हिंदी का बिरवा- सुधांशु चतुर्वेदी
मलय की माटी में बोया है हिन्दी का बिरवा
याद रखेंगी ही हवाएँ, पछुवा हो या पुरवा॥
कभी डॉ. महेंद्र ने डॉ.सुधांशु चतुर्वेदी के लिए यह पक्तियाँ कहीं थी जो अब उनके जीवन से जुड़ गई हैं। छत्तीसगढ़ से निकलने वाली पत्रिका ‘राष्ट्रसेतु’ का यह [फरवरी २०११] अंक डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के साहित्य-सृजन का हीरक जयंती विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया गया है। इस अंक के संपादकीय में जगदीश यादव का कहना है- "जब मैं वैदिक काल के ज्ञान-पिपासु-ऋषि पुत्रों पर गौर करते हुए वर्तमान युग में ऐसे पात्रों की खोज करता हूँ तो सामने डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी का नाम आ जाता है।"
डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के जीवन पर विस्तृत दृष्टि डालते हुए अरविंद गुर्टू ने अपने लेख ‘उत्तर-दक्षिण के सेतुबन्धु डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी’ में उनके संपूर्ण जीवन की पड़ताल की है। इस लेख में वे बताते हैं कि किस प्रकार डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी - एक हिंदी भाषी, दक्षिण की सबसे कठिन समझी जानेवाली भाषा मलयाळम की ओर प्रेरित हुए। इस दिशा में उत्प्रेरित होने का प्रसंग भी दिलचस्प है।
१९६२ में जब नेहरू जी ने यह घोषणा की कि हिंदी को राजभाषा का दर्जा उस समय तक नहीं दिया जाएगा जब तक अहिन्दी भाषी हिन्दी को अपनाने के लिए तैयार न हों, तो डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी नेहरू जी के घर गए और उनसे कहा,"आपकी हिंदी के प्रति नीति बहुत गलत है। आप इस संबंध में कोई निर्णय अकेले नहीं कर सकते।" नेहरू जी ने नवयुवक सुधांशु को समझाते हुए कहा-"मुझे सभी राज्यों के नेताओं को खुश रखना पड़ता है। आप जैसे नवयुवकों को अभी जीवन का अनुभव नहीं है।" कुछ देर रुककर कहा-"उत्तर भारतीय चाहते हैं कि हिंदी देश के कोने-कोने में पहुँचे, पर उन लोगों को दक्षिण भारतीय भाषा को अपनाने में कठिनाई होती है, ऐसा साहस वे इस कार्य में नहीं दिखाते। क्या आप कोई दक्षिण की भाषा पढ़ना चाहेंगे?" सुधांशु बोले -"आप मुझे बताएँ कि कौन-सी सबसे कठिन भाषा है जिसे मैं अपनाऊँ?" नेहरू जी ने उन्हें मलयाळम अपनाने को कहा। बस, फिर क्या था, तब से मलयाळम का अध्ययन और केरल उनकी कर्मभूमि बन गए।
मलयाळम साहित्यकार जी.शंकर कुरुप को प्रथम भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था, जो उनकी पुस्तक ‘संध्या’ के लिए मिला और जिसका हिंदी अनुवाद डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी ने किया था। डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी को मलयाळम और हिंदी में अविस्मरणीय योगदान के लिए कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। उन्होंने अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘अमृत और विष’ का हिंदी से मलयाळम का अनुवाद किया जिसे केंद्रीय साहिय अकादमी ने प्रकाशित किया था। इसी प्रकार प्रसिद्ध मलयाळम उपन्यासकार तकषी के ‘कयर’ हिंदी अनुवाद ‘रस्सी’ पर उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी का अनुवाद पुरस्कार प्राप्त हुआ था। जीवन में अब तक उन्हें देश के २१ प्रसिद्ध पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
डॉ. ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने अपने संस्मरण में कहा है कि "डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी को केंद्र में रखकर २००४ में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी ‘मलय की माटी में हिन्दी का बिरवा’ जिसके सम्पादन का अवसर मुझे मिला था....।" और वे विस्तार से बताते हैं कि किस प्रकार कई लब्धप्रतिष्ठित रचनाकारों ने अपने लेख इस पुस्तक के लिए दिए थे। ‘राष्ट्रसेतु’ के इस अंक में उनका सुधांशु चतुर्वेदी से लिया गया लम्बा साक्षात्कार भी प्रकाशित किया गया है।
एक साहित्यकार के साथ-साथ वे चार भाषाओं के ज्ञाता हैं जिनमें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी और मलयाळम है। कुछ लोग डॉ. चतुर्वेदी के ऐसे संस्मरण भी सुनाते हैं जो सामान्य बुद्धिवाला सच मानने से इन्कार भी कर सकता है। उनसे जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक घटनाओं के बारे में विनोद महाजन अपने लेख ‘पूर्वाभास की सहज शक्ति’ में बताते हैं। एक बार उनके भाई शैलेंद्र से सूचना मिली कि उनके पुत्र राम का अपहरण डाकुओं ने किया है। क्लास में पढ़ाते-पढ़ाते उन्होंने अचानक कहा-"लो, मैं आग्नेय अस्त्र चला रहा हूँ, राम को बचाने के लिए। आग लग गई, राम बच निकला।" कुछ दिन बाद चिट्ठी आई कि राम घर पहुँच गया है और उसे ले जानेवाले डाकुओं के घर में उसी दिन आग लगी थी। एक अन्य घटना में प्रो. प्रभाकर नायर के घर की है, जहाँ डॉ. चतुर्वेदी गए तो प्रो. नायर की बहू ने उन्हें लड्डू दिया। लड्डू खाते हुए उन्होंने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। जो महिला दस वर्ष से पुत्र की कामना कर रही थी उसे पुत्रधन प्राप्त हुआ। एक दिन अचानक सवेरे-सवेरे पाँच बजे प्रो. नायर के घर फोन की घंटी बजी और डॉ. चतुर्वेदी पुत्र और पुत्रवधू का हाल पूछ रहे थे। प्रो. नायर चकित रह गए कि रात डेढ़ बजे पुत्ररत्न हुआ और डॉ. चतुर्वेदी को इसकी सूचना कैसे हो गई! वे लड्डू का किस्सा जो भूल गए थे। ऐसी कई चकित करनेवाली रोचक घटनाएं इस लेख में मिलेंगी।
डॉ. चतुर्वेदी को केरल की प्रसिद्ध सन्यासिन माँ योगिनी का आशीर्वाद मिला है। उनसे सम्बंधित कुछ घटनाओं का और माँ योगिनी के वात्सल्य का ब्योरा भी इस अंक की उपलब्धि है। डॉ. चतुर्वेदी की कर्मठता, कर्तव्य परायणता और विपदाओं से जूझने की शक्ति का वर्णन विविध रचनाकारों ने अपने लेखों के माध्यम से इस अंक में दिया है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार ग्रहिता डॉ.सत्यव्रत शास्त्री, ब्रजेंद्र त्रिपाठी, दीपा गोसाई, डॉ.एच.बालसुब्रह्मण्यम और जगदीश यादव द्वारा लिए गए डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के साक्षात्कार उनके चिंतन और जीजिविषा और संघर्ष की पूरी कहानी बयान करते हैं। इस अंक के अंत में कुछ अविस्मरणीय चित्र दिए गए हैं जिनमें उन्हें पुरस्कृत करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाधी हैं तो अन्य साहित्यकारों से जुड़े चित्र भी हैं जो इस अंक को संग्रहणीय बनाते हैं।
इस अभिनंदन विशेषांक के सम्पादक-मडल के डॉ. सत्यव्रत शास्त्री, डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल, श्री महेश्वर दयालु गंगवार, डॉ. पूरन चंद टंडन, श्री दिनेश तिवारी और श्री ब्रजेन्द्र तिवारी को इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई।
डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के साहित्य-सृजन की हीरक जयंती पर हमारा शत-शत नमन॥
9 टिप्पणियां:
साहित्य के पुरोधा को नमन।
हामारी तरफ़ से भी डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के साहित्य-सृजन की हीरक जयंती पर हमारा शत-शत नमन, पर नेहरु ने जितना भी हमे धकेला न था अंधकार मे धकेला पता नही क्यो, इसे लोगो ने देश का सिर मोर बना दिया था...
होली की हार्दिक शुभकामनायें ...
धन्यवाद चंद्रमौलेश्वर जी !!!!!!
एक महान व्यक्तिकी जानकारी हमें आपके द्वारा मिला हैं !!!!!
हमारी तरफ़ से भी डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के साहित्य-सृजन की हीरक जयंती पर हमारा शत-शत नमन,, आप सभी को होली की शुभकामनाएं
achhi jankari ke liye dhanyavad...
holi ki shubhkamanaye
typing me galti ki vajah se upar tippani hata di hai.........
डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी के साहित्य-सृजन की हीरक जयंती पर हमारा शत-शत नमन,
होली की हार्दिक शुभकामनायें ...
समकालीन साहित्य सम्मलेन [मुंबई] के एक अधिवेशन में डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी से मिलने का अवसर मिला था कई वर्ष पहले.
उन्होंने बहुत बड़ा काम किया है.
उन पर विशेषांक निकाल कर जो सम्मान उनके प्रति व्यक्त किया गया है, वे उसके सच्चे अधिकारी हैं.
चंद्रमौलेश्वर जी नमस्कार !
एक महान व्यक्ति की जानकारी आपकी पोस्ट से मिली ..
डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी को नमन॥
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