कुछ उजाले, कुछ अंधेरे
बैकुंठ नाथ पेशे से वास्तुविद भले ही हों, पर हृदय से एक रचनाकार हैं जिनकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें उनके गीतों, कविताओं और कहानियों की अभिव्यक्ति हुई है। ‘कुछ उजाले, कुछ अँधेरे’ उनका नवीनतम कथा संग्रह है जिसमें इक्कीस कहानियाँ संग्रहित हैं। इन कहानियों से गुज़रते हुए पाठक को महसूस होगा कि लेखक एक सफल पर्यटक के अलावा पैनी दृष्टि का मालिक भी है।
जैसा कि कहानी संग्रह के शीर्षक से पता चलेगा कि इन कहानियों में जीवन की आशा-निराशा, अमीरी-गरीबी, प्रेम-घृणा जैसी मनोवृत्तियों को कहानीकार ने उजागर किया है। अधिकतर कहानियों में गरीबी की विवशता और प्रेम के विविध रूपों का चित्रण मिलता है।
बैकुंठ नाथ की कहानियों में गरीब की विवशता के साथ उसकी आस्था, आशा और आदर्श की झलक भी मिलती है। कहानी ‘तुम बिन को भगवान’ में उस गरीब के चरित्र की झलक मिलती है जो पहले किसी धनवान के यहाँ काम करता था और अब रिक्शा चला रहा है। जब वह धनवान उसी रिक्शा में चढ़ कर अपने गंतव्य को पहुंचता है तो वह अपने पुराने मालिक को पहचान कर पैसे लेने से इंकार कर देता है, भले ही उसका परिवार एक दिन की रोटी से चूक जाएगा।
गरीब बच्चे का परिवार भले ही एक कमरे में रहता हो पर जब वह अपनी पुस्तक में डाइनिंग रूम, किचिन, लाइब्रेरी आदि का वर्णन पढ़ता है तो उसे अपने भविष्य के प्रति आशा जागती है और वह सपने देखता है जो शायद कभी पुरे नहीं होंगे। इसी को कहानीकार ने अपनी कहानी ‘आशा जीवन का सोपान’ में सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। बेज़बान, हमसे कुत्ते अच्छे हैं, दीन्हिं लखै न कोय, छाबड़ीवाला, चुपके लागे घाव ऐसी ही कुछ कहानियां हैं जिनमें गरीबी से जुड़ी समस्याओं को कहानीकार ने उजागर किया है। इनमें एक कहानी ‘गरम कमीज़’ भी है जिसे पढ़कर लगता है कि बैकुंठ नाथ ने इसे गोगोल की कहानी ‘द कोट’ से प्रभावित होकर लिखा है।
प्रेम के विविध रूप पर लिखी कई कहानियाँ इस कृति में मिलेंगी। नैतिकता-अनैतिकता, क्षणिक से लेकर गम्भीर प्रेम, सच्चा प्रेम और दैहिक प्रेम पर लिखी गई कहानियों पर लेखक एक स्थान पर बताते हैं कि "समय परिचय करा देता है। परिचय मित्रता में बदल जाता है और मित्रता अक्सर प्रेम में परिवर्तित हो जाती है। परिचय घटनाओं की देन है- समय की संधि है; मित्रता एक मार्ग है और प्रेम सम्भवतः लक्ष्य।"[विदाई- पृ.१३१]
‘चारदीवारी’ एक ऐसी कहानी है जिसमें एक ब्याहता किराएदार की दोस्ती मकानमालिक की जवान बेटी से हो जाती है। बात आगे बढ़ने से पहले उस व्यक्ति को अपने परिवारवालों के पास से पत्र मिलता है कि उसकी जवान लड़की किसी के साथ भाग गई है। वह पछतावे की आग में जलते हुए उस लड़की को सारी बात बता देता है। प्रेम का एक वह रूप भी है जो किसी को प्रेमिका की सुंदरता को देख कर आजीवन साथ निभाने के सपने देखता है। एक कला का विद्यार्थी एक सुंदर सहपाठिनी के चित्र बनाता रहता है। उसे एक चित्र पर पुरस्कार भी मिलता है। वह लड़की उसके पास आती है और उसके अधिक चित्र देखना चाहती है। लड़का उसे अपने घर ले जाकर कई चित्र बताता है जो उस पर केंद्रित हैं। लड़की उसके प्रेम से द्रवित हो जाती है और अपने मोजे निकाल कर उसके ‘कोढ’ के निशान बताती है जिसके बाद प्रेमी का प्रेम काफ़ुर हो जाता है।
रीत गई अँखियां, नदी-हवा-घटा, बीहू गीत, बिदाई आदि कुछ प्रेम कहानियाँ ऐसी भी हैं जिनका निष्कर्ष पाठक पर छोड़ दिया गया है। दूसरी ओर कुछ ऐसी कहानियाँ जैसे सिनेमा की बलिवेदी पर, कुआँ और हड़ताल इस संग्रह में मिलेंगी जिनमें व्यक्ति बिना सोचे समझे ही कुछ कर बैठता है- जैसे आवेश में कुएँ में कूद कर प्राण त्याग देना या हड़ताल के समय किसे हानि पहुँचाई जा रही है इस सोच को भी ताक पर रख देना आदि।
इन कहानियों पर अपनी अनुभूति अभिव्यक्त करते हुए कहानीकार बैकुंठ नाथ कहते हैं कि "मैं जब समाज को देखता, परखता, विचारता, दुलारता या नकारता सा समाज के प्रति लिखता हूं... तो मुझे ऐसा लगता है जैसे उजालों और अँधेरों में खड़ा देखता रह जाता हूँ। मेरे सामने विरह-मिलन समान रूप धारण कर लेते हैं। दिवा-निशा में कुछ भेद नहीं रहता। ... न जाने कैसे मैं उजालों को अनुभव करने लगता हूँ, अँधेरों को तराशने लगता हूँ। कुछ उजालों को पकड़े, कुछ अंधेरों को थामे मैं मूक सा खड़ा रह जाता हूँ।" इन्हीं कुछ अनुभवों को तराश कर लिखी गई कहानियों से गुज़रते हुए पाठक कहीं उजालों से चकाचौंध हो जाएगा तो कहीं अंधेरों में उजाले की तलाश करेगा!
पुस्तक परिचय:
पुस्तक का नाम: कुछ उजले कुछ अँधेरे
लेखक: बैकुंठ नाथ
प्रकाशक: सिमिरन प्रकाशन
ए-१, परिक्रमा फ़्लैट्स
बोपल, अमदाबाद-३८००५८
16 टिप्पणियां:
आपकी कलम से कुछ उजाले कुछ अंधेरे के बारे में विस्तृत जानकारी मिली ...आभार सहित शुभकामनाएं ।
Nice.
जानकारी का आभार !
विस्तृत समीक्षा, वह भी आपकी कलम से बहुत अच्छी लगी आभार
लड़का उसे अपने घर ले जाकर कई चित्र बताता है जो उस पर केंद्रित हैं। लड़की उसके प्रेम से द्रवित हो जाती है और अपने मोजे निकाल कर उसके ‘कोढ’ के निशान बताती है जिसके बाद प्रेमी का प्रेम काफ़ुर हो जाता है।
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इंफैचुयेशन (छुद्र आसक्ति) बहुधा प्रेम का लिबास पहने दीखती है। :-(
सार्थक समीक्षा, पढ़ने की आस जगाती हुयी..
शीर्षक में कहानी का संकेत मिलता है साहित्य अभिव्यक्ति का दर्पण है कहा जाय तो अतिशयोक्ति
नया होगी ऎसी समीक्षा के द्वारा अच्छे साहित्य से परिचय कराने के लिए आभार
बहुत बढ़िया,सार्थक समीक्षा,अच्छी जानकारी ..
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
अनुभूति की कहानियाँ !
उत्सुकता जगाती समीक्षा..
बहुत अच्छी सार्थक समीक्षा !
सर आप की समीक्षा के बाद पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ गयी ! समसामयिक लगी !
बहुत अच्छी एवं सार्थक समीक्षा ! मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद।
BAHUT BAHUT ABHAR CHANDR JI... KOSISH HOGI KI AK BAR PUSTAK KO JAROOR PADHUN.
आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३२) में शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप सबका आशीर्वाद और स्नेह इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /इस मीट का लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/02/32-gayatri-mantra.html
बहुत बढ़िया बेहतरीन पोस्ट
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