रविवार, 19 फ़रवरी 2012

एक खयाल


बड़ा

सदियों पहले कबीरदास का कहा दोहा आज सुबह से मेरे मस्तिष्क में घूम रहा था तो सोचा कि इसे ही लेखन का विषय क्यों न बनाया जाय।  कबीर का वह दोहा था-

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर
पथिक को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥

यह सही है कि बड़ा होने का मतलब होता है नम्र और विनय से भरा व्यक्ति जो उस पेड की तरह होता है जिस पर फल लदे हैं जिसके कारण वह झुक गया है।  बड़ा होना भी तीन प्रकार का होता है। एक बड़ा तो वह जो जन्म से होता है, दूसरा अपनी मेहनत से बड़ा बनता है और तीसरा वह जिस पर बड़प्पन लाद दिया जाता है।  

अपने परिवार में मैं तो सब से छोटा हूँ।  बडे भाई तो बडे होते ही हैं।  बडे होने के नाते उन पर परिवार की सारी ज़िम्मेदारियां भी थीं।  पैदाइशी बड़े होने के कुछ लाभ हैं तो कुछ हानियां भी हैं।  बड़े होने के नाते वे अपने छोटों पर अपना अधिकार जमा देते हैं और हुकुम चलाते हैं तो उनके नाज़-नखरे भी उठाने पड़ते हैं।  उनके किसी चीज़ की छोटे ने मांग की तो माँ फ़ौरन कहेगा- दे दे बेटा, तेरा छोटा भाई है।  छोटों को तो बड़ों की बात सुनना, मानना हमारे संस्कार का हिस्सा भी है और छोटे तो आज्ञा का पालन करने लिए होते ही हैं। परिवार में बडे होने के नुकसान भी हैं जैसे घर-परिवार की चिंता करो, खुद न खाकर भी प्ररिवार का पोषण करो आदि। अब जन्म से बडे हुए तो ये ज़िम्मेदारियां तो निभानी भी पड़ेंगी ही।

जन्म से बडे कुछ वो सौभाग्यशाली होते हैं जो बड़े घर में पैदा होते हैं।  वे ठाठ से जीते हैं और बडे होने के सारे लाभ उठाते हैं।  बडे घर में जन्मे छोटे भी बडे लोगों में ही गिने जाते हैं।  इसलिए ऐसे लोगों के लिए पहले या बाद में पैदा होना कोई मायने नहीं रखता।  उस परिवार के सभी लोग बडे होते हैं।

दूसरी श्रेणी के बड़े वो होते हैं जो अपने प्ररिश्रम से बडे बन जाते हैं।  एक गरीब परिवार में पैदा होनेवाला अपने परिश्रम से सम्पन्न होने और बुद्धि-कौशल से समाज में ऊँचा स्थान पाने वाले लोगों के कई किस्से मशहूर हैं ही।  ऐसे लोगों को ईश्वर का विशेष आशीर्वाद होता है और उनके हाथ में ‘मिदास टच’ होता है।  वे मिट्टी को छू लें तो सोना बन जाय!  अपने बुद्धि और कौशल से ऐसे लोग समाज में अपना स्थान बनाते है और बड़े कहलाते हैं।  

ऐसे बडों में भी दो प्रकार की प्रवृत्ति देखी जा सकती है।  कुछ बडे लोग अपने अतीत को नहीं भूलते और विनम्र होते है।  उनमें अभिमान नाममात्र को नहीं होता।  इसलिए समाज में उनका सच्चे मन से सभी सम्मान करते हैं।  दूसरी प्रवृत्ति के बडे लोग वे होते हैं जो शिखर पर चढ़ने के उसी सीड़ी को लात मार देते हैं जिस पर चढ़कर वे बडे बने रहना चाहते हैं।  वे अपने अतीत को भूलना चाहते हैं और यदि कोई उनके अतीत को याद दिलाए तो नाराज़ भी हो जाते हैं।  इन्हें लोग सच्चे मन से सम्मान नहीं देते;  भले ही सामने जी-हुज़ूरी कर लें पर पीठ-पीछे उन्हें ‘नया रईस’ कहेंगे।  ऐसे बड़े लोगों के इर्दगिर्द केवल चापलूस ही लिपटे रहते हैं।  कभी दुर्भाग्य से जीवन में वे गिर पडे तो उनको कोई साथी नहीं दिखाई देगा।  सभी उस पेड के परिंदों की तरह उड़ जाएंगे जो सूख गया है।

तीसरी श्रेणी के बड़े वो होते हैं जिन पर बड़प्पन लाद दिया जाता है।  इस श्रेणी में धनवान भी हो सकते हैं या गुणवान भी हो सकते हैं या फिर मेरी तरह के औसत मध्यवर्गीय भी हो सकते हैं जिन्हें कभी-कभी समय एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा कर देता है जब वे अपने पर बड़प्पन लदने का भार महसूस करते हैं।  हां, मैं अपने आप को उसी श्रेणी में पाता हूँ!

मैं एक मामूली व्यक्ति हूँ जिसे अपनी औकात का पता है।  मैं अपनी क्षमता को अच्छी तरह से परक चुका हूँ और एक कार्यकर्ता की तरह कुछ संस्थाओं से जुड़ा हूँ।  जब मुझे किसी पद को स्वीकार करने के लिए कहा जाता है तो मैं नकार देता हूँ। फिर भी जब किसी संस्था में कोई पद या किसी मंच पर आसन ग्रहण करने के लिए कहा जाता है तो संकोच से भर जाता हूँ।  कुछ ऐसे अवसर आते हैं जब मुझे स्वीकार करना पड़ता है तो मुझे लगता है कि मैं उस तीसरी श्रेणी का बड़ा हूँ जिस पर बडप्पन लाद दिया जाता है।  इसे मैं अपने प्रियजनों का प्रेम ही समझता हूँ, वर्ना मैं क्या और मेरी औकात क्या।  क्या पिद्दी, क्या पिद्दी का शोरबा! मुझे पता है कि बड़ा केवल पद से नहीं हो जाता बल्कि अपने कौशल से होता है।  ऐसे में मुझे डॉ. शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव की यह कविता [बहुत दिनों के बाद] बार बार याद आती है--

बड़ा को क्यों बड़ा कहते हैं, ठीक से समझा करो
चाहते खुद बड़ा बनना, उड़द-सा भीगा करो
और फिर सिल पर पिसो, खा चोट लोढे की
कड़ी देह उसकी तेल में है, खौलती चूल्हे चढ़ी।

ताप इसका जज़्ब कर, फिर बिन जले, पकना पड़ेगा
और तब ठंडे दही में देर तक गलना पड़ेगा
जो न इतना सह सको तो बड़े का मत नाम लो
है अगर पाना बड़प्पन, उचित उसका दाम दो!

18 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

आप वह बड़े आदमी हैं जिसे किसी से बड़े होने का प्रमाण पत्र नहीं चाहिए अर्थात आप चौथी श्रेणी में आते हैं |

Amrita Tanmay ने कहा…

" बड़े को " सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....!

ZEAL ने कहा…

मैं तो अपने घर में बीच की हूँ। न बड़े होने का मान , न ही छुटकी होने का दुलार...

ZEAL ने कहा…

Lovely post. Enjoyed reading the classification..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सच में बड़ा बनने की प्रक्रिया बहुत ही कष्टदायक है, भले ही उसके स्वाद का क्या कहना!
मेहनत और कष्ट सहने का कोई विकल्प नहीं - मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार!

Suman ने कहा…

इसी सुंदर भावनाओं की वजह से आप हमें आदरणीय है
बड़े भाई जी :)
प्यारी लगी पोस्ट !

डॉ टी एस दराल ने कहा…

एक बड़ा वह भी होता है जिसके विचार बड़े हों । सोच गहरी हो ।
हम तो आपको इसी श्रेणी में रखेंगे प्रसाद जी ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सर जी बहुत सुन्दर ढंग से बड़े को रेखांकित किया आपने !आप सभी को बड़े पर्व शिवरात्रि की मंगलमय कामनाये !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

घर में सबसे बड़े हैं, गाहे बगाहे गाम्भीर्य आ ही जाता है..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथि को छाया नहीं फल लागे अति दूर

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अच्‍छा विश्‍लेषण है। हम तो जन्‍मजात छोटे हैं और स्‍वयं को हमेशा छोटा ही पाते हैं।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…
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हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अरे ....
आप में तो बड़े होने के सारे गुण हैं ....
फिर ऐसा क्यों सोचते हैं ....
बहुत बहुत बधाई अगर आपको ऐसा कोई पद मिला तो ...
आप में क़ाबलियत है इसलिए तो कहा गया ....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत अच्छी भावनात्मक प्रस्तुति ....
शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!....

MY NEW POST ...सम्बोधन...

Pallavi saxena ने कहा…

अच्‍छा विश्‍लेषण है। हम तो जन्‍मजात छोटे हैं और स्‍वयं को हमेशा छोटा ही पाते हैं।

Vinita Sharma ने कहा…

शुभकामनाएं .....उड़ना तुम उन्मुक्त गगन में दसों दिशाओं के संग रहना
छूना पर्वत की ऊँचाई धरती की बांहों में रहना
सूरज के रथ पर चढ़ आना चन्दा के संग लोरी गाना
संध्या के झुरमुट में छुपकर जुगनूँ बन प्रकाश फेलाना
मन से तुम बौना मत होना

Pratik Maheshwari ने कहा…

हाँ बड़ा होना भी एक दुविधा है.. पर जैसे हर सिक्के के दो पहलु हैं, वैसे ही बड़े होने के भी फायदे और नुक्सान दोनों हैं..
अच्छी समीक्षा की है तरह तरह के बड़े लोगों की! :)

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bahut hi prabhavshali pravishti ....badhai