लुप्त होते अखाडे़
कबडी की तरह कुश्ती भी भारत का एक राष्ट्रीय खेल है। कुश्ती के लिए विशेष दंगल और अखाडे़ बनाये जाते हैं और पहलवान अपने गुरु से कुश्ती के पैंतरे सीखते हैं। इन अखाड़ों में न केवल कुश्ती के लिए बल्कि शारीरिक बल के लिए नियमित व्यायाम आदि पर भी बल दिया जाता है। किसी समय भारत के अखाडे़ बहुत प्रसिद्ध हुआ करते थे।
अब कुश्ती और अखाड़े धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। आज के नौजवान अखाड़ों में मिट्टी का लेप बदन पर पोत रखने या दण्ड पेलने की बजाय जिम में जाना अधिक पसंद करने लगे हैं। कभी तुलसीघाट पर घूमते हुए स्वामीनाथ जी के अखाडे़ का वह दृश्य याद आता है जहाँ युवक दण्ड पेलते, मुग्दर घुमाते या विभिन्न प्रकार के व्यायामों में व्यस्त दिखाई देते थे। इस अखाडे़ ने देश के प्रसिद्ध पहलवान दिए हैं जैसे कल्लू पहलवान, सियाराम पहलवान, अशोक पाल, राम नरेश जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम रोशन किया।
आधुनिक युग ने इन अखाड़ों को पछाड़ दिया है और उनका स्थान जिम ने ले लिया है; जहाँ विभिन्न प्रकार के आधुनिक यंत्र लगे होते हैं। अब मिट्टी का लेप और मुग्दर जैसे पिछडे़पन का प्रतीक बन गए हैं। सरकारी सहायता एवं प्रोत्साहन के अभाव में अब अखाड़ों और दंगल धीरे-धीरे इतिहास की गर्त में जा रहे हैं। इस प्रकार एक और भारतीय खेल अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है।
3 टिप्पणियां:
अखाड़े लौटेंगे फ़िर से,
विश्वास रखिये !
बात तो वाकई चिंता की है ...
हां, भूतकाल की चीज बन गये हैं। कोई अभिनेत्री इनकी प्रोमोशन कए तो शायद जान आये!
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