सोमवार २ अगस्त २०१० को शाम छह बजे डॉ. ऋषभ देव शर्मा का साक्षात्कार सुजाता जी ने दूरदर्शन हैदराबाद [सप्तगिरि चैनल] के 'चमेली' कार्यक्रम में लिया। इस बातचीत में सुजाताजी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए डॉ.. शर्मा जी ने बताया कि उन्हें मुज़फ़्फ़रनगर [उत्तर प्रदेश] से दक्षिण में आए दो दशक हो गए हैं। इस अवधि में उन्होंने दक्षिण के आंध्र, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का सुख है कि वे हिंदी अध्यापन रूपी एक राष्ट्रीय अभियान से जुडे हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉ. ऋषभ देव शर्मा अग्रणी हिंदीसेवी संस्था दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में १९९० से कार्यरत हैं तथा सम्प्रति वे इसके विश्वविद्यालय विभाग - उच्च शिक्षा और शोध संस्थान - के हैदराबाद केंद्र में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष हैं. उनके निर्देशन में विभिन्न उपाधियों के लिए शोधकार्य करने वालों की संख्या सौ के आंकड़े के आसपास है. दक्षिण की हिंदी की बात करते हुए वे बताते हैं कि इसमें एक विशेष अंतर यह है कि यहां हिंदी प्रादेशिक नहीं, अपितु सार्वदेशिक भाषा के रूप में उभरती है जो पूरे देश को जोड़ने का काम करती है। उन्होंने आगे कहा कि हमें यह समझने-समझाने की ज़रूरत है कि हिंदी विषमरूपी और केंद्रापसारी भाषा है जो क्षेत्र और प्रयोग के रूप में अपने साथ भिन्न-भिन्न प्रादेशिक शब्दों को लेकर चलती है। इस प्रकार केंद्र से बाहर की ओर फैलने वाली है यह भाषा, जिसमें बोलियों और प्रांतीय भाषाओं से सहायता मिलती है। हिंदी सही अर्थों में अखिल भारतीय व सार्वदेशिक भाषा है, केवल उत्तर की ही भाषा नहीं।
साहित्यकार के रूप में अपनी गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए डॊ. शर्माजी ने पहले तो यह कहा कि लिखित शब्द की प्रासंगिकता और साहित्य की आनंदकारी तथा सामाजिक भूमिका सदा बनी रहेगी। अपनी बात को आगे बढाते हुए उन्होंने यह जोड़ा कि मीडिया, कंप्यूटर और लिखित प्रणाली एक दूसरे के पूरक हैं न कि परस्पर विरोधी। उन्होंने आगे बताया कि मीडिया युग की ज़रूरत के अनुसार काफी हद उन्होंने अपने आप को कंप्यूटर-साक्षर बना लिया है और अब अंतरजाल पर ‘हिंदी-भारत’ जैसे अत्यंत सक्रिय भाषा- साहित्य - संस्कृति के लिए समर्पित समूह से जुड़े हुए हैं जिसके माध्यम से लोगों को न केवल हिंदी सीखने-सिखाने का कार्य हो रहा है बल्कि सदस्यों के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी हो रहा है। उनके व्यक्तिगत ब्लाग हैं- ऋषभ उवाच, ऋषभ की कविताएं और ऋषभ की तेवरियां। अब वे कागज़ के साथ स्क्रीन पर भी लेखन कर रहे हैं। उन्होंने यह सूचना कुछ सकुचाते हुए दी कि उनकी कविताएं और परिचय विकिपीडिया और कविताकोश पर भी उपलब्ध हैं।
तेवरी आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने इस कविता आंदोलन के इतिहास को उकेरते हुए बताया कि १९८१ में पश्चिम उत्तर प्रदेश व बिहार के कुछ युवा कलमकारों द्वारा समृद्ध इस आन्दोलन की शुरूवात उनके एक परचे से हुई थी। दुष्यंत के बाद की गज़ल को आगे बढाते हुए सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रहार करने के लिए कविता में आक्रोश [तेवर] दिखाने की आवश्यकता का प्रतिपादन करते इसका घोषणा-पत्र तैयार किया गया और इस प्रकार तेवरी काव्य आंदोलन का प्रसार हुआ। उन्होंने अपनी तेवरियों के कुछ अंश भी पढ़ कर सुनाए। डॉ.ऋषभ देव शर्मा के तीन कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं|
जब उनसे यह पूछा गया कि आजकल उनकी साहित्यिक गतिविधियां क्या हैं तो डॊ. शर्मा जी ने बताया कि वे समीक्षाओं और ब्लाग के साथ-साथ कविता के क्षेत्र में आधुनिक संदर्भ में मिथको के प्रयोग की तकनीक को आजमा रहे हैं । वे मानते हैं कि मिथक के रास्ते जनता तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
अपने व्यस्त समय में से कुछ क्षण निकाल कर यह साक्षात्कार देने के लिए सुजाता जी ने उन्हें धन्यवाद दिया। डॊ. शर्मा जी ने भी दूरदर्शन का आभार व्यक्त किया।0
8 टिप्पणियां:
जी हाँ!
मैं सहमत हूँ!
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क्योंकि हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है!
Hundred percent agree. A more impressive creation. Again thanks. Always with you.
आप के लेख से सहमत है जी
डॉ शर्मा जी से मिलवाने के लिए आभार ।
अच्छा लगा साक्षात्कार ।
आशा है आप अच्छे हैं । शुभकामनायें प्रशाद जी ।
सुन्दर और सारगर्भित लेख
Sarthak post aabhaar
aapke skriy hone ka svaagat hai, mujhse aapka phone no gum ho gya hai smbhav ho to call kren
यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी.... बहुत दिनों के बाद आपको पढना बहुत अच्छा लगा...
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