चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी-
साहित्य अकादमी में हिंदी भाषी प्रथम उपाध्यक्ष
साहित्य अकादमी की स्थापना सन् १९५४ में हुई थी। यह अकादमी भारत की २४ भाषाओं का प्रनिधित्व करती है और इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य कि आज तक राष्ट्रभाषा हिंदी का कोई भी साहित्यकार इस अकादमी का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष नहीं बना। अब यह समाचार कुछ राहत देता है कि डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को अकादमी का उपाध्यक्ष चुना गया है। इसे भी एक विडम्बना ही कहेंगे कि अकादमी के किसी भी अधिकारी का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, डॉ. तिवारी केवल २०१२ तक ही उपाध्यक्ष रहेंगे। कारण यह कि पंजाबी कवि सुतिंदर सिंह नूर के निधन पर इस रिक्त स्थान को भरने के लिए चुनाव हुआ। गुवाहाटी में सम्पन्न इस चुनाव में तीन साहित्यकारों के नाम आए- डॉ. तिवारी के साथ कन्नड नाटककार प्रसन्ना और मैथिली साहित्यकार विद्यानाथ झा विदित। चुनाव के परिणाम में डॉ. तिवारी को ४७, प्रसन्ना को १५ और विद्यानाथ झा विदित को ४ वोट मिले। इस प्रकार डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को उपाध्यक्ष पद के रिक्त स्थान पर २०१२ तक निर्वाचित घोषित किया गया। यह घोषणा अकादमी के अध्यक्ष बांग्ला साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय ने किया।
१९४० में कुशीनगर के रायपुर-भेडिहारी गाँव में जन्में डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी बचपन से ही होनहार विद्यार्थी रहे। विद्या अर्जित करने के बाद वे शिक्षक के रूप में गोरखपुर विश्वविद्यालय पहुँचे और हिंदी विभागाध्यक्ष की कुर्सी को सुशोभित करके सन् २००१ में सेवानिवृत्त हुए। अपने इस लम्बे साहित्यिक सफर में उन्होंने कई विषयों पर अपनी कलम चलाई। उन्होंने अब तक ११ ग्रंथ, ७ काव्य संग्रह, दो यात्रा संस्मरण, १६ पुस्तकों का सम्पादन आदि किया जिनमें वाङ्मय विमर्श, हिंदी साहित्य का अतीत, हिंदी का सामयिक साहित्य, बिहारी कि वाग्विभूति, नीला कण्ठ उजले बोल, काव्यांग कौमुदी उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा वे त्रैमासिक पत्रिका ‘दस्तावेज़’ के संस्थापक-सम्पादक भी हैं।
हिंदी जगत ने उन्हें बहुत सम्मान दिया है। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण की उपाधि से उन्हें सम्मानित किया तो मास्को में उन्हें पुश्किन सम्मान मिला। वर्ष २०१० उनके लिए स्मरणीय इसलिए बन गया कि उन्हें २०वां व्यास सम्मान मिला जो उनके काव्य संग्रह ‘फिर भी कुछ रह जाएगा’ के लिए दिया गया। इस सम्मान के अंतरगत पुरस्कृत साहित्यकार को ढाई लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र, शॉल आदि से सम्मानित किया जाता है।
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी साहित्य अकादमी से जुडे रहे और वे नई दिल्ली में हिंदी सलाहकार मण्डल के संयोजक के रूप में अपना योगदान दे रहे थे। अब उन्हें उपाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंप कर यह प्रमाणित हुआ धीरे धिरे ही सही, राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सम्मान मिल रहा है। वैसे, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी किसी पद की आकांक्षा हेतु कार्य नहीं करते; क्योंकि उनका मानना है---
चुटकी भर मिट्टी
चोंच भर पानी
चिलम भर आग
दम भर हवा
पूँजी है यह
खाने
और लेकर
परदेस जाने के लिए॥
11 टिप्पणियां:
आपके ब्लॉग पर ब्लॉगप्रहरी का विड्जेट नहीं पाया जाना, खेदजनक है.कृपया ब्लॉगप्रहरी के सेवाओं का मूल्यांकन इमानदारी से करें.
आपका जानकारी देने के लिए आभार, और तिवारी जी को इस उपलब्धि के लिए बहुत बहुत बधाई
Thanks for this beautiful and informative post.
डॉ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के बारे में जानकार अच्छा लगा ! इस प्रकार के लेखों का चलन नगण्य है हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए ! इन कीमती लेखों और विषयों पर कलम चलाने के लिए आपका आभार !
शुभकामनायें आपके स्वास्थ्य के लिए भाई जी !
परिचय का आभार। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें।
achhi rahi jankari
aabhar.......
सार्थक जानकारीपरक लेख के लिए साधुवाद ......
आद० तिवारी जी को हार्दिक बधाई ,,,,,उनके कार्यकाल में साहित्य का जरूर उन्नयन होगा
डॉ.विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को बधाई.
धीरे धिरे ही सही, राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सम्मान मिल रहा है। महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद.
@ "इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य कि आज तक राष्ट्रभाषा हिंदी का कोई भी साहित्यकार इस अकादमी का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष नहीं बना।"
मुझे लगता है साहित्य अकादमी में अब तक चुने जाते रहे, हिंदी भाषी मेम्बरों की उदासीनता अधिक जिम्मेवारहै !
देश में हिंदी भाषी राज्यों से चुनकर जो एक्ज़िकयूतिव सदस्य चुनकर आते हैं उन्हें शायद ही अपने दायित्व का ध्यान रहता होगा इसके विपरीत देश के अन्य भागों ( खास तौर पर दक्षिण एवं उत्तर पूर्व )से आये लोग अधिक सक्रिय हैं अपने अंचल की संस्कृति सुरक्षा को लेकर ! नतीजा यही है जिसके लिए आप दुखित हैं !
अब इस लेख को ही ले लीजिये कितने लोग पढेंगे और यदि पढेंगे तो जवाब में क्या कहेंगे ??
मैं आपकी चिंता हेतु, आपका अभिनन्दन करता हूँ !
सादर
डॉ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी से परियचय करवाने के लिये धन्यवाद
लो जी ब्लागप्रहरी जी, हम ने आपका विड्जेट लगा दिया है। भाई सुनिल जी, हर पिता अपनी संतान को आगे बढ़ता देख प्रसन्न होता है और यदि ऐसा गौरव मिले कि वह उसकी संतान के नाम से पहचाना जा रहे है तो इससे बढ़कर तो प्रसन्नता नहीं ना।
भाई सतीश सक्सेना जी, आपकी बात में दम है, तभी तो मैं प्रो. ऋषभ देव शर्मा जी के उस लेख से सहमत हूं कि हमें एक जुट होकर हिंदी के लिए काम करना है।
डॊ. डिव्या जी,पाण्डेय जी, सुमन जी, झंझट जी और भाटिया जी का आभार कि वे मुझे ब्लाग लिखने की हमेशा प्रेरणा देते रहते हैं।
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