बुधवार, 6 जुलाई 2011

अमावस की रात - समीक्षा



तांत्रिक विद्या का पतन- ‘अमावस की रात


डॉ. उषा यादव का नाम हिंदी जगत में अपने साहित्यिक योगदान के लिए जाना जाता है।  अब तक उनके तीन कहानी संग्रह, पाँच उपन्यास, एक कविता संग्रह, पाँच आलोचनात्मक ग्रंथ सहित लगभग तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  उनका छठवाँ उपन्यास ‘अमावस की रात’ तांत्रिक विद्या की पृष्ठभूमि में रचा गया है।

उपन्यास का आरम्भ होता है इस दृश्य से- ‘आज अमावस की रात थी। आसमान में घने काले बादल। एक तारा भी नहीं। घुप अंधेरा। इस घुप अंधेरे में एक टूटे-फूटे मकान के सामने घरेलू सामान से लदी एक गाड़ी आकर ठहर गई।’ यह वर्णन पाठक को प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यासकार एड्गर ऐलन पो की याद दिलाता है।  

‘अमावस की रात’ के इस घर में छोटा पंडित उसकी निःसंतान पत्नी, माँ और अपाहिज बाप [बड़ा पंडित] आकर बसते हैं।  बड़ा पंडित खटिया पकड़ चुका है और माँ भी बूढ़ी हो गई है जो चल-फिर नहीं सकती।  पत्नी हर हाल में संतान चाहती है पर छोटे पंडित को मालूम है कि उसके वंश पर बडे पंडित की तांत्रिक विद्या का दुरुपयोग करने के कारण संतान दोष का श्राप है जिससे कुछ वर्ष बाद ही उसका परिवार मुक्त हो सकता है।

पत्नी के लगातार दबाव के कारण छोटा पंडित तंत्र के टोटके करके पडोसी गरिमा के घर में चीज़ें फेकता रहता है ताकि उसकी संतान दुष्परिणाम से बच जाए और पड़ोसी संकट झेले। प्रारम्भ में तो गरिमा यह सोच कर नकार देती है कि ‘मनोवैज्ञानिक दवाव में आ जाने की वजह से ही उसे ऐसा महसूस हो रहा है और अगर खुद को सबल नहीं बनाएगी तो वहम में पड़कर भूत-प्रेत भी देखने लगेगी।’ परंतु पंडित के निरंतर  टोटके चलते रहते हैं।  गरिमा सोचती है- ‘तंत्र मंत्र का मुझे भय नहीं। आर्यसमाजी संस्कार मेरे भीतर जड़ें जमाए है।  टूटा चूल्हा-चक्की फेंककर कोई हमारा अहित नहीं कर सकता।  हाँ, घर के फाटक पर गंदगी जरूर बुरी लगती है।  सिर्फ इसलिए मुझे उस शख्स से शिकायत है।" बात आगे बढ़ती जाती है और यहाँ तक पहुँचती है कि एक दिन मृत गाय उसके गेट के सामने फेंक दी जाती है।  

यह शख्स कौन है जो ऐसे टोने टोटके कर रहा है, यह न तो गरिमा को पता था और न उनके घर वालों को और न अन्य पड़ोसियों को;  जबकि छोटे पण्डित की पत्नी पडोस के बहाने कुछ न कुछ टोटके उनके घर पहुँचाती रहती है।  पत्नी को गर्भवती बनाने के लिए छोटा पण्डित अपने अपाहिज पिता की बली भी तंत्र में झोंक देता है और माँ चुपचाप देखती रह जाती है- बेटे के सहारे जीवन जो काटना है।

इस श्राप के कारण पंडित का बेटा विकलांग पैदा होता है और छोटे पंडित को यह पता है कि उस बच्चे का जीवन कठिन होगा परंतु पत्नी के दबाव में वह तंत्र विद्या का दुरुपयोग करता ही चला जाता है ताकि बच्चे की सारी विपदाएं पडोसी को लगे और बच्चा सुरक्षित रहे।  वह पडोस की गरिमा की गर्भवती पुत्री की कोख पर भी वार करने की सोचता है।  

इस प्रकार के कई उतार-चढ़ाव से गुज़रते हुए अंततः गरिमा इस निश्चय पर पहुँचती है कि तंत्र-मंत्र के कारण उसपर एक के बाद एक विपदाएँ आ रही है यद्यपि वह तर्क बुद्धिवादी है।  वह अपने गुरुजी के पास सारी व्यथा सुनाती है तो गुरुजी उसे कुछ उपाय सुझाते हैं जो सारे घर के इर्दगिर्द एक अदृश्य जाल की तरह सुरक्षा चक्र बना देगा।  अब पंडित के सारे टोटके विफल होने लगते हैं तो वह अंतिम हथियार के रूप में ‘रक्त कमल’ जैसा घातक तंत्र प्रयोग करने का निश्चय करता है जिसके असफल होने से वह रक्त कमल लौट कर उसे ही मार सकता था।  अंत में गरिमा के सुरक्षा चक्र को न तोड़ पाने के कारण रक्त कमल लौट आता है।  उसे किसी का रक्त तो चाहिए ही।  बुढिया माँ अपने बेटे छोटे पंडित को बचाने के लिए उस रक्त कमल को उसके पुत्र की ओर मोड़ देती है और इस प्रकार छोटे पंडित के अभिशप्त पुत्र की मृत्यु हो जाती है।  

सारा उपन्यास तंत्र-मंत्र और तर्क बुद्धिवाद के युद्ध के इर्दगिर्द घूमता रहता है।  तर्क बुद्धिवाद वाली गरिमा को भी अंत में तंत्र के सुरक्षा चक्र का सहारा लेना पड़ता है, जिससे निष्कर्ष यही निकलता है कि तंत्र-मंत्र में लोगों की आस्था है और उसका असर भी होता है।  भले ही लोग उदार विचारधारा और आधुनिक तर्कबुद्धिजीवी भले ही हों, पर लगातार चोट लगने से उनकी मानसिकता भी हिल जाती है।  डॉ. उषा यादव ने शायद यही संदेश इस उपन्यास के माध्यम से देना चाहा है कि तांत्रिक विद्या एक सच है और इसके उपयोग ऐसी दोधारी तलवार है जिसके अच्छे या बुरे परिणाम उस विद्या के प्रयोग पर निर्भर करते है।  उद्देश्य चाहे जो भी हो, उपन्यासकार का एक उद्देश्य तो सफल माना जाएगा और वह है कि उपन्यास पाठक को बांधे रखता है।

पुस्तक विवरण

पुस्तक का नाम : अमावस की रात
लेखिका : उषा यादव
मूल्य: ३०० रुपये
प्रकाशक: किताब घर
२४/४८५५, अंसारी रोड़
नई दिल्ली - ११० ००२




11 टिप्‍पणियां:

  1. हुत सुंदर समीक्षा ..... सामाजिक पारिवारिक अंधविश्वासों पर गहन चिंतन लिए है पुस्तक का विषय |

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  2. रोचक समीक्षा, शीर्षक की अपेक्षायें सिद्ध होती दिखती हैं।

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  3. अच्छी जानकारी बढ़िया समीक्षा !
    आभार !

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  4. सर, अमावस की रात की समीक्षा पढकर किताब को पढने की उत्सुकता हो रही है। जल्दी ही पढूंगा

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  5. अच्छी समीक्षा की है . लेकिन जाने क्यों यह लग रहा है की लेखक ने तंत्र मन्त्र को बढ़ावा देने की कोशिश की है जो हम जैसे लोगों को पचाना मुश्किल है .

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  6. पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाती सुंदर समीक्षा .....

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  7. भले ही लोग उदार विचारधारा और आधुनिक तर्कबुद्धिजीवी भले ही हों, पर लगातार चोट लगने से उनकी मानसिकता भी हिल जाती है।

    यही निष्पत्ति है ! आभार !

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  8. सुन्दर पुस्तक-समीक्षा के लिए आभार|

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आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।