गुरुवार, 17 नवंबर 2011

राजनीति और राष्ट्रीय पहचान

[हैदराबाद की प्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती विनिता शर्मा जी [shabdam1.blogspot.com] की सुपुत्री डॉ. गीतिका कोम्मुरि की पुस्तक पर एक समीक्षा प्रस्तुत है।  इतनी चिंतनपरक पुस्तक की रचना के लिए  डॉ. गीतिका कोम्मुरी और श्रीमती व श्री शर्मा जी को बधाई।  आखिर कौन माता-पिता ऐसी संतान पर गर्व  नहीं करेंगे! ]

भारतीय पहचान और सुरक्षा की राजनीति

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डॉ. गीतिका कोम्मुरि अमेरिका की कैलिफ़ोर्निया स्टेट विश्वविद्यालय में सामाजिक शास्त्र पढाती हैं और वे भारतीय होने के नाते भारत के सामाजिक व राजनीतिक परिवेश से अच्छी तरह परिचित भी हैं।  उन्होंने गम्भीर शोध करके अपनी पुस्तक ‘इंडियन आयडेंटिटी नेरेटिव्स एण्ड द पोलिटिक्स ऑफ़ सेक्यूरिटी’ में ऐसे तथ्य प्रस्तुत किए जिन की रुचि न केवल शोधार्थियों को बल्कि विदेश नीतिधारकों को भी आकर्षित करेगी।

डॉ. गीतिका कोम्मुरि ने इस पुस्तक में देश-विदेश के अंतस्संबंधों की जानकारी देते हुए बताया है कि देश की अपनी पहचान, आपसी व्यवहार और राष्ट्रीय हितों का विश्लेषण करते हुए विदेश नीति निर्धारित की जाती है।  भारत में दो प्रकार की राजनीतिक सोच पनप रही है। एक तो धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर है और दूसरे धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के पक्षधर।  मोटे तौर पर यदि राजनितिक पार्टियों की दृष्टि से देखें तो कांग्रेस और धर्मनिरपेक्ष कहलानी वाली पार्टियां एक ओर हैं तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा सहयोगी दल।

इस पुस्तक में सन्‌ १९९०-२००३ तक के घटनाक्रम को लेकर विश्लेषण किया गया है, जिसमें भारत-पाकिस्तान के सम्बंधों में पड़ रहे प्रभाव की जांच भी की गई है।  साथ ही पाकिस्तान को लेकर  भारत-चीन के आपसी सम्बंधों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है।  पुस्तक के प्रथम छः अध्यायों में राष्ट्रीय पहचान और सुरक्षा की राजनीति पर विस्तृत चर्चा है जिससे पाठक को अंतरराष्ट्रीय राजनीति को समझने में सहायता मिलेगी।

भारत और पाकिस्तान की सब से बडी गांठ है कश्मीर समस्या जिसमें अब चीन भी जुड गया है।  भारत के लिए यह केवल आंतरिक समस्या है।  साठ वर्ष की यह समस्या अब केवल इस बहस पर आ कर टिकी है कि जम्मू और कश्मीर को कितनी स्वायतता दी जाय और कैसे दी जाय।  भारत की राजनीतिक पार्टियों के भिन्न विचारधारा [धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक-सांस्कृतिक नीति] के बावजूद उनमें दो राय नहीं रह गई हैं कि अब जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।  

डॉ. गीतिका कोम्मुरी ने अपने विश्लेषण के तार स्वातंत्रयोत्तर समय से जोडा है परंतु उत्तर-साम्राज्यवादी सिद्धांत को दरकिनार करते हुए  पाश्चात्य विद्वानों की धारणाओं पर अपने निष्कर्ष निकाले हैं।  जब विदेश नीति की बात आती है तो हर राजनीतिक पार्टी जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के प्रति वही विचार रखती और वही कदम उठाती है जो शायद आम जनता की अभिव्यक्ति भी करती है।  इसका जीता-जागता उदाहरण लेखिका ने यह दिया है कि जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और १९९९ में कारगिल युद्ध समाप्त हुआ था तो  इस युद्ध को पूर्ण युद्ध होने से न केवल रोका गया बल्कि वाजपेयी जी ने लाहौर का दौरा भी किया और सद्भावना बनाए रखने में योगदान दिया।

इस पुस्तक से न केवल आम पाठक को राष्ट्रीय पहचान और विदेशी नीति व सुरक्षा संबंधी जानकारी मिलेगी बल्कि विदेश नीति के निर्धारकों और इस विषय पर कार्य कर रहे शोधार्थियों को  भी इस पुस्तक से लाभ मिलेगा, ऐसी आशा की जा सकती है।

पुस्तक परिचय:

पुस्तक का नाम : इंडियन आयडेंटिटी नेरेटिव्स एण्ड द पोलिटिक्स ऑफ़ सेक्यूरिटी
लेखिका : डॉ. गीतिका कोम्मुरि
मूल्य : ७९५ रुपये
प्रकाशक : सेज पब्लिकेशन्स
                नई दिल्ली, भारत॥






15 टिप्‍पणियां:

  1. विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत करने के लिए आभार

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  2. आपकी कलम से निकली समीक्षा विशिष्ट होती है . आभार सुन्दर पुस्तक से परिचय करवाने के लिए.

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  3. विस्तृत समीक्षा है पुस्तक की ... आभार इस जानकारी के लिए ...

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  4. अच्छा लगा गीतिका कोम्मूरी जी के बारे में जान कर। ज्यादा तो नहीं मालुम, पर पाकिस्तान को नये तरीके से टेकल करना चाहिये हमे‍ कूटनीति के स्तर पर।

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  5. बढ़िया समीक्षा भाई जी,
    आभार आपका ......

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  6. अच्छी पोस्ट आभार ! मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

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  7. बहुत अच्छी जानकारी दी आपने आभार...
    मेरे नये पोस्ट में आपका स्वागत है

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आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।