मंगलवार, 24 मई 2011

बयाने-दर्दे-दाँत


बयाने-दर्दे-दाँत [२]


बात कोई दस-बारह बरस पहले की है जब मैं सर्विस से रिटायर होने के करीब पहुँच रहा था।  जैसा कि लोग अक्सर भविष्य की प्लानिंग पहले से ही करने लगते हैं, वैसा ही मैं भी कुछ सोच रहा था कि रिटायर होने के बाद अपने समय का उपयोग कैसे करूँ! साहित्य पढ़ने का शौक तो था ही, तो सोचा कि शहर में होनेवाली साहित्यिक गोष्ठियों में जाकर इस शौक को पूरा करना चाहिए।  इस प्रकार मैं हैदराबाद में होनेवाली गोष्ठियों से जुड़ा।  परंतु मेरे लिए विड़म्बना यह थी कि इन गोष्ठियों में अनिवार्य तौर पर काव्य पाठ होता था और मैं ठहरा इस लेखन में शून्य।  फिर भी, इस गोष्ठियों में सरौता बना बैठा रहता।  चौंकिए नहीं, सरौता से मेरी मुराद श्रोता से है।

इन गोष्ठियों में डॉ. ऋषभ देव शर्मा जी भी आते और अहम भूमिका निभाते। हर गोष्ठी में मैं उन्हें मंचासीन देखता तो समझ गया कि वे एक सक्रिय एवं गोष्ठियों के मुख्य स्तम्भ है। बढ़िया हिंदी, प्रभावशाली आवाज़ और सुंदर लेखन के धनी, डॉ. शर्मा से मैं पहले दृश्य से ही प्रभावित हुआ।  धीरे-धीरे हमारा परिचय बढ़ा तो एक दिन उन्होंने मंच से घोषणा कर दी कि मैं कविता पाठ करूँगा।  मैं चकित... और वादा किया कि अगली बार पढूँगा।  खैर, मेरी कविता-यात्रा इस तरह से शुरू हुई, बिना कवि बने!  मैं कोई कवि तो हूँ नहीं जो हर गोष्ठी में नई नई रचना सुनाऊँ। कोई सरल मार्ग ढूँढ़ने में मेरी सहायता की जापानी विधा हाइकु ने।  मैं जानता हूँ कि इस विधा में लिखना सरल नहीं है और उसके भी कुछ कठिन मानदण्ड हैं; परंतु मैंने देखा कि लोग रदीफ़-काफ़िया मिला कर ‘गज़ल’ कहे जा रहे हैं तो सत्रह अक्षर बिठाकर ‘हाइकु’ भी सरलता से कही ही जा सकती है।  इस तरह मुझे इन गोष्ठियों में भाग लेने की घुंडी मिल गई।  बस, हाइकु के नाम पर सत्रह अक्षर कहता और बैठ जाता।  कभी-कभी तो संचालक चकित रहता कि अभी नाम पुकार कर कुर्सी को ओर लौटा भी नहीं कि दूसरे कवि को आवाज़ देने का समय आ गया!!  इस तरह मुझ पर हाइकुकार का ठप्पा लग गया।

हाल ही में जब मैंने अपने दाँत के दर्द की दर्दभरी दास्ताँ आपके सामने रखी थी और काफी संवेदना भरी टिप्पणियां मिली थीं तो सोचा कि इस सिलसिले में अपना दर्द बाँटने में कोई हर्ज नहीं है।  पोस्ट की पोस्ट और सहानुभूति की सहानुभूति [डार-डार और पात-पात की तर्ज़ पर:)]।

हुआ यूँ कि हमारे सर जी [अरे वही- डॉ. ऋषभ देव शर्मा जी] से टेलिफोन पर बात हो रही थी तो उन्होंने दाँत के दर्द के बारे में पूछा।  मैंने उन्हें बताया कि इस आयु में जो दर्द आता है वो जाने के लिए नहीं होता। है, रहेगा  और मैंने भी शमशेर की तरह कह दिया - 

जो है
उसे ही क्यों न संजोना ?
उसी के क्यों न होना ?-
जो कि है ।

उन्होंने सुझाव दिया कि इनकी-उनकी कविता झेलने की बजाय आप अपने दर्दे-दाँत के बारे में कुछ हाइकु लिखिए बयाने-दर्दे-दाँत करते हुए और यह भी चैलेंज कर दीजिए कि टिप्पणीकार हाइकु में ही जवाब दें।  तो लीजिए साहब, कुछ हाइकु उछाल रहा हूँ... पकड़ सकें तो पकड़ लीजिए।

हा! दर्दे दाँत-
मर्ज़ बढ़ता गया
ज्यों-ज्यों दवा की।

दर्द गहरा
वो नहीं सुन पाया-
मर्द बहरा:)

दर्द दाँत का
नहीं आसाँ झेलना-
दण्ड पेलना।

दाँत का दर्द
कैसा है जनाब, वो
बने हमदर्द।

भर दे साक़ी
तू एक और जाम
दर्द के नाम।

मेरा पैगाम-
कर दो सारे बाम
दर्द के नाम
[कृपया नोट करें कि मैंने झंडु बाम का नाम जानबूझ कर नहीं किया क्योंकि इसी से मुन्नी बदनाम हुई थी:)]

और अंत में यह चैलेंज भी-----

निवेदन है
टिप्पणीकार लिखें
हाइकु में ही। :)

[दुनिया में सब को हाइकुकार बना कर छोडूँगा!!!]


36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....आनंद आ गया ...आभार

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  2. दांत का दर्द
    हो जाएगा गायब
    करो दातुन

    ( नीम की दातुन )

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  3. बड़ी वेदना रातभर
    कौन सहलाये
    मन !

    मजा आ गया अच्छी लगी पोस्ट :)

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  4. दर्द दांत का
    जाये तब
    दांत बाहर हो जब
    कोशिश तो कर ली है |कुछ इनाम है क्या

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  5. डॉ. ऋशभ देव शर्मा ने कहा-

    [पता नहीं क्या गड़बड़ है, आपके ब्लॉग पर कमेन्ट नहीं लग पा रहे मेरे!]

    [3]
    दर्द दाँत का
    जागरण रात का
    तौबा रे तौबा!

    [2]
    बन्दानवाज!
    दर्द तो मिटा देता
    दन्दानसाज!!

    [1]
    जवाब देंगे
    हाइकू के दर्द का
    हिसाब लेंगे

    जवाब देंहटाएं
  6. डॉ. साहब की ईमेल द्वारा मेल बढ़ाई गई टिप्पणी :)


    घंटों हो गए
    कई कमेन्ट लिखे
    एक न दिखे!

    सादर
    ऋषभदेव शर्मा

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  7. सत्यनारायण शर्मा ‘कमल’ कहते हैं -


    दाँतका दर्द
    झेल नहीं पाया
    कैसा वह मर्द
    * * *
    दाँत निपोरते
    अपनी कहे जाते
    कैसे सहें वो
    * * *
    तुम आये
    दर्द उभर आया
    अपना पराया
    * * *
    कमल

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  8. डॉ. अजित गुप्ता जी ने कहा-

    बूढें का दर्द
    जाता नहीं, जाता तो
    टूटा दांत है।
    हाइकू लिखना आता नहीं, लेकिन जैसे सब लिख रहे हैं तो मैं भी पेल दे रही हूँ। बस आनन्‍द कीजिए।

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  9. डॉ. अमर कुमार ने कहा-
    मौली प्रसाद
    मी हाइकूकार बनाते
    कायकू

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  10. बूढों के दाँत
    दिखाने के होते हैं
    खाने के नहीं

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  11. टिप्पणी लिखो
    पर हाइकू में ही !
    दादागिरी है?????

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  12. पढ़ा यहीं,
    दाँत भी कहें,
    महाकाव्य कहीं?

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  13. दर्द की अनुभूति गहरी मर्द की
    समझी नहीं वो ,बेवफा कहीं की

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. हाईकू की कोशिश
    चलो यही सही
    एक दर्द यह भी

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  16. मौली प्रसाद
    बोले लिखो हायकू
    कौन जाने कायकू

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  17. आदरणीय डॉ. ऋषभ देव शर्मा जी, आपकी दादागिरी वाली टिप्पणी पर आदरपूर्वक कहना है :-)

    दादागिरी है
    पर ये शर्त रखी
    आपने ही है :)

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  18. आदरणीय डॉ. ऋषभदेव शर्मा जी के ‘बूढे दांत’ वाले कमेंट पर अर्ज़ है---

    बूढों के दाँत
    है लुप्त होते पांत
    ज्यूं हाथी दाँत :)

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  19. सहानुभूति ही जताई जा सकती है...बाकी तो जो करना हो, डेन्टिस्ट करता है...

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  20. दाँत का दर्द
    बहुत ही ज़ालिम
    बड़ा बेदर्द

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  21. सुनती हो? क्या?
    दाँत की दवा है क्या?
    हाइकू दूँ क्या?

    हाइकू होना?
    दाँत-दर्द ही भला:
    लाहौल विला!

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  22. दर्द बोला तो...
    हा, क्या सुनाई देगा
    मेरे उसको ?

    जवाब देंहटाएं
  23. दर्दों में दर्द
    हाँ, क्या है-दांत दर्द ?
    सुना है मैंने !

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  24. रचना पढकर सच मे दांत का दर्द महसूस होने लगा। वाकई असहनीय है। पर ये मत कहिएगा जो सह नहीं पाया दर्द वो कैसा मर्द। बडे बडों को हिला कर रख देता है दांद का दर्द। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  25. संजय झा जी के नाम-

    चाचा की दुआ
    दूध के दांत झडे
    बड़ा हो बच्चा :)

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  26. आदरणीय डॉ. बलविंदर कौर को नमन करते हुए-

    मर्दों में मर्द
    सहता दांत दर्द
    वो बूढ़ा मर्द :)

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  27. आदरणीय चन्द्रमौलेश्वर जी को सादर प्रणाम करते हुए उनकी इतनी सुन्दर पोस्ट के लिए बहुत-बहुत बधाई

    बचपन का
    दांत दर्द, बूढ़े हो
    बदल जाता !

    इसी तरह लिखते रहेंगें तो हमें बहुत प्रेरणा मिलेगी-पुनः बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  28. आदरणीय डॉ.ऋषभ देव शर्मा जी को बता दें कि हाइकु हर मर्ज़ की दवा नहीं होती-

    दवा दाँत की
    या पत्नी के डाँट की
    नहीं कहीं भी :)

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  29. आदरणीय डॉ. बलविंदर कौर जी, इस दर्द में बालक-बूढा एक समान होते हैं, अस्तु--

    दर्द बढ़ता
    बालक-बूढे संग
    आयु के साथ

    जवाब देंहटाएं
  30. विनय के.जोशी लिखते हैं-


    ना आवे हाइकू
    लिखने को प्रेरित करे
    जबरदस्ती काइकू
    :
    (क्षमा करे हाइकू लिखना नहीं आता है दर्दे दांत पर तुकबंदी स्वीकारे )

    दुखा जब दांत
    तब पहलवान ने जानी
    अपनी औकात
    .
    भूखा पंडित
    छप्पन भोग पड़े
    दांत खंडित
    .
    दर्दे दांत
    खाद्य समर में
    हो गई मात
    .
    दांत बेहाल
    चटोरी छटपटाये
    जीभ छिनाल.

    जवाब देंहटाएं
  31. बहन सुमन पाटिल ने लिखा-

    दांत का दर्द
    बनाकर छोड़ेगा
    हाइकुकार !

    भाई साहब
    महाकाव्य बनेगा
    दांत का दर्द !

    जवाब देंहटाएं
  32. नीलू गुप्ता जी हिंदी-भारत ग्रूप पर लिखा है-


    [दुनिया में सब को हाइकुकार बना कर छोडूँगा!!!]

    हाइकुकार
    बन गए हैं अब
    हम औ तुम

    हाइकुकार
    हुए हैं तो क्या जैसे
    हुक्के का दम

    हाइकुकार
    चढ़ बोलता भूत
    अजीब बला

    हाइकुकार
    नहीं है साहूकार
    नहीं बेकार

    हाइकुकार
    बस मनोरंजन
    दिल रंजन

    हाइकुकार
    की शान है महान
    पर आसन

    हाइकुकार
    का है खिलता रंग
    हो हिंदी संग

    नीलू गुप्ता

    जवाब देंहटाएं
  33. दांत का दर्द
    और
    महबूब की याद

    सताए सदा
    रात के अंधेरे में
    या अकेले में

    जवाब देंहटाएं
  34. वाह! हम भी आप के सरौते हैं। कहा कीजिये, कहते रहिये!

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।