शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

प्लेग - रामधारी सिंह ’दिनकर’

अभी कविताकोश के लिए कुछ कविताएं टाईप कर रहा था, ‘दिनकर’जी की रेणुका पुस्तक से।  एक अलग रंग में लिखी उनकी कविता सामने आई तो सोचा कि इससे अपने ब्लाग की भी शोभा बढ़ाऊँ।  जैसा कि ‘दिनकर’जी ने खुद लिखा है, यह कविता पांचवी सदी ई.पू, के प्रसिद्ध यूनानी कवि एरिस्टोफ़ेन्स की कविता पर आधारित है।

प्लेग    


सब देते गालियाँ, बताते औरत बला बुरी है,
मर्दों की है प्लेग भयानक, विष में बुझी छुरी है।
और कहा करते, "फितूर, झगड़ा, फसाद, खूँरेज़ी,
दुनिया पर सारी मुसीबतें इसी प्लेग ने भेजीं।"
मैं कहती हूँ, अगर किया करतीं ये तुम्हें तबाह,
दौड़-दौड़ कर इन प्लेगों से क्यों करते हो ब्याह?

और हिफाजत से रखते हो इन्हें बन्द क्यों घर में?
जरा कहीं निकलीं कि दर्द होने लगता क्यों सर में?
तुम्हें चाहिए खुश होना यह जान, प्लेग बाहर है,
दो घंटे ही सही, मुसीबत से तो फारिग घर है।
पर, उलटे, उठने लगता तुममें अजीब उद्वेग,
हमें अकेले छोड़ किधर को गई हमारी प्लेग?

और गज़ब, खिड़की से कोई प्लेग कहीं यदि झाँके,
उठ जातीं क्यों एक साथ बीसों ललचायी आँखें?
अगर प्लेग छिप गई, खड़े रहते सब आँख बिछाये,
कब चिलमन कुछ हटे, प्लेग फिर कब झाँकी दिखलाये।
प्लेग, प्लेग कह हमें चिढ़ाओ, सको नहीं रह दूर,
घर में प्लेग बसाने का यह खूब रहा दस्तूर।*

*एरिस्तोफेन्स[यूनानी कवि: पाँचवी शताब्दी ई.पू.] की एक कविता से






6 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

कवि‍ सारी आवाजें सुन लेता है देखि‍ये उसने प्‍लेग को भी कि‍स अच्‍छी तरह सुना और देखा।

विशाल ने कहा…

बहुत अच्छी व्यंग रचना .
हम तो है ही प्लेगग्रसित.
इलाज तो बताया नहीं आपने.
सलाम.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

इस प्लेग को गले लगाने सभी रहते हैं आतुर
फिर भी प्लेग प्लेग चिल्लाये क्यों मर्द चातुर ।

पुरुष नारी के संबंधों पर बढ़िया हास्य व्यंग रचना पढवाने के लिए आभार प्रशाद जी ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सहज प्रश्न उठाये हैं।

Suman ने कहा…

ab yek pleg, pleg ke bare me kaya kah sakta hai......
jara hatkar achhi lagi.......

Suman ने कहा…

aapki rachna kal ke milap me padhi
achhi lagi, badhai.......