बुधवार, 3 जून 2009

धर्म ही नहीं जाति भी बदल रहे हैं लोग

नागरिक अपना धर्म किसी लोभ के कारण बदल रहे थे। अब यह देखा जा रहा है कि लोग राजनीतिक नीतियों के कारण अपनी जाति भी बदल रहे है और लाभ उठा रहे है। ऐसे ही एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि पहले लोग धर्म बदलते थे और अब जाति भी बदल रहे हैं। यह विचार न्यायमूर्ति काटजू जी ने उस समय व्यक्त किया जब छात्रा नीलम का प्रवेश महाराष्ट्र की सरकार ने निरस्त कर दिया और छात्रा ने कोर्ट की पनाह ली।

क्या अब समय नहीं आ गया है कि हमारे नेता आरक्षण नीति पर पुनःविचार करें और आर्थिक आधार पर सहायता पहुँचाए। तब तक ‘दलित की बेटी’ के नाम पर मुख्यमंत्री बने या सांसद के अध्यक्ष, पर वे हैं तो ‘करोडपत्नि’ ही।

4 टिप्‍पणियां:

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण ने कहा…

न्यायाधीश का यह आश्चर्य हमारे समाज की वास्तविकताओं के बारे में उनके अज्ञान को ही जाहिर करता है। सचाई यह है कि लोग निरंतर अपनी जातियां बदलते ही रहे हैं, सामाजिक सीढ़ी चढ़ने का यह एक जरिया रहा है।

जाति प्रथा कभी भी रिजिड नहीं रही है, जब लोग एक पेशा छोड़कर दूसरा पेशा अपनाते हैं, तो लोगों की जातियां भी बदल जाती हैं। निम्न जातियां उच्च जातियों का रहन-सहन, नाम, आचार-विचार अपनाकर कुछ पीढ़ियों में उच्च जातियों में शामिल हो जाती हैं।

इस सबका समाजविज्ञान में काफी विस्तार से अध्ययन किया गया है, और प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्रीनिवासन ने तो इस प्रक्रिया को संस्कृतीकारण नाम भी दे रखा है।

हां, आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए, इस पर मैं भी सहमत हूं। लेकिन यह तभी हो सकेगा जब सर्वशिक्षा का प्रबंध हो सकेगा, और हमारे देश से दुहरी शिक्षण व्यवस्था की प्रथा समाप्त होगी।

यहां अमीरों के लिए अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूल हैं, और गरीबों के लिए सरकारी हिंदी माध्यम के स्कूल। सरकारी स्कूलों में दलित वर्ग के लोग ज्यादा पढ़ते हैं। सभी नौकरियां अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के बच्चों को ही मिलती हैं। इसलिए आरक्षण की नीति से दलितों को कोई खास फायदा नहीं होता। उन्हें असली फायदा तब होगा जब देश से अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूल बंद करा दिए जाएंगे, और सभी के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था होगी। लोकतंत्र भी इसी की मांग करता है। विशेषाधिकार का उसमें कोई स्थान नहीं है।

तब आईआईटी, आईआईएम, यूपीएसी आदि के दरवाजे हमारे दलितों के लिए खुलेंगे, और आरक्षण के बल पर नहीं, बल्कि अच्छी शिक्षा के बल पर। इससे उनका और देश का असली कल्याण होगा।

इसलिए आरक्षण हटाने के साथ-साथ सर्वशिक्षा लाना होगा और इलीटिस्ट शिक्षण व्यवस्था को भी खत्म करना होगा। ये दोनों परस्पर जुड़ी बातें हैं।

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

मैं भी .बालसुब्रमण्यम जी की बातों से सहमत हूँ...!कमजोर गरीबों का भी कुछ होना चाहिए....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आरक्षण के कारण ही यह सब होता है।यदि इसे बंद करके आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगो को आरक्षण दिया जाए तो बेहतर होगा।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बालसुब्रमणियमजी, रजनीशजी तथा परमजीत जी का आभार। बालसुब्रमणियमजी, यहाँ विषय जाति बदलने की नीयत को लेकर है! वैसे तो कहा ही गया है कि जन्म से सब शूद्र होते है। परंतु यहां अपने को लोग शूद्र इसलिए प्रमाणित करना चाहते हैं कि उससे आरक्षण का लाभ उठा सके। इससे सच्चे मानों में जो दलित का जीवन गुज़ार रहे हैं, उनका हक़ छीना जा रहा है। सार्थक चर्चा के लिए आप लोगों का पुनः धन्यवाद।