शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मृत्यु के बाद.... Life after death


मृत्यु के बाद की अनुभूति  
चंद्र मौलेश्वर प्रसाद  

अनादि कल से मनुष्य में यह जिज्ञासा रही है कि मृत्यु के बाद क्या होता है या उस समय की अनुभूति कैसी होती है।  हमारे ऋषि-मुनियों ने भी इस पर चिंतन-मनन किया परंतु जो कुछ भी उन्होंने उपनिषदों आदि ग्रंथों  के माध्यम से कहा, उसे धर्म के नाम पर या तो नकारा गया या उसका संज्ञान नहीं लिया गया।  अब भी, इस वैज्ञानिक युग में मनुष्य की जिज्ञासा इस तथ्य को वैज्ञानिक तौर पर जानने में लगी हुई है।  आधुनिक काल में कई ऐसे मामले शोधार्थियों के हाथ लगे हैं जिनसे उस अनुभूति का पता प्रमाणिक तौर पर मिल रहा है जो किसी व्यक्ति को मरते समय होता है।  इन प्रमाणों के मिलने का मुख्य कारण यह है कि आज का चिकित्सा-विज्ञान इतनी उन्नति कर चुका है कि कुछ स्थितियों में मृत घोषित व्यक्ति को विभिन्न उपकरणों की सहायता तथा चिकित्सा से पुनः जीवित किया जा सकता है।  ऐसी ही घटनाओं से प्रभावित १५० लोगों के साक्षात्कार लेकर उनकी अनुभूतियों को संकलित करनेवाले विद्वान हैं डॉ. रेमण्ड ए. गूडी जूनियर।
अपनी पुस्तक ‘लाइफ़ आफ़्टर लाइफ़’ में विस्तारपूर्वक चर्चा करते हुए डॉ. मूडी जूनियर ने बताया कि उन्हें संयोगवश कुछ ऐसे लोग मिले जिन्हे ऐसी अनुभूति का अवसर मिला था।  यहीं से उनकी शोध यात्रा शुरू हुई।  प्रायः लोग ऐसी अनुभूति की चर्चा इसलिए नहीं करते कि उनका मखौल न उड़ाया जाय।  जब ऐसे व्यक्ति शुरू-शुरू में अपने विचार और अनुभूति का ज़िक्र करीबी लोगों से करते हैं तो उनकी खिल्ली उडाई जाती है।  तब वे अपनी इन अनुभूतियों को अपने सिने में ही दबाए रखते हैं।  आश्चर्य तो यह है कि आज भी कई विशेषज्ञ इस विषय को संदेह की दृष्टि से देखते हैं।

अमेरिका की वर्जीनिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इयन स्टीविन्सन और भारत की डॉ. सत्वंत के. पसरीचा ने भी इस बात को महसूस किया कि लोग आसानी से इस तथ्य पर विश्वास नहीं करते। डॉ. पसरीचा  की पुस्तक ‘क्लेम्स ऑफ़ रीइन्कार्नेशन: एम्पायरिकल स्टडी ऑफ़ केसेस इन इंडिया’ की भूमिका में प्रो. इयन स्टिविन्सन ने कहा है कि यद्यपि पाठक को इन मामलों को मानने में दुविधा होगी परंतु यह निश्चित है कि जो कुछ भी लिखा गया है वह प्रमाणिक है और सच्चाई पर आधारित है।

डॉ. मूडी जूनियर  ने जिन १५० मामलों को चुना, उनकी प्रमाणिकता की जांच करने के बाद उसपर अध्ययन किया।  अपने अध्ययन को उन्होंने तीन वर्गों में बाँटा है।

१.ऐसे व्यक्ति, जिन्हें डॉक्टरी जाँच के बाद मृत घोषित कर दिया गया परंतु विभिन्न चिकित्सिक चेष्टाओं से पुनः जीवित हो पाये।

२.ऐसे व्यक्ति जो किसी हादसे में गम्भीर रूप से घायल हो गए और मृत्यु के करीब पहुँच गए थे अथवा चेतना खो बैठे थे।  बाद में इन व्यक्तियों की चेतना लौट आई और वे अपने अनुभव सुनाने की स्थिति में हो गये।

३. ऐसे व्यक्ति जिन्होंने मरणासन पर अपने इर्दगिर्द बैठे लोगों से उस अनुभूति का वर्णन किया और बाद में  इन लोगों ने इसे बयान किया।

सारे बयानों को एकत्रित करके उन पर शोध करने के बाद डॉ. मूड़ी जूनियर ने बड़े रोचक निष्कर्ष निकाले; जिन्हें जानने के बाद लोगों को कदाचित मृत्यु का भय नहीं रहेगा।  कुछ उदाहरण इस प्रकार  हैं :-

एक महिला प्रसूति के समय की घटना बयान करती है -"डॉक्टर ने जवाब दे दिया।  मुझे ऐसा लगा कि मैं डूब रही हूँ।  मुझे लगा जैसे कई लोग कमरे की छत को घेरे घूम रहे हैं।  ये सभी मेरे मृत रिश्तेदार और सखियां थीं।  सभी प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे और मेरा स्वागत कर रहे थे।  मैं खुद अपने आप को बहुत हल्का और प्रसन्न महसूस कर रही थी और सुख का अनुभव कर रही थी...।"

वियतनाम युद्ध में दुश्मन की गोलियों से ज़ख्मी हुए एक सिपाही का वर्णन कुछ इस प्रकार था- "मुझ पर मशीनगन से छः राउंड गोलियाँ दागी गईं।  मेरी आँखों के सामने मेरे जीवन की सारी घटनाएँ एक चलचित्र की भांति चल रही थी।  मुझे कोई कष्ट या भय की अनुभूति नहीं हो रही थी...।"

जीवन के प्रति ऐसे व्यक्तियों की मानसिकता कैसी होती है?  इस प्रश्न का विश्लेषण करते हुए डॉ. मूडी जूनियर ने पाया कि ऐसे लोगों में प्रायः दार्शनिक प्रवृत्ति आ जाती है और वे मृत्यु से नहीं घबराते हैं।  ऐसे ही एक व्यक्ति का विचार था कि अब वह मन और आत्मा को नई आशान्वित दृष्टि से देखता है।  लोगों के प्रति भी उसका दृष्टिकोण बदला है और उसके मन में घृणा या वैमनस्य के भाव नहीं आते।

दिल का दौरा पड़ा एक ऐसा व्यक्ति जो मृत्यु के दौर से गुज़र चुका है, अपनी मानसिक स्थिति के बारे में कहता है कि अब वह अपने या अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित नहीं रहता।  स्वयं तो आनंद की अनुभूति करता ही है, साथ ही अन्य लोगों के कष्टों के निवारण के लिए उन्हें परामर्श भी देता है।

ऐसी ही एक घटना से प्रभावित एक व्यक्ति मृत्यु की बात पर मुस्कुरा देता है और मानता है कि यदि किसी ने उसे मार भी दिया तो वह जानता है कि कहीं और उसे जीवन मिलेगा।  इस समझ के बाद अब उसे मृत्यु का भय नहीं रहता।

हद तो यह है कि एक व्यक्ति ऐसी घटना के बाद पुनः अपने शरीर में प्रवेश करने से हिचकिचा रहा था क्योंकि उसे अब वह शरीर पिंजड़ा लग रहा था।  मृत्यु शैय्या की उस स्थिति में उसे जो राहत मिली और आनंद आ रहा था, उसे अब वह खोना नहीं चाहता था।

विज्ञान और मनोविज्ञान की दृष्टि से आज के विशेषज्ञ मृत्यु और उस जैसी स्थितियों के बारे में काफी शोध कर रहे हैं।  विश्व भर में इस विषय पर कार्य एवं शोध चल रहा है। फिर भी, अभी भी विद्वान इस पर एक मत नहीं हो पाए हैं कि इसमें सच्चाई और दृष्टि-भ्रम का कितना योगदान है।  एक ओर भारतीय विज्ञान विशेषज्ञ प्रो. यशपाल जैसे लोग मानते हैं कि इस विषय को भी ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र के साथ कूढेदानी में फेंक देना चाहिए तो दूसरी ओर अमरीका के जाने-माने ब्रह्माण्ड विशेषज्ञ कार्ल सेगन जैसे विद्वान इस विषय के तथ्यों को गौर करने लायक समझते हैं।

इस विषय को यदि पुनर्जन्म और पूर्वानुभूति जैसे विषयों से जोड़ कर देखें तो लगता है कि हिंदू धर्म की पुनर्जन्म-आस्था वास्तविकता से दूर नहीं है।  अमेरिका के डॉ. इयन स्टीविन्सन, डॉ. रेमण्ड ए. मूडी जूनियर तथा भारत की सतवंत पसरीचा, उत्तरा हुद्दर आदि ने यही जतलाया है कि आदमी मर जाता है पर आत्मा नहीं मरती।  डॉ. मूडी जूनियर ने अपने इस शोध का निष्कर्ष निकलते हुए मृत्युशैय्या पर पड़े व्यक्ति की अनुभूति का बयान कुछ इस प्रकार किया है:-

जो व्यक्ति मृत्युशैय्या पर लेटा हुआ है, बहुत शारीरिक कष्ट झेल रहा है। उसके कानों में डॉक्टर की आवाज़ पड़ती है- ‘वह मर रहा है’। फिर उसे कई आवाज़ें सुनाई देती है जो घंटियों की तरह कानों में बजती हैं।  इसके साथ ही वह एक अंधेरी सुरंग में से गुज़रता है।  अचानक वह अपनेआप को शरीर के बाहर पाता है- अपने ही शरीर के, जिसे अब कुछ लोग घेरे बैठे हैं।  उसके शरीर को पुनः जागृत करने की कोशिश की जा रही है और वह दूर खड़ा निर्विकार भाव से देख रहा है।  वह अपनेआप को हल्का और भावनाहीन महसूस करता है।  इतने में उसके करीबी मृतक रिश्तेदार और स्वर्गीय मित्रादि प्रेमभाव से उसके समीप आते हैं।  उसकी आँखों के आगे जीवन की सारी घटनाएँ एक चलचित्र की तरह चलती रहती है।  इस हल्केपन और नीजात की अनुभूति अभी हो ही रही थी कि उसे ऐसा लगता है कि इसमें कोई बाधा आ रही है और उसे वापिस धरती की ओर धकेला जा रहा है।  वह वापिस लौटना नहीं चाहता क्योंकि उसे यहाँ अत्यंत आनंद, प्रेम और शांति का अनुभव हो रहा है।  फिर भी, किसी तरह उसे अपने शरीर में लौटना पड़ता है और वह पुनः जीवित हो उठता है।

एक बार फिर इस शरीर में प्रवेश करने के बाद अपनी इस अद्भुत अनुभूति को अपने लोगों में बाँटना चाहता है।  जब वह इसका ज़िक्र करता है तो लोग उस पर हँसने लगते हैं।  कोई भी उसकी अनुभूति पर विश्वास करने को तैयार नहीं है।  वह भी मन मार कर खामोश हो जाता है; परंतु उसके मन में मृत्यु के बाद के जीवन की अनुभूति उसकी अंतिम साँस तक रहती है - इस अनुभूति के साथ वह मृत्यु तक जीता है पर एक बदली हुई मानसिक स्थिति में- ऐसी स्थिति जिसमें राग, द्वेष और ईर्ष्या के लिए कोई स्थान नहीं है; केवल प्रेम, शाँति और आनंद की अनुभूति ही बची है...॥  


20 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

romanch ho aaya padhker

Suman ने कहा…

jo koi mrutyu ke karibse gujar kar puna jivan ko pata hai nisandeha unke anubhav, jivan ke prati dekhane ka drastikon yekdam bhinn hote hai....
bahut rochak post hai..........

सञ्जय झा ने कहा…

kash hum bhi oos romanch ka anubhaw lekar bayan kar pate.........

panam.

विशाल ने कहा…

धन्यवाद आपका इस सुन्दर पोस्ट के लिए.
सलाम.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

एक ऐसी मिस्ट्री है जो तभी सुलझेगी जब बताने के लिए खुद नहीं होंगे ।
वैसे पढने या सुनने में बड़ा आनंद आता है ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

इसके लिए भी कोई जेपीसी जांचं बिठानी पड़ेगे :)

केवल राम ने कहा…

बहुत तथ्यपूर्ण और रोचकता से अपने अपने विषय को स्पष्ट करने का प्रयास किया है ..पर यह विषय ऐसा है जिस पर कोई एक निष्कर्ष निकलना संभव नहीं है

Arvind Mishra ने कहा…

इस विषय का अच्छा प्रवर्तन किया आपने मगर नियर डेथ एक्स्पेरियेंसेस (एन डी ई ) आउट आफ बाडी एक्स्पेरिएन्सेस का मौजूदा निचोड़ यह है कि सुरंग की प्रतीति गर्भाशय मुंख से बाहर आने की जन्म की पुनारानुभूति है और आक्सीजन की कमी से ब्रेंस सेल्स में हैलुसिनेसंस -दिव्याभूनुभूति होती है -पुनर्जनम एक व्यर्थ की बात है ....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रोमांचक प्रस्तुति...... वैसे यह रहस्य है बड़ा कठीन और जटिल.....

Satish Saxena ने कहा…

किसी दिन यह तमाशा मुस्करा कर हम भी देखेंगे ....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

श्री सत्यनारायण जी की टिप्पणी-
मृत्यु के बाद की अनुभूति ' पर आपका आलेख शोधकर्ताओं द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के प्रमाणों से भारतीय-दर्शन के उस सिद्धांत को ही प्रमाणित करता है कि आत्मा अमर है | अभी कुछ माह पूर्व मैंने प्रमुख हिंदी समाचार-पत्र ' हिन्दुतान ' में एक घटना इसी जिले के एक सरकारी अस्पताल की पढी थी |
हुआ योँ कि अस्पताल में एक स्त्री बच्चे के जन्म के ८-१० दिन बाद मार गई | उसके पहले भी तीन बच्चे थे | मृत घोषित होने के बाद परिवारीजन उसे
अस्पताल से स्मशान ले जाने की तैय्यारी कर रहे थे तभी उसकी साँस चलने लगी | बौखलाए हुए अस्पताल के डाक्टर उसकी चिकित्सा में लग गये और वह दो चार दिन बाद अस्पताल से छुट्टी पा गई | सँयोग से उसकी मृत्यु के समय ही उसी अस्पताल के अन्य वार्ड में भी एक स्त्री की मृत्यु हो गई थी | उसके परिजनों ने लाश ले जा कर शव दाह भी कर दिया | जो स्त्री जीवित हो उठी थी गाँव लौट कर वह किसी को पहचान न पाती पति व बच्चों को भी नहीं | फर्राटे से अंग्रेजी बोलती जो पहले निरक्षर और गाँव की थी | उसने अपना पता बताया और बोली उसका बैंक में खाता भी है | आखिर परिवार वाले उसे बताए पते पर ले गये वहाँ उसने पति और परिजनों तथा पड़ोसियों को पहचाना | ऐसी बातें बताई जो केवल पति को ही मालूम थी | तब लोगों ने उसके हस्त्रक्षर कराये जो बैंक ,में उसके प्रमाणित हस्ताक्षर से ही थे | इस घटना पर समुचित शोध की आवस्यकता थी पर बाद के अंकों में मुझे कोई follow up नहीं मिला | यह परकाया-प्रवेश की घटना लगती है पर पीछे अनेक प्रश्न भी छोडती है जैसे क्या परकाया प्रवेश के साथ वही मस्तिष्क वही स्मृतियाँ और शारीरिक कार्य जैसे वही हस्ताक्षर करना भी परकाया से कैसे संभव संभव हुए | ऐसी विश्वस्त घटना अगर अन्य देश
में होती तो निश्चय ही उसकी तह में जाने का हर संभव उपाय किया जाता पर यहाँ इसे महत्व न दे कर भुला दिया गया | अगर आपके पास किसी शोध संस्था का पता आदि हो तो उन्हें कानपुर से प्रकाशित हिन्दुस्तान दैनिक वालों से संपर्क कर घटना के तथ्य पता करने का प्रयास करना चाहिए | मेरी क्षमता से बाहर है कि मैं इसके लिये दौड़ धूप करूं |

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

श्री सत्यनारायण शर्मा ‘कमल’ जी आगे कहते हैं-

मैंने जीवन में तीन मौतें देखी हैं जो लम्बी कष्टकर बीमारी के बाद हुईं | सब में एक समानता मिली कि मौत के तुरंत बाद चेहरा सहज
कष्टमुक्त हो कर जैसे आराम से सोये हों हो जाता है | मृत्युभय का तनिक भी भाव परिलक्षित नहीं हुआ | अभी इससे अधिक और कुछ न कहूँगा |

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आदरणीय डॉ. अरविंद मिश्र जी, इसे एस्पीरियंस कहें या हैलिस्युनेशन या कुछ और नाम दें, पर कुछ घटनाएं ऐसी हैं जिसका अभी वैज्ञानिक जगत के पास नहीं है। जब तक दुनिया को चपटी समझा गया, गेलिलियो जैसे लोग प्रताड़ित होते रहे :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आदरणीय गोदियाल जी को उस जेपीसी का चेयरमैन बनाना तय पाया गया :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

मुझे भी इस मे कुछ सच्चाई लगती हे, कॊइ ना कोई शक्ति हे जो यह सब करती हे....

Luv ने कहा…

"door pahad par pani baras raha hai, shareer bheeg gaya. Chalo, badal lun."

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह ऐसा विषय है जिसमें घुसते ही विज्ञान के कुछ आधार काँप जाते हैं। लोगों के अनुभव को आधार माने तो आत्मा का अस्तित्व है।

sagar ने कहा…

आपने जितने भी अनुभव लिखे हैं किन्तु ये उन लोगो के सम्पूर्ण अनुभव नहीं हैं
मैं आपके अनुभवो पे अपना संदेह वयक्त नहीं कर रहा हु अपितु मेरे कथन का अभिप्राय यह हैं की कुछ लोगो से मैंने यम पूरी का वृतांत भी सुना हैं।

स्वदेशी सुनील पूनियाँ भिरानी ने कहा…

मैंने भी मृत्यु के बाद की अनुभूति 21 जनवरी 2006 को लगभग 7 घंटों तक अनुभव किया था. उस दिव्यता को मैं कभी नहीं भूल सकता .

Ajay yadav ने कहा…

Arvind mishra जी सर जो भी हो डा इबेन अलेक्जेंडर उनका कार्टेक्स का ग्रे मैटर पूरी तरह से मोनोजाइंटिस बैक्टीरिया के कारण चट हो गया था जिसके कारण न्यूरान निष्क्रिय हो गये थे फिर उन्होंने क्यो ऐसा महसूस किया ।। मैं पूरी तरह से वैज्ञानिक विधियों में भरोसा रखता हूँ परन्तु कुछ ऐसी चीजें हैं जिनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परीक्षण नहीं किया जा सकता