ये घुटने है या बला!
दिल्ली के सुप्रसिद्ध डॉ. टी.एस.. दराल- ब्लाग जगत के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपनी चिकित्सा के तजुर्बे से वे मानव घुटने के बारे में बताते हैं कि " इन्सान में बुढ़ापा सबसे पहले घुटनों में ही आता है । इसीलिए :
* ४० + होते होते आपके घुटनों की व्यथा एक्स रेज समझने लगते हैं ।
* ५० + होने पर आपको भी आभास होने लगता है ।
* ६० + होने पर सब को पता चल जाता है कि आपके घुटने ज़वाब दे चुके ।
* ७० + होकर आप भी भाइयों में भाई बन जाते हैं क्योंकि अब तक सब एक ही किश्ती के सवार बन चुके होते हैं ।"
जब मैं घुटने के बारे में सोंचने लगा तो मुझे बुढापे की चिंता तो नहीं हुई क्योंकि बूढ़ा तो हो ही गया हूँ फिर भी मेरे घुटने अभी तक ढोने में सक्षम हैं। मैं जितना सोचता गया, उतना ही इस ‘घुटने’ के कई रूप सामने आने लगे। कुछ रूप जो मस्तिष्क में घूम रहे हैं, उन्हें यहाँ उँडेल देता हूँ :)
इन घुटनों के कारण कभी महिलाओं को सज़ा भी भुगतनी पड़ती है। आप को याद होगी वह घटना जब सूडान की एक ईसाई किशोरी को घुटने की लंबाई तक की स्कर्ट पहनने को एक जज ने अभद्र करार देते हुए उसे 50 बार कोड़ा मारने की सजा सुनाई है। पता नहीं मिनि स्कर्ट पहनने पर कितने कोड़े पड़ते!!
ऐसे में घुटने टेकने के सिवाय चारा भी क्या हो सकता है! घुटने तो हमारे खिलाडी भी खेल के मैदान में यदाकदा टेक ही देते हैं। जब वेस्ट इंडीज़ से भारत हारा था तो यह समाचार पढ़ने को मिला था-
"भारतीय बल्लेबाजों ने कब्रगाह बनी फिरोजशाह कोटला की पिच पर बेहद निराशाजनक प्रदर्शन करते हुए वेस्टइंडीज के खिलाफ पहले क्रिकेट टेस्ट के दूसरे दिन आज यहां घुटने टेक दिए ।" अब ऑस्ट्रेलिया में जो हश्र हो रहा है, उसका अनुमान आप भी लगा ही सकते हैं।
इसी प्रकार जब गायक दलजीत ने कुछ अभद्र शब्दों का प्रयोग किया तो उसे माफ़ी मांगनी पड़ी थी। तब यह समाचार देखने में आया था कि अपने गीतो में औरतों के प्रति अपमानजनक शब्दों का इस्तमाल करने पर दलजीत ने अखिरकार मांफी मांग ली हैं। पंजाब केसरी के दफ्तर में विशेष तौर पर आए दलजीत ने घुटने टेक कर मांफी मांगते हुए कहा कि उसने कभी भी औरतों के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तमाल नही किया।"
आजकल चिकित्सा क्षेत्र ने इतनी तरक्की कर ली है कि घुटने बदल दिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या घुटने बदलने के बाद व्यक्ति की चाल भी बदल गई है। घुटने की सर्जरी में तो चार-छः लाख रुपये लग ही जाते हैं। पर ऑपरेशन के बाद ठीक से चलते देखा नहीं गया। अपने अटल बिहारी वाजपेयी को ही लें। वह ऑपरेशन से पहले काफी ठीकठाक चलते थे। अब तो बेचारे बिस्तर पकड़ चुके हैं।
इस लेख को लिखने के असली मकसद पर अब आते हैं। आपने इसी ब्लाग पर एक निमंत्रण देखा होगा कि यहाँ हैदराबाद लिटरेरी फ़ेस्टिवल २०१२ का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन के आखरी दिन एक हिंदी काव्य गोष्ठी हुई जिसमें एक ‘युवा’ कवि ने अध्यक्षता की। युवा इसलिए कहा जा रहा है कि वे बिना किसी सहायता के अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुँच गए। अन्य दो कवि और एक कवयित्री ऐसे थे जिन्हें पकड कर मंच पर चढ़ाना पड़ा था। कारण.... वही.... घुटने का दर्द!!!!!!
Nice post
जवाब देंहटाएंसमस्याओं का समाधान यही है.
http://ahsaskiparten.blogspot.com/
agar aapne galti se kabhi Daljeet ko suna ho, to jaan jaayenge ki ye ghutne tekna bas ek chhalava hai!
जवाब देंहटाएंबढिया पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसूडान की ईसाई किशोरी को कोड़े तो इसलिए मारे गए होंगे कि स्कर्ट इतनी नीचे घुटनों तक क्यों पहनी.
जवाब देंहटाएंघुटने तो हथियार की तरह प्रयोग करते देखा है हमने
जवाब देंहटाएं:)
सर जी, यह नहीं बताया आपने की ८०+ होने पर कुछ और भी "घुटने" की आशंका हर समय बनी रहती है :)
जवाब देंहटाएंhamare pitaji bhi is ghutne se pareshan hain..professor hone ke naate unhen kafi waqt khade hokar guzarna padta hai,isliye takleef aur badh jati hai.
जवाब देंहटाएंaapka blog hum unhen zarur padhaenge.
वाकई बड़ी तकलीफ़ देते हैं घुटने .
जवाब देंहटाएंकभी मर्म से , तो कभी शर्म से .
बहुत अच्छी लगी पोस्ट भाई जी !
जवाब देंहटाएंपहले दांत का दर्द अब घुटने का, आप के व्यंग्य का जवाब नहीं :)
वाह मजेदार है !
रोचक आलेख .. आपकी कलम तो पाठकों को घुटना-टेकू बना ही देती है ..
जवाब देंहटाएंगोदियाल जी, इस प्रश्न का उत्तर तो डॉ. दराल ही दे सकते हैं :)
जवाब देंहटाएंएक खोज से पता चला है कि ८० + की उम्र में भी लाइफ को एन्जॉय किया जा सकता है । घुटने की ज़रुरत नहीं । :)
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति,बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
जवाब देंहटाएंnew post...वाह रे मंहगाई...
और वो घुटनों में अक्ल होने की बात का तो अपने जिक्र ही नहीं किया
जवाब देंहटाएंbahut achchi prastuti :)
जवाब देंहटाएंमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंbilkul dilchasp pr prernatmk ....badhai
जवाब देंहटाएंघुटनों पर शर्तिया ढेरों साहित्यिक अध्याय लिखे जा सकते हैं, बशर्ते दर्द न करें..
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंघुटने में दर्द की उम्र में आ रहे हैं हम। लगता है वजन कुछ कम हो जाये तो ठीक रहेगा।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (२7) में शामिल की गई है /आप इस मंच पर पधारिये/और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका आशीर्वाद हमेशा इस ब्लोगर्स मीट को मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है /
जवाब देंहटाएंhttp://www.hbfint.blogspot.com/2012/01/27-frequently-asked-questions.html
बहुत अच्छी लगी पोस्ट मजेदार है !
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