p
अतीत में झाँकते हुए...
मूल : गाइ द मोपासाँ
अनुवाद: चंद्र मौलेश्वर प्रसाद
"अच्छा बच्चो, सोने का समय हो गया है, अब जाकर सो जाओ।"
राजकुमारी ने अपने दो पोतियों और एक पोते को दुलारते हुए कहा। पादरी क्यूरे की गोद से उतरकर बच्चों ने दादी को ‘शुभरात्री’ कहा और अपने शयनकक्ष की ओर चल पड़े।
"आप बच्चों से बहुत प्यार करते हैं मोन्सियर क्यूरे?" राजकुमारी ने पूछा।
"बहुत प्यार।"
"तो क्या आपको नहीं लगता कि अकेले जीना कितना कठिन है?" राजकुमारी ने अपनी आँखें पादरी क्यूरे के चेहरे पर जमाते हुए पूछा।
"हाँ, कभी कभी... पर मैं तो रोज़मर्रा के जीवन के लिए नहीं बना था।"
"आप क्या जानते हैं रोज़मर्रा जीवन के बारे में?"
"ओह! मैं अच्छी तरह जानता हूँ। मैं तो पादरी बनने के लिए पैदा हुआ था।"
राजकुमारी की नज़रे अभी भी पादरी क्यूरे के चेहरे पर जमी हुई थी। उसने पूछा-"चलो मोन्सियर क्यूरे, यह बताओ कि तुमने सारे सुख-सुविधाओं को छोड़कर विवाह और पारिवरिक जीवन का त्याग क्यों किया? आप न तो आध्यात्मिक और न ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। आप न तो आशावादी हैं न निराशावादी... तो फिर, आपके जीवन में ऐसा क्या घट गया जो जीवन को प्रेरणा देनेवाले पारिवारिक बंधन को त्याग कर एकल जीवन का फैसल करना पड़ा। क्या आपके जीवन में ऐसी कोई गम्भीर दुखद घटना घटी जिसने आपको इस ओर प्रेरित किया?"
पादरी क्यूरे ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे सकुचाते हुए कमरे में टहलने लगे। ऊँचा पूरा व्यक्तित्व, सुगठित कद-काठी का यह व्यक्ति पिछले बीस वर्षों से पड़ोस के संत अंतोनी के गिरजे में पादरी रहा है। पड़ोस के सभी लोग उन्हें आदरभाव से देखते हैं। अपनी सज्जनता, शांत स्वभाव और सहायक प्रवृत्ति के कारण इस पादरी का गाँव में बहुत सम्मान था।
वृद्धा राजकुमारी रोशर के महल में अपने तीन पोते-पोतियों के साथ रहती थी। पुत्र और पुत्रवधु के अचानक मृत्यु के बाद इन बच्चों के देखरेख की ज़िम्मेदारी उन पर आ गई थी। वह जानती थी कि पादरी क्यूरे अच्छे स्वभाव के व्यक्ति हैं। इसलिए वह अपने महल में उन्हें आने का आमन्त्रण दे चुकी थी। अब पादरी क्यूरे हर गुरुवार की शाम राजकुमारी के महल में भोज के लिए आते और देर रात तक अपनी बीती बातें याद करते बिताते थे।
अचानक राजकुमारी ने ज़ोर देकर कहा-"मोन्सियर क्यूरे, आज समय आ गया है कि आपको मेरे सामने अपना कन्फ़ेशन करना होगा।"
पादरी क्यूरे ने अपनी बात दोहराते हुए कहा-"मैं तो आम जीवन के लिए नहीं बना था। सौभाग्यवश इसका अहसास मुझे समय पर हो गया और मैं समझता हूँ कि मेरा निर्णय सही निकला।"
कुछ देर रुककर उन्होंने कहना शुरू किया-"मेरे माता-पिता सम्पन्न थे और चाहते थे कि मैं भी जीवन में बहुत बड़ा आदमी बनूँ। इसके लिए उन्होंने छोटी सी उम्र में ही मुझे एक अच्छे बोर्डिंग स्कूल में भर्ती कराया। लोगों को क्या पता कि एक नन्हा-सा बालक कितना दुखी होता है अपने घर से दूर, अकेला रह कर, बिना प्रेम के! रोज़मर्रा जीवन कुछ के लिए अच्छा हो सकता है पर कुछ के लिए कष्टदायी भी। बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं, जितना लोग समझते हैं, शायद उससे कहीं अधिक, और यदि उनके लिए इस छोटी-सी आयु में प्रेम के द्वार बंद हो जाते हैं तो वे अधिक भावुक हो जाते हैं। इसकी अति उनके मानसपटल पर इतने गहरे उतरती जाती है कि कभी-कभी यह भयानक मानसिक रूप ले लेती है।
"मैंने कभी कोई खेल नहीं खेला; मेरा कोई मित्र नहीं था। मुझे हर समय घर की याद सताती रही। रातों को बिस्तर पर पड़ा रोता रहता और घर की छोटी छोटी यादों को उकेरता रहता- वो यादें, जो शायद किसी के लिए कोई मायने भी नहीं रखती हों पर मेरे लिए अमूल्य थीं। धीरे धीरे मैं भीतर से टूट गया और छोटी से छोटी अड़चन भी बडी कठिनाई लगने लगती। मैं बहुत दुखी था।
"इनका परिणाम यह हुआ कि मैं उदास और आत्मकेंद्रित, एकल और मित्ररहित रह गया। इसका दुष्प्रभाव मेरी सोच और मानसिकता पर पड़ने लगा। बच्चे बहुत जल्दी भावुक हो जाते है। उन्हें संरक्षण और प्रेम की उस समय तक अधिक आवश्यकता होती है जब तक वे समझदार न हो जायें। परंतु इन बातो को कौन समझता है!
"मेरे जीवन में भी यही हुआ। मैं घर की याद में घुटता रहा। धीरे-धीरे मेरी मानसिकता में यह नासूर की तरह पनपने लगा। कोई घर कि बात करता तो मैं रो पड़ता। वो बच्चे सचमुच भाग्यशाली होते हैं जो संवेदनहीन होते हैं और उन्हें किसी भी बात का कोई असर नहीं होता।
"मैं सोलह वर्ष का हुआ। अब मुझे हर बात भावुक कर देती थी और मैं अत्यादिक शर्मीला हो गया था। जानता था कि भाग्य के थपेड़ों के आगे मेरा कोई बस नहीं है, मैंने हर संबंध से अपने को अलग कर लिया। हर छोटी घटना में मुझे बड़ी आशंका दिखाई देने लगी। उज्ज्वल भविष्य की आशा या प्रसन्नता की बात सोंचना तो दूर, हर समय मैं भयभीत और आशंकित रहने लगा। मुझे अहसास हुआ कि मुझे इस परिस्थिति से उबरना चाहिए। परीक्षा के बाद जब मुझे छः माह की छुट्टी मिली तो अपने भावी जीवन के बारे में सोचने का मौका मिला। एक छोटी-सी घटना ने मुझे अपने आप को समझने में सहायता की।
"पेडों से घिरा वेर्डियर्स एक छोटा सा गाँव है जहाँ मेरा घर है। मैं अपने घर से निकल कर अकेला ही पास के जंगल की खुली हवा में घूमने लगा। मेरे माता पिता अपने व्यवसाय में ही व्यस्त थे। उन्हें मुझसे बात करने की भी फ़ुर्सत कहाँ! मैं इस जंगल में घूमते हुए अपने दिवास्वप्नों में खो गया।
"एक शाम जंगल में घूमकर जब मैं घर की ओर लौट रहा था तो एक कुत्ता मेरी ओर तेज़ी से दौड़ कर आने लगा। उसे देखकर मैं रुक गया। वह भी मुझसे दस कदम दूर रुक गया और दुम हिलने लगा। फिर डरते-डरते धीरे-धीरे आत्मसमर्पण की मुद्रा में मेरी ओर बढ़ने लगा। उसकी दयनीय आँखें, उसका डरते-डरते मेरे हाथों को चाटना मुझे अभिभूत कर गया। मैंने उसे थपथपाया तो उसका भय दूर हुआ। वह मेरे पीछे-पीछे घर तक आया।
"यह पहला जीव था जिसने मुझे प्यार दिया और मैं भी उसको दिलोजान से चाहने लगा। सैम- हाँ, मैंने उसे यही नाम दिया था, मेरे पास ही रहने लगा और साये की तरह साथ लगा रहा।
"एक दिन मैं और सैम सड़क के किनारे चल रहे थे। दूर से एक चार घोड़ोंवाली बग्गी दौड़ी आ रही थी। कोचवान घोड़ों पर कोड़े बरसा रहा था तो घोडे और तेज़ दौड़ने लगे। घोड़ों और बग्गी की आवाज़ से चौंक कर सैम सड़क के उस पार से मेरे पास आने के लिए दौड़ पड़ा; परंतु वह मुझ तक नहीं पहुँच सका। वह घोड़ों और बग्गी के बीच में फंस गया। देखते ही देखते वह सड़क पर लोट रहा था और दर्द से कराहने लगा। दौड़कर जब मैं उसके पास पहुँचा तो देखा कि उसका पेट फट चुका और पिछले दोनों पैर कुचल गए हैं। वह मेरी ओर दयनीय आँखों से देख रहा था और मैं बेबस था; कुछ भी तो नहीं कर सका अपने सैम के लिए। उसने कराहते हुए मेरी गोद में दम तोड़ दिया।
"इस हादसे के बाद मैं अपने कमरे में एक माह तक बंद रहा। एक शाम पिताजी कमरे में आये और कुछ उत्तेजित स्वर में कहने लगे-"एक छोटी सी बात का इतना बतंगड़ बना रहे हो! यदि तुम्हारी पत्नी या बच्चे की मौत जैसी दुखद घटना हो जाय तो तुम क्या करोगे?"
"अचानक मुझे झटका लगा और मैं अपने आप को समझने लगा। मैंने जाना कि रोज़मर्रा के जीवन में इतनी दुखद घटनाएँ होती रहती हैं और यदि मैं अपनी इस भावुकता के कारण इन्हें सहन नहीं कर पाया तो क्या होगा! मुझे किसी भोग-विलास की चाह नहीं थी। तब मैंने निश्चय किया कि मुझे इस क्षणभंगुर खुशी को हमेशा के लिए तजना होगा। जीवन छोटा है, तो क्यों न मानव जाति की सेवा में इसे लगाया जाय और दूसरों के दुख दूर करने में अपना जीवन समर्पित कर दें।"
इतना कह कर पादरी क्यूरे चुप हो गये। कुछ देर बाद खुद ही कहने लगे-"मैं सही था। मै इस सांसारिक जीवन के लिए नहीं बना हूँ।" राजकुमारी चुपचाप सुनती रही। बहुत देर तक वह भी कुछ नहीं बोली। लम्बी चुप्पी के बाद राजकुमारी ने कहा-"मेरे लिए तो, यदि ये पोता-पोतियाँ नहीं होते, तो शायद मेरा जीना ही दूभर हो जाता।"
बातों में देर रात बीत चुकी थी। पादरी क्यूरे उठे और अपने शयन कक्ष की ओर चल दिये। ऊँची-पूरी काया को जाते हुए राजकुमारी देखती रहीं और उनके मस्तिष्क में ऐसी कई सारी बातें आती रहीं जो युवा भी नहीं सोच सकते थे।
मन से सीधा संवाद स्थापित करती कहानी, बहुत अच्छा अनुवाद, स्वयं का ध्येय पता चल जाये तो निर्वाण पक्का समझिये।
जवाब देंहटाएंमोपासाँ की सुंदर रचना से मिलवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कथा का सुंदर अनुवाद बधाई की परिधि से बाहर .......
जवाब देंहटाएंजीवन के रंग कई
जवाब देंहटाएंदाढ़ी मूँछ का प्रभाव: जनसत्ता में ‘कलम’
जवाब देंहटाएंFebruary 6, 2012 12:19 PM
Where is my earlier comment ?
http://blogsinmedia.com/2012/02/%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%a2%e0%a4%bc%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%81%e0%a4%9b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b5-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%b8%e0%a4%a4/
जवाब देंहटाएंSorry, I don't know how to attach any direct link in comment.
सूचना के लिए आभारी हूं भाई गोदियाल जी। वैसे मैं ने यह समाचार नहीं देखा है।
जवाब देंहटाएंसर जी, कुछ गड़बड़ लग रही
जवाब देंहटाएंनिदान के लिए ज़रा इस लिंक पर नज़र डालें
मोपासाँ की सुंदर रचना का इतना सुंदर अनुबाद. आपका जितना शुक्रिया किया जाय कम है.
जवाब देंहटाएंrochakata ki tartmyata barkarar rakhti hui kahani ....bahut hi sundar prastuti.
जवाब देंहटाएंकहानी का बहुत सुंदर अनुबाद,
जवाब देंहटाएंवाह!!!!!बहुत लाजबाब प्रस्तुति,
NEW POST...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
namskaar !
जवाब देंहटाएंsunder rachnaa ka sunder anuwad , sir jee aap ko badhai aur sadhuwad.
namskaar !
जवाब देंहटाएंsunder rachnaa ka sunder anuwad , sir jee aap ko badhai aur sadhuwad.
सुंदर अनुवाद ..साँस रोक पर पढ़ना अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएं