गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

स्त्री विमर्श


यौन उत्पीड़न - कितना सच, कितना झूठ

घटनाएँ २००७ की हैं जो उस समय चर्चा के केंद्र में थी और यह मुद्दा आज भी प्रासंगिक हैं।

हैदराबाद की संगीता शर्मा ने आत्महत्या कर ली।  अपने अंतिम संदेश में उसने लिखा था कि उसे यह चरम निर्णय इसलिए लेना पड़ा क्योंकि उसके साथी द्वारा यौन उत्पीड़न किया जा रहा था।  वह हाई कोर्ट की वकील थी।  उसने जो कुछ लिखा, उसका उसे पूरा अहसास रहा होगा और वह यह चाहती होगी कि कम से कम उसके मरने के बाद ऐसे कदम उठाए जाएँ जो महिला उत्पीड़न की रोकथाम के लिए कारगर हों और कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा की ओर सरकार का ध्यान जाए।

संगीता शर्मा की मृत्यु का परिणाम यह हुआ कि यह खबर कुछ दिन तक अखबारों की सुर्खियों में रही, हमेशा की तरह नेताओं ने खोज-बीन करके अपराधी को नहीं बख़्शने का वादा किया।  कुछ सामाजिक संस्थाओं ने ज़ोर शोर मचाया तो कुछ ने एक स्त्री की मानसिक असंतुलन की बात कही और मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया।

दूसरी घटना राजस्थान की है।  जयपुर जिले व सत्र न्यायालय में संध्या भारद्वाज एक कनिष्ट लिपिका के पद पर कार्यरत थी।  उन्होंने आरोप लगाया कि सालावाड पुलिस निरीक्षक राजीव दत्ता के नेतृत्व में झूठे मामले में फंसाकर उनका मानसिक व शारीरिक शोषण किया जा रहा है।  जयपुर के कई राजनैतिक और गैर-राजनैतिक संगठनों ने संध्या भारद्वाज के इस आरोप का खंडन किया और कहा कि झालावाड के अपराधिक तत्वों ने साजिशाना ढंग से संध्या के माध्यम से राजीव दत्ता को निशाना बनाया है क्योंकि उस कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपराधी तत्वों की नाक में दम कर रखा है।

एक और घटना संसद में सांसद रहे साक्षी महाराज पर आरोप की है।  उन पर आरोप लगाया गया कि वे दुर्गा भारती नामक उनकी शिष्या के साथ यौन उत्पीड़न कर रहे हैं।  गौरतलब है कि दुर्गा भारती एक साधारण परिवार की बेरोज़गार महिला थी जो साक्षी महाराज के सम्पर्क में आकर मात्र चार वर्षों में एक विद्यालय की शिक्षिका से महाविद्यालय की प्राचार्य बन गई।  जब तक दुर्गा भारती तरक्की की सीढियां चढ़ती रही और साक्षी महाराज की मुख्य शिष्या बनी रही, उसे कोई शिकायत नहीं थी।  फिर यह यौन उत्पीड़न का मामला अचानक कैसे उभरा?

ऐसे कई समाचार आए दिन आते रहते हैं जो पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियाँ बनती हैं और कुछ समय बाद उन्हें भुला दिया जाता है।  क्या ही अच्छा हो कि सनसनी फैलाने की बजाय ऐसे मुद्दों की तह तक जाएँ और अपराधी [चाहे वह पुरुष हो या स्त्री] को दण्डित करें।


17 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

यह सब ना जाने कब से होता रहा है और बस एक खबर के सिवा कुछ भी नहीं है यह ..बहुत सोचनीय स्थिति है हमारे समाज की ...विचारणीय घटनाएँ और पोस्ट ...!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्थितियाँ अभी तक अनुकूल नहीं हैं, आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच है सनसनी के बजाय अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए .....

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

घटनाओं को जब तक स्‍त्री और पुरुष के नजरिये से देखा जाएगा तब तक यही होता रहेगा। पूर्व में पुरुष एकजुट थे और वे कभी भी पुरुष को अपराधी सिद्ध नहीं होने देते थे लेकिन आज महिलाएं भी एकजुट हो रही हैं इसलिए वे भी अब महिला को अपराधी सिद्ध नहीं होने देती। यदि ऐसी घटनाओं को परिवार या समाज के परिपेक्ष्‍य में देखा जाए तो परिणाम सुखद होंगे।

Amrita Tanmay ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Amrita Tanmay ने कहा…

पुर्नीया विधायक हत्याकांड में आरोपी रूपम पाठक का भी मामला कुछ ऐसा ही है. छन कर आती ख़बरों में कितनी सच्चाई खोजी जाय.

Suman ने कहा…

हम तो वही सच समझते है जो पेपर में छपता है !
लेकिन कभी-कभी वास्तविकता कुछ ओर होती है
मामले की तह तक जाना काफी मुश्किल काम है !
बढ़िया चिंतन ........

शिवा ने कहा…

बहुत सोचनीय स्थिति है हमारे समाज की ...विचारणीय घटनाएँ और पोस्ट ...!

Pratik Maheshwari ने कहा…

नहीं जनाब ऐसा होना लगा तो वकीलों के घर पर टला लग जाएगा..
उनका काम ही इन सब मुद्दों को घसीटना है क्योंकि यहीं उनकी रोज़ी रोटी है..

और मिडिया वाले तो ऐसे हैं कि कुत्तों की तरह दम हिलाकर दौड़ते हैं, जहाँ हड्डी दिखी..
फिर जब उस हड्डी से मन उठ जाता है तो जय राम जी की हो जाती है और दूसरी हड्डी की तलाश शुरू..

कई सदियों का सिलसिला है और यूँ ही चलता रहेगा..

Arvind Mishra ने कहा…

आपके प्रेक्षण से सहमत हूँ आपने सब कह दिया ....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के विरुद्ध अब कानून बन गया है । हालाँकि कभी कभी इसका दुरूपयोग भी हो जाता है ।

ZEAL ने कहा…

महिलाओं का शोषण जारी रहेगा, जब तक पुरुष अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे। महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। फिर भी कड़े कानून कुछ तो मददगार साबित ही होंगे। तह तक कोई पहुंचना चाहे तब तो पहुंचेगा। सभी अपने आप में व्यस्त हैं , जब अपनी बहिन ,बीबी पर गुज़रती है तभी समझते हैं।

Santosh Kumar ने कहा…

‘मेरी दीवानगी पर होशवाले बहस फ़रमायें’

आपके ब्लॉग की tagline कमाल की है.
अपने देश में दोष सत्यापित करने में और सजा दिलाने में अक्सर बहुत समय लगता है. इससे अपराधियों को बढ़ावा मिलाता है.

मानसिकता में बदलाव लाना होगा, शुरुआत हम सबों को खुद से, अपने घर से करनी होगी, समाज खुद-ब-खुद स्वस्थ हो जायेगा.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com

Unknown ने कहा…

आज की महिलायें भी कम नहीं है. अति महत्वकांक्षा..

Sunil Kumar ने कहा…

हम कानून बनने और उसके टूटने का इंतजार करते रहेंगे |सर जी, यह सब घटनाएँ हमारी विकृत मानसिकता का उदहारण है अच्छा आलेख आँखें खोलने में सक्षम .........

Asha Joglekar ने कहा…

अपराधी को दंड ही तो नही मिलता । कुछ दिन खबरें उछाल कर मीडिया भी चुप हो जाता है ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दंड व्यवस्था में परिवर्तन की जरूरत है इस बानित ...