प्रसिद्ध उपन्यासकार गुरुदत्त ने अपनी पुस्तक ‘भारत- गांधी नेहरू कि छाया में’ में नेहरू जी के बारे में कहाहैं :-
"एक सुंदर रथ पर एक भव्य मूर्ति बैठी हुई एक मार्ग पर चल पड़ी थी। मार्ग तट पर खड़े कोटि-कोटि जन को भी उस भव्य पुरुष ने अपने साथ आने का आह्वान किया और जन साधरण सुन्दर रथ और उस में बैठे भव्य पुरुष को देख, रथ के साथ-साथ चल पडा। उन सब का इस सुन्दर रथ के साथ चल पड़ना यह सिद्ध नहीं करता कि रथ ठीक मार्ग पर चला जा रहा था। वास्तव में जनता का मन और बुद्धि भी तो उसी कारखाने में बनी थी, जिसमें रथ पर बैठे भव्य पुरुष का मन और उसकी बुद्धि बनी थी। अतः जनता भी चल पड़ी थी, उधर ही, जिधर रथ जा रहा था।
"नेहरू जी के मन और बुद्धि ने कुछ तो किया है। सन १९४७ से १९६४ तक भारत में उद्योग-धन्धों में द्रुत गति से प्रगति हुई है। इस पर भी यह निर्विवाद ही है कि देश और जातियां उद्योग-धन्धो से ही जीवित नहीं रह सकतीं। केवल ये ही किसी जाति का जीवन है, कोई मूर्ख ही ऐसा मानेगा। इन उद्योग-धन्धों के भुलावे में जर्मनी दो बार ठोकर खा चुका है। यदि वह आज जीवित है तो अमेरिका की सहायता पा जाने के ही कारण है। पूर्वी जर्मनी का उदाहरण पाठकों के समक्ष है।
"आज अंग्रेज़ी काल से भी अधिक उद्योग और धन्धे चलाये जा रहे हैं और जन-मन अंग्रेज़ी काल से भी अधिक पतित और कष्ट में है। जनता नैतिक दृष्टि से पतनोन्मुख, मानसिक दृष्टि से हीन और शारीरिक दृष्टि से दुर्बल हो रही है। यदि यह है तो यह नेहरू काल की नीतियों के कारण ही है। १९४७ से १९६५ तक भारत में प्रत्येक बात का ह्रास हुआ है और इसमें नेहरू जी के विचारों और नीतियों का महान भाग है।"
5 टिप्पणियां:
बहुत पहले यह किताब पढ़ा था। आज आपने उसे ताजा कर दिया। अच्छी चर्चा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
नैतिक मूल्यों का पतन इसी काल में शुरू हुआ जबकि यह एक ऐसा बद्लाव का समय था कि समाज को किसी भी दिशा में ले जाया जा सकता था। इसके लिए कौन कितना दोषी था कहना कठिन भी है और नही भी। उस समय यदि कोई दृढ सकल्प व्यक्ति राष्ट्र की बागडोर सम्भाले होता तो शायद कुछ और ही होता। मेरे विचार में गलती नेता की कम उसे नेता बनाने वाले की अधिक होती है। यहाँ गाँधी जी दोषी थे। वैसे हम उस समय में जिए नहीं अब विवेचन करना सरल है।
घुघूती बासूती
आधुनिक भारत के पतन का सबसे बडा कारण गांधी - नेहरू की साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की आत्मघाती नीतियाँ हैं । गांधी जी ने तो 1919 में खिलापत आन्दोलन ( जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई सम्बन्ध नहीं था । ) को अपना नेतृत्व प्रदान कर भारत विभाजन का आधार तो जिन्ना से भी पहले रख दिया था ।
www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com
यह पुस्तक काग्रेसी चरित्र को उजागर करता है
इसे हर हिदुस्तानी को अवश्य पढना चाहिए
मुझे यह पुस्तक चाहिए कहा मिल सकेगी
जानकारी दे।
एक टिप्पणी भेजें