बात करते थे और उनके संस्कार भी भिन्न-भिन्न थे। अजटेक, इन्का, मय जैसी विकसित जातियाँ यहाँ फल-फूल रही थी। इस धरती की सभ्यता से यूरोपियों ने बहुत कुछ सीखा क्योंकि यहाँ के मूल निवासी अधिक सभ्य थे। यहाँ के निवासी खेती में भी निपुण थे। फली, अनानस, आलू, जवार, बाजरा, टमाटर आदि की खेती की जाती थी तथा वे विभिन्न मसालों का प्रयोग भी करते थे। अतिथियों का सद्भावनापूर्वक स्वागत करना उनकी संस्कृति में था।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जब से अमरीकी धरती पर यूरोपियों के कदम पड़े, तब से मूल निवासियों का शोषण तो होता ही रहा, साथ ही उन्हें लाखों की संख्या में जान से हाथ धोना पड़ा है।
अमेरिका के रेड इंडियन ही नहीं भारत के इंडियन भी इस शोषण के भुक्तभोगी रहे हैं।
6 टिप्पणियां:
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं !
और आज ये अमेरिकी ही हमें अल्पसंख्यको की सेवा भक्ती कैसे की जाए उसकी शिक्षा दे रहे है ! यह स्वाइन फ्लू इन्होने फैलाया हमारे देश में और अब अपने देश के नागरिको को आतंकवाद के हमले का बहाना करके अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हें यह कह रहे है कि भारत मत जावो वहा स्वाइन फ्लू है !
इसका मतलब तो ये हुआ ग्लोबल वार्मिंग बहुत दिनों से चल रही है और उसके शोशे से घबराने की जरूरत नहीं है . वास्तविकता तो ये है की अपनी सुरक्षा से घबराकर पश्चिम पूर्व पर आरोप लगा रहा है जबकि पश्चिम ज्यादा जिम्मेदार है इसके लिए
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
nice
बहुत सार्थक और ज्ञानवर्धक जानकारी...बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
नीरज
एक टिप्पणी भेजें