बुधवार, 16 सितंबर 2009

गरबा के बहाने

गरबा के बहाने यह अंग प्रदर्शन! भारतीय संस्कृति या विदेशी अपसंस्कृति की ओर ले जाते कदम????

9 टिप्‍पणियां:

संजय बेंगाणी ने कहा…

एक समय था, मेरी परदादी का जमाना. तब भी ऐसे ही वस्त्र पहने जाते थे, गाँव की ही बात है. क्या वह अपसंस्कृती थी?

पंकज बेंगाणी ने कहा…

हर जगह पश्चिमवाद को कोसना गलत है! विदेशी अपसंस्कृति?? भाईसाहब रामायण काल और महाभारत के जमाने में महिलाएँ किस तरह के वस्त्र पहनती थी? तब कौन सी विदेशी संस्कृति थी.

बैकलेस चोली आज की देन नही है. ग्रामीण राजस्थान और गुजरात में यह आज भी पहनी जाती है, रोज. गरबा खेलने के लिए नहीं.

आप से असहमति.

Unknown ने कहा…

let's forgot it,mr,chandra.
jab unlogo Sanjay aur Pankaj ko apni betion ko khula chodneko jee karta hai to jane do.vo log kahte hai ki pahle ke jamane se chala a raha hai, to fir RAVAN ka nam badnam mat karo. RAVAN bhi pahle ke jamane me tha.or utha gaya tha hamari SITAJI ko
aaj yahan sita koi bhi nahi hai.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

टिप्पणियों के लिए आभार। मेरा मकसद इस चित्र के पीछे यह था कि हमारे पहरावे जो भी रहे हों, वे अंग प्रदर्शन के लिए नहीं थे। वैसे तो गुदना हमारी प्राचीन कला है पर गुदने के स्थान अलग थे। आज सारे शरीर को रंगना निश्चय ही भारतीय सभ्यता नहीं कही जा सकती। हम रामायण या महाभारत के काल में नहीं जी रहे हैं और न हम बस्तर के आदिवासियों के लिबास पर चर्चा कर रहे हैं। आज की सभ्यता, पहरावा, रहन-सहन को देखते हुए हमारा दृष्टिकोण बनाते हैं।

Vipin Behari Goyal ने कहा…

इस विषय पर हर व्यक्ति की राय भिन्न हो सकती है.क्या हम युवा वर्ग पर अपनी पसंद नापसंद थोप पाएँगे ?इससे तो पीढी अन्तराल बढेगा.

Luv ने कहा…

Personal attacks on ur blog!!! whats going on?

शरद कोकास ने कहा…

हम अपनी प्राचीन संस्क्रति की ओर लौट रहे हैं आदिम युग तक तो पहुंचेंगे ही ।

SACCHAI ने कहा…

" sahi aur sarthak baat aapne bina kuch kahe hi ched di hai ...is baat se mai bhi sahemat hu ki GARBA me ye pradashan nahi hona chahiye ....kyu ki ye ek pavitra parv hai ....koi kuch bhi kahe magar aap sahi hai ...aur jinki betiyaan hai ...vo bhi sunle ki ....." apni betiyaan anmol hoti hai "aur jo ye nahi maante hai ki ang paradashan GARBA ke waqt galat hai...unhe baccho jaisi bhasha bandh karni chahiye ...kyu paschim ka anukaran karte hai hum ? kyu barbaad kar rahe hai hamari bhavy sanskriti ko ? ..sarthak baat aapne chedi is ke liye aapka sacche dil se aabhar "

----- eksacchai {AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

http://hindimasti4u.blogspot.com

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सर, आप भी ना... और अब खुद सफाई देते हो ! हा-हा-हा-हा