बुधवार, 11 नवंबर 2009

साहित्यकारों की ‘महा’निन्दा

साहित्यकारों ने मनसे की निंदा की


अभी हाल में हुए महाराष्ट्र की विधान सभा की अराजकता पर सभी भाषाओं के साहित्यकारों ने निंदा व्यक्त की। भाषा को लेकर सपा विधायक अबु आज़मी के साथ हुए दुर्व्यवहार की कड़ी निंदा करते हुए हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र यादव ने कहा कि यह निहायत ही बेवकूफ़ भरा और बचकाना कार्य था। इस तरह के कृत्य करने वाले भूल जाते है कि मराठी भाषी डॉ. अम्बेडकर ने ही देश को बताया था कि यहां कि राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है। उन्होंने आगे कहा कि सब से बडे हिंदी के पत्रकार बाबूराव पराड़कर मराठी भाषी थे और हिंदी के एक सबसे बडे़ कवि मुक्तिबोध भी मराठी भाषी थे।

ज्ञानपीठ के निदेशक रवीन्द्र कालिया ने ध्यान दिलाया कि महाराष्ट्र की आर्थिक प्रगति पूरी तरह से हिन्दी पर आधारित है। यदि महाराष्ट्र से केवल हिन्दी फिल्मोद्योग हटा दिया जाय तो वहाँ की पूरी आर्थिक रीढ़ ही टूट जाएगी। उनका मानना है कि यह देश को बांटने की साजिश है और भाषाओं के नाम पर ओछी हरकत है जिसकी भर्सना की जानी चाहिए।

मराठी साहित्यकार सुभाष गताडे़ ने कहा कि मराठी की राजनीति के पीछे कुछ राजनीतिक शक्तियां काम कर रही हैं जिनके बारे में जानना ज़रूरी है। एक ऐसा गुट है जो राज ठाकरे को बाल ठाकरे बनाने की कोशिश में है। मराठी के वरिष्ठ कवि अरुण म्हात्रे का मानना है कि जो कुछ हुआ वह अच्छा नहीं हुआ और इस तरह की घटनाओं से लोगों में संवैधानिक संस्थाओं से लोगों का विश्वास उठ जाएगा

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अफसोसजनक घटनाक्रम!

Khushdeep Sehgal ने कहा…

राज ठाकरे का मकसद ही यही है, जितना उसकी निंदा या आलोचना होगी, पीछे समर्थकों की सेना और मजबूत होती जाएगी...लेकिन यहां राज ठाकरे से ज़्यादा दोषी महाराष्ट्र की नपुंसक सरकार है...एक बार राज को जेल में डाल कसकर औकात दिखा दी जाती तो राज का मुंह इतना नहीं खुलता...और अब तो १३ विधायक चुने जाने के बाद राज के मुंह खून और लग गया है...

जय हिंद...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

यह राजनीति का खेल ही है जहाँ बहुत ही घटिया आदमी अपनी ऊल जलूल हरकतों से एक वोट बैंक का जुगाड़ करके राजनीति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है और सज्जन लोग केवल मुँह ताकते रह जाते हैं। लोकतंत्र का यह स्वरूप यदि कुछ साल ऐसे ही चलता रहा तो देश की लुटिया डूबने में कोई कसर नहीं रह जाएगी।

शिवा ने कहा…

मनसे जैसी पार्टियों पर चुनाव आयोग को तुरंत प्रतिबंध लगा देना चाहिए और जो लोग भाषा के नाम पर राजनीती कर रहे है उनकी सदस्यता को खत्म कर देना चाहिए । राज ठाकरे से ज़्यादा दोषी महाराष्ट्र की नपुंसक सरकार है...एक बार राज को जेल में डाल कसकर औकात दिखा दी जाती तो राज का मुंह इतना नहीं खुलता...और अब तो १३ विधायक चुने जाने के बाद राज के मुंह खून और लग गया है...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

निंदनीय चीज थी इसलिए निंदा करनी ही काह्हिये थी लेकिन अपने ये मनमोहन जी क्यों मौन है ?

अर्कजेश ने कहा…

हम इस निंदा की घोर प्रशंसा करते हैं ।

Luv ने कहा…

hum bhi ninda karte hain. Oh yeah, but how about some citizen participation here? or we just gonna "hope" that govt. does something. Something on the lines of pink chaddis wud be good. Anything on your mind? unless somethin is, the participation threshold is too high for most of us.