गुरुवार, 19 मई 2011

दर्दे-दांत


हाय रे! ये दांत का दर्द !

कल रात डॉ. ऋषभ देव शर्मा से टेलिफिन पर बात हो रही थी।  मैंने अपने दांत के दर्द का दुखड़ा उन्हें सुनाते हुए कहा कि अब बुढ़ापे में यह सब तो होना ही है।  उन्होंने कहा कि ’अरे नहीं, अभी तो आपके सारे दांत सलामत हैं तो बुढ़े कहाँ से हो गए’। एक सत्तर वर्षीय युवक से यह कहा जाय कि वह अभी बुढ़ा नहीं है तो अच्छा लगेगा ही।  उस समय दांत का दर्द भी कुछ हल्का लगा।

डॉ. शर्मा जी ने बताया कि दांत तो बच्चों के भी हिलते हैं, दर्द करते है, झड़ जाते हैं...। बचपन की बात निकली तो याद आया कि किस प्रकार गाँव में मदारी खेल दिखाते हुए अपना माल बेचते थे।  अब यह टेक्नॉलोजी लुप्तप्रायः होती जा रही है।  अब तो टी.वी. और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हकीमों, वैद्यों के विज्ञापन देखने में आते है जो मर्द को सदा जवान बनाने का दावा करते हैं।

मुझे याद आया कि हमारे गाँव के मेले में किस प्रकार मदारी अपनी बुट्टी से एक सांप को निकालता और डमरू बजाते हुए उस सांप के गुण बतलाता।  बच्चे उसे घेर कर खड़े हो जाते। बच्चों को दूर हटाने और घेरा बनाने के लिए वह सांप को फिराते हुए डुगडुगी बजाता।  डर कर बच्चे पीछे हट जाते और उसके करतब देखते।  एक चलचित्र की तरह वह सारी घटना मेरे मानसपटल पर चल ही रही थी कि डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने अपने बचपन की घटना सुनाई।  गाँव के मैदान में मदारी डुगडुगी बजाता हुआ लोगों को इकट्ठा करने में जुट जाता है।  सबसे पहले तो उस ओर बच्चे ही आकर्षित होते हैं।  वो बच्चों को सांपों की कुछ करतबें दिखाते हुए मंजन की चर्चा करता है।  मंजन के गुण बताते हुए वह डेमांस्ट्रेशन के लिए भीड़ में से एक बच्चे को बुलाता है और उसके गंदे दांतो की चर्चा करता है।  फिर, वह अपने झोले में से एक पुडिया निकाल कर उसमें से एक भस्म देता है और बताता है कि यह नागराज दंत मंजन है जो उसके दादा के समय से सर्पराज के आशीर्वाद से उसे विरासत में मिला है।  बच्चे को उस मंजन से दांत साफ करने के लिए कहता है।  देखते ही देखते बच्चे के दांत साफ और चमकने लगते है। उसके बाद भीड़ में से किसी वृद्ध को बुलाता है और मंजन लगाने के लिए कहता।  फिर वह वृद्ध भी बतलाता है कि इससे तो उसके हिलते दांत का दर्द भी जाता रहा। बस, फिर क्या है, बड़े-बूढे सभी उसे खरीद लेते हैं।  

एक युद्ध जीतने के बाद मदारी अब अपना दूसरा माल बेचना चाहता है जो व्यसकों के लाभ के लिए होता है।  इसलिए वह बच्चों से कहता है ‘चलो बच्चो, अब तुम्हारा खेल खत्म, भाग जाओ... नहीं तो नागराज गुस्से में आ जाएँगे।’ बच्चे छँट जाते हैं।  अब वह मर्दों की मर्दानगी के कई डायलाग फ़ेंकता है और बताता है कि किस प्रकार वे अपनी मर्दानगी को लम्बे समय तक खींच सकते हैं।  फिर क्या है, फ़टाफ़ट उसकी छोटी-छोटी शीशियां चुटकी में बिक जाती है और वह झोली सम्भाले दूसरे बाज़ार की तलाश में निकल जाता है। 

डॉ.शर्मा जी से टेलिफोन पर बात खत्म हो जाती है।  इन बातों के बाद मेरे दांत का दर्द कुछ हल्का होता है। सोचता रहता हूँ कि शायद यह कहीं उस सर्पराज दंत मंजन का असर ही तो नहीं है॥ 

20 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हा हा हा ! हमने भी देखे हैं ये तमाशे । बढ़िया संस्मरण ।
उम्मीद है दांत का दर्द तो अब ठीक हो ही गया होगा ।

मनोज कुमार ने कहा…

ऐसे मजमे लगाने वाले अब कहां दिखते!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बातो मे मस्त हो गये इस लिये दांत का दर्द गायब होगया होगा.. बहुत तंग करता हे यह कमबखत दातं का दर्द तो खास कर

Kavita Vachaknavee ने कहा…

कई फकीरे नए लोगों को ऐसे ही ठगने में माहिर रहते आए हैं, बस डुगडुगी समयानुसार बदल जाती है. उनकी याद-भर से दर्द अब भी भागता है आपका ?
:) बाबा रे...

चंगे हो लो झट से.

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर संस्मरण| धन्यवाद|

डा० अमर कुमार ने कहा…

भली याद दिलायी आपने..
हिलते दाँत की खौफ़ दिखा कर मर्दानगी की दवा बेचने वाला, आखिर किस विश्वविद्यालय का MBA हुआ करता होगा ।

Suman ने कहा…

भाई जी मदारी आज भी शहरोंमे अपना
खेल दिखा रहे पर थोडासा अंदाज बदल गया है बस,
और इनके खेल में बड़े-बड़े पढ़े लिखे भी फंस जाते है !
मुझे तो लगता है आपके दांत का दर्द हमसे यह
विचार बाँटनेसे कम हुआ लगता है :)

Shah Nawaz ने कहा…

पुरानी यादें ताज़ा हो गयी हैं... :-)

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

कैसा भी दर्द हो, जब अपना बात करता है तो आराम मिलता है। दर्द के समय वैसे भी अपने बहुत याद आते हैं। दुकानदारी की यह कला आजकल एमबीए के कोर्स में होनी चाहिए, वैसे वे भी मदारी से कुछ कम नहीं होते।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ये मदारी कहां मिलेगा? हार्वर्ड में प्रोफेसर की जगह खाली है!

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

दांत का दर्द ...तौबा-तौबा...ऐसे समय नीम हकीम भी आला हकीम लगते हैं...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

देखिये, फोन से हो गया दवाई का असर।

Arvind Mishra ने कहा…

हा हा अब दनाक से दूसरा वाला अनुभव बाँट ही डालिए :) शर्मायिये नहीं -हम तनिक बड़े बच्चों का मार्गदर्शन हो जाएगा!

बलविंदर ने कहा…

यही तो है भारतीय संस्कृति, आप किसी भी सर्पदेवता के माध्यम से केवल अपनी चीजों का व्यापार ही नहीं कर सकते, बल्कि खेल देखने वाले ग्राहकों में भिन्न तरह का विश्वास भी जगा सकते हैं। असल में तो सब विश्वास, आस्था की बात है ! आप जैसे चाहे मन को समझा लें, तो बस फिर दांत का दर्द किस खेत की मूली है !
आदरणीय चन्द्रमौलेश्वर जी को इतने सुन्दर संस्मरण के लिए धन्यवाद !

Gurramkonda Neeraja ने कहा…

DOCTOR`S PRESCRIPTION:

1.CIPROFLAXIN
2.BRUFEN
3.HOT WATER GARGELLING
4.ABOVE ALL SHARING PAIN WITH SOMEONE DEAR.

TRY THE MEDICINE ACCORDING TO YOUR CONVENIENCE (WHICH U THINK AS THE BEST) AND SEE THE RESULT.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर, आमतौर पर अक्सर होने वाली बातों को जिस खूबसूरती से आपने शब्दों में ढाला है। तारीफ के काबिल है। वैसे ऐसी बातों के सुनने के बाद मुझे लगता दांत का दर्द ना सिर्फ ठीक हो गया होगा, बल्कि अब कभी हुआ तो आप बताएंगे भी नहीं।

डॉ.बी.बालाजी ने कहा…

बढ़िया संस्मरण.
टीवी, सेल, कम्पूटर के ज़माने में मदारी की बात याद रखना, याद करना और उसे अपने दोस्तों को सुनाने के लिए आधुनिक माध्यम का सदुपयोग करना,
(ऐसे करतब दिखाने का काम) यह सब कुछ करना आप जैसे शब्दों के मदारी से ही संभव है.

मुझे भी अपने बचपन की बात याद आ गई.

आचार्य हजारीप्रसाद ने अच्छी पुस्तक के बारे में जो कहा था उसे मैं अच्छे लेखन के लिए भी सटीक मानता हूँ - 'वही पुस्तक उत्तम है जो पाठक को पढ़ने के बाद कुछ लिखने के लिए प्रेरित करे.'

आपका लेखन पाठक को लिखने के लिए प्रेरित करता है.

virendra sharma ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !मजमेबाजी हम सभी ने देखी है आज नेता ऐसा ही मजमा लगा रहें हैं अपना माल बेक रहें हैं .वोट लेके चलते बनतें हैं .

SANDEEP PANWAR ने कहा…

दर्द और दवाई, बहुत बढिया,

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

मेरे दांत का दर्द भी कुछ कम हुआ यह पढके