पं. मदनमोहन मालवीय़ जी की १५०वीं जयंती
[इस वर्ष देश में हिंदी के चार महान साहित्यकारों की जन्मशती मनाई जा रही है। रवींद्रनाथ ठाकुर जी की जयंती भी ज़ोरशोर से मनाई जा रही है। ऐसे में देशप्रेमी महामना पं. मदनमोहन मालवीय जी की १५०वीं जयंती पर सरकार और देशप्रेमियों का स्मशानी मौन समझ से परे है। शायद पं. मालवीय जी को सरकार भी इतिहास के पन्नों से मिटाने का मन बना चुकी है। ऐसे में साहित्य प्रेमियों और मीडियाकर्मियों से आशा की जाती है कि वे इस ओर अपना ध्यान केंद्रित करें और इस देशप्रेमी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें। इस ओर नवम्बर अंक के ‘साहित्य अमृत’ के सम्पादकीय में ध्यान दिलाना इस पत्रिका की निष्ठा को इंगित करता है। सम्पादकीय का अंश यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।]
समाचार पत्रों में यह लिखा गया कि पं. मदनमोहन मालवीय की जयंती के बारे में सरकार कुछ हिचकिचा रही है, क्योंकि एक वर्ग उनको हिंदूवादी और प्रतिक्रियावादी समझता है। यह केवल ऐसे लोगों की एक दूषित मनोवृत्ति का परिचायक है। मालवीय जी पक्के राष्ट्रवादी थे। उन्हें देश प्रेम के साथ साथ अपना धर्म और भारतीय संस्कृति प्यारी थी। यह कोई अपराध नहीं। वे जीवन-पर्यंत कांग्रेस में सक्रिय रहे। तीन अवसरों पर वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। २४-२५ वर्ष की उम्र में वे कलकत्ता में १८८६ में कांग्रेस के दूसरे सम्मेलन में सम्मिलित हुए। युवा मालवीय जी के भाषण ने सबको चकित कर दिया और वे एक जननेता के रूप में स्वीकारे गए। उनकी विविध क्षेत्रों कि सेवाओं के बारे में सभी जानते हैं। मालवीयजी उदारमना थे। किसी के प्रति उनको लेशमात्र द्वेष नहीं रहा। भेदभाव की भावना उनको छू नहीं सकी।
बाद में समाचार मिला कि एक राष्ट्रीय समिति प्रधानमंत्री ने मालवीयजी की १५०वीं जयंती मनाने के लिए डॉ. कर्ण सिंह जी की अध्यक्षता में बना दी है। पर अब तक कोई जानकारी नहीं कि कैसी योजना बनाई गई है, किस प्रकार के कार्यक्रम हैं। क्या मालवीय जी की जयंती बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर तक सिमित रह जाएगी? सरकार को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए। डॉ. कर्ण सिंह जी से इस दिशा में हमें आशा है। पर सरकार द्वारा जनता को पूर्ण जानकारी तो मिलनी चाहिए, ताकि सरकार नीति और कार्यक्रमों के विषय में पूर्णतया सूचित करे। किसी ने कहा था कि जिनमें किसी प्रकार भेद, न मोह- ऐसे हैं मदनमोहन मालवीय है। काश आज कुछ नेता और राष्ट्र के कर्णधार मालवीय जी के पदचिह्नों पर चलने वाले होते तो देश की दशा कुछ और ही होती। उनका संपूर्ण जीवन देश और समाज को समर्पित रहा। उनकी अवहेलना एक राष्ट्रीय अपराध है।
[‘साहित्य अमृत’ के नवम्बर अंक के सम्पादकीय से - साभार]
Nice post.
जवाब देंहटाएंअब इस देश में महापुरुष सिर्फ मृत कांग्रेसियों को ही माना जाता है|
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । ।धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमालवीय जी को योगदान को देश कभी भुला नहीं सकता। लेकिन इस देश में वर्तमान में केवल एक ही परिवार को स्मरण किया जाता है इसलिए ऐसा हो रहा है।
जवाब देंहटाएंनिति बन गई पर सरकार द्वारा अब तक उसकी कोई जानकारी नहीं दी gaii ...
जवाब देंहटाएंचलिए आपने तो शुरुआत कर दी अब देखिएगा वहाँ भी शुरुआत हो ही जाएगी ....
महामना को नमन।
जवाब देंहटाएंअच्छा किया, आपने याद दिलाया।
जवाब देंहटाएंमहामना को कौन मिटा सकता है इतिहास से!
सार्थक चिंतन ।
जवाब देंहटाएंउनको महामना की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट आभार !
जवाब देंहटाएंलगता है हमें भूलने की बिमारी है जो हमने हरविंद खुराना को भी भुला दिया . फिर अतीत तो भुलाने के लिए ही है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी वाली पोस्ट
जवाब देंहटाएंवैसे अब नए जमाने के बच्चे महापुरुषों को बिल्कुल भुलाते जा रहे हैं। ब्लाग पर कम से कम समय समय पर महापुरुषों की चर्चा तो हो जाती है।
बहुत सुंदर
देश में आजकल जिसकी लाठी उसकी भैंस और अपने मुँह मिय्या मिट्ठू की राजनीति चल रही है. ऐसे में इन कर्णधारों को देश प्रेमियों, भाषा प्रेमियों और भाषा कर्मियों को याद करने की फुर्सत कहाँ मिलेगी भला.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , आपने ब्लॉग पर शुरुआत की है तो इसे आगे बढाया जाए. कुछ और जानकारी की अपेक्षा है. ब्लॉगमीनार के माध्यम से ही सही.
शिक्षा और देश प्रेम के मामले में मालवीय जो का कोई सानी नहीं था ... श्रधांजलि है ऐसे देश के सपूत को ... पता नहीं सरकार क्या करेगी क्योंकि वोटो बस गांधी परिवार के आगे देख नहीं पाती ...
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