सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

गंभीरता से न लें




आग


आज के समाचार पत्र में पढ़ा कि नगर के सितारा होटल में आग लग गई।  उसी के निकट एक मित्र का घर है, तो चिंता हुई कि हालचाल पूछ लें।  फ़ोन पर उन्होंने बताया कि उस हादसे के वे चश्मदीद गवाह रहे हैं।  भयंकर आग की लपेटें देखकर वे दूर जा खड़े हुए और वहाँ की गतिविधियों को देखते रहे।  लोग इधर उधर भाग रहे थे।  होटल से बाहर निकलने वाले अपने अज़ीज़ों की तलाश कर रहे थे तो कुछ उनकी खोज में फिर अंदर जाने की जुस्तजू में थे जिन्हें वहाँ के कर्मचारी रोक रहे थे।  समाचार से पता चला कि कोई हताहत नहीं हुआ है और सभी सुरक्षित है।  

हमारे मित्र बता रहे थे कि इस हादसे की प्रतिक्रियाएं भी वहाँ ऐसी मिलीं कि इस गम्भीर परिस्थिति में भी व्यक्ति हँसने को मजबूर हो जाता है।  जिन लोगों के परिजन मिल गए वे खुश थे और उन्हें किसी अन्य की कोई चिंता नहीं थी।  दर्शकों में खड़े लोग भी उस आग को एक तमाशे की तरह देख रहे थे।  एक ने कहा कि हमारी फ़ायर ब्रिगेड को तैयार रहना चाहिए, इतनी देर लगा दी [इसकी सूचना देने की उन्होंने कोई पहल नहीं की, केवल ज़बानी जमा खर्च करते रहे]।  एक ने अपने मित्र के कांधे पर हाथ रखते हुए कहा कि आग की इतनी लम्बी कतार मैं तो पहली बार देख रहा हूँ! [उसके चेहरे पर ऐसी आनंद की लहर दिखाई दे रही थी मानो उसे इतना अच्छा दृश्य अपने जीवन में पहली बार देखने को मिल हो।]

मुझे पुरानी कहावत याद आई कि किसी का घर जलता है तो कोई हाथ सेंक लेता है। तभी तो, दुष्यंत ने भी कहा था- 
खडे हुए थे अलावों की आँच लेने को
सब अपनी-अपनी हथेली जला के बैठ गए॥  

आग भी किसिम किसिम की होती है।  एक वो आग है जो अपने आगोश में आई हर चीज़ को जला कर राख कर देती है, तो एक वो आग भी होती है जो सीने में सुलगती है और अरमानों को जला देती है।  तभी तो किसी दिलजले शायर ने कहा था- सीने में सुलगते हैं अरमान, आँखों में उदासी छायी है।  

एक ऐसी आग भी होती है जो एक को जलाती है तो दूसरे को ठंडक पहुँचती है।  यह त्रिकोणीय प्रेम में अधिक देखने को मिलता है। यह  आग भारतीय फ़िल्मों की आधारशिला मानी जाती है। तभी तो महमूद ने अपनी एक फ़िल्म में गाया भी था-  ‘अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ है ये जगवाले, जले तो आग लगे, बुझे तो धुआँ करे’।  

रिश्तों में एक वो आग भी होती है जो महिलाओं में अक्सर सुलगती देखी गई है।[स्त्री-सशक्तीकरण का दम भरनेवालों से क्षमा माँगते हुए, वर्ना मैं उनके प्रकोप की आग में झुलस जाऊँगा।]  सास-बहू ही क्या, ननंद-भावज, जेठानी-देवरानी... सभी में यह आग कभी न कभी देखी गई है, भले ही अदृश्य रूप में हो।

वैसे तो आग लगाने-बुझाने के काम अनादि काल से चला आ रहा है और ऐसे लोगों के कुलदेवता नारद जी को माना जाता है।  घर की छोटी-मोटी झड़पों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय लड़ाइयों में भी ऐसे लोगों की एक अहम भूमिका देखी गई है।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस लगाऊ-बुझाऊ काम को ‘डबल क्रास’ का नाम दिया जाता है।  कुछ मसाले के साथ इधर की उधर और उधर की इधर लगा दो और तमाशा देखो।  इसे ही तो कहते हैं- आम के आम, गुठलियों के दाम।

कवियों और शायरों ने भी इस आग का बहुत लाभ उठाया है।  किसी उर्दू शायर ने इश्क की हिमाकत को क्या खूब बयान किया है- 
ये इश्क नहीं आसां, बस इतना ही समझ लीजे। 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।  

हमारे हिंदी के अज़ीम शायर दुष्यंत कुमार ने भी तो कहा है- 
                                                         मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी ही चाहिए।

आग के इन विविध आयाम में जो कुछ छूट गया है, उसे मित्रगण अपनी टिप्पणियों के माध्यम से भर देंगे, ऐसी आशा है।  इस बीच, दुष्यंत ने  सितारा होटल के मालिक को एक ट्रेड सीक्रेट भी बता गए हैं-

थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ निकलने दो
कल देखोगे कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे॥


21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया सर जी,

    नदी किनारे धुंआ उठत है मैं जानू कुछ होय

    जिसके कारन मैं जली वही न जलता होय !


    वैसे आपको तो मैंने आज तक गंभीरता से नहीं लिया :)

    जवाब देंहटाएं
  2. @ एक ऐसी आग भी होती है जो एक को जलाती है तो दूसरे को ठंडक पहुँचती है।

    आग के बहाने आपने आज के परिप्रेक्ष्य को खूब परिभाषित किया ....! आपकी कलम को सलाम ..!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर आग लगी ! वैसे सर जी आग बुझाने में ही मजा है !

    जवाब देंहटाएं
  4. Nice post.
    जब हम जान लेते हैं कि यह बात तो असत्य है तब सत्य की खोज शुरू होती है कि फिर सत्य क्या है ?
    आदमी जो ढूंढता है वह पा भी लेता है।
    http://vedquran.blogspot.in/2012/02/sun-spirit.html

    जवाब देंहटाएं
  5. आग दुनिया की हो या परलोक की, इसे सदैव ही गंभीरता से लेना चाहिए लेकिन लोग मस्त रहना चाहते हैं। फिर भी जिसके पास दिल, दिमाग़ और ज़मीर है वह गंभीरता की बात को गंभीरता से ही लेता है और जिसके पास बुद्धि है वह उनसे नसीहत भी लेता है।
    http://islamdharma.blogspot.com/2011/12/how-to-perfect-your-prayers-video.html

    जवाब देंहटाएं
  6. एक ऐसी आग भी होती है जो एक को जलाती है तो दूसरे को ठंडक पहुँचती है।

    आजकल तो हर ओर दिख जाती है यही वाली आग .....

    जवाब देंहटाएं
  7. ।[स्त्री-सशक्तीकरण का दम भरनेवालों से क्षमा माँगते हुए, वर्ना मैं उनके प्रकोप की आग में झुलस जाऊँगा।] सास-बहू ही क्या, ननंद-भावज, जेठानी-देवरानी... सभी में यह आग कभी न कभी देखी गई है, भले ही अदृश्य रूप में हो।
    वाह बढ़िया पोस्ट भाई जी बधाई हो !

    जवाब देंहटाएं
  8. 'आग भी किसिम किसिम की होती है। ' हाँ यह सच है. इसीलिए शायद अज्ञेय भी कहते हैं -

    "मेरे हर गीत में, मेरी हर ज्ञाप्ति में -
    कुछ है जो काँटे कसकाता,
    अंगारे सुलगाता है -
    मेरे हर स्पंदन में, सांस में, समाई में
    विरह की आप्त व्यथा
    रोती है.

    जीना - सुलगना है
    जागना - उमंगना है
    चीन्हना - चेतना का
    तुम्हारे रंग रंगना है."

    जवाब देंहटाएं
  9. विविधता भरी आग निसंदेह आपकी कलम ही लगा सकती है ..

    जवाब देंहटाएं
  10. 'आग भी किसिम किसिम की होती है। ' हाँ यह सच है. इसीलिए शायद अज्ञेय भी कहते हैं -

    "मेरे हर गीत में, मेरी हर ज्ञाप्ति में -
    कुछ है जो काँटे कसकाता,
    अंगारे सुलगाता है -
    मेरे हर स्पंदन में, सांस में, समाई में
    विरह की आप्त व्यथा
    रोती है.

    जीना - सुलगना है
    जागना - उमंगना है
    चीन्हना - चेतना का
    तुम्हारे रंग रंगना है."

    जवाब देंहटाएं
  11. आग तो आग ही है जो हमेशा जलाया ही करती है फिर चाहे घर हो या मन...सामी मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  12. :) व्हेरी व्हेरी इंटरेस्टिंग!

    जवाब देंहटाएं
  13. थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ निकलने दो
    कल देखोगे कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे॥

    Vah bhai Vah Agg ko bhi etane sundar dhang se parosa ja sakata hai .....apne to kamal hi kr diya...sadar badhai.

    जवाब देंहटाएं
  14. मैं इस घटना का चश्मदीद गवाह-
    सच कहता हूँ मैंने पहली बार कहीं पर आग लगने का लाइव टेलीकास्ट देखा.
    आग लगने पर लोगों के चहरे-शारीरिक भाषा कों पहली बार देखा. किस तरह से वे अपनों के लिए परेशान होते हैं? किस तरह पहले अपनी जान बचाते हैं?
    भला हो सेल फोन का लोग उसकी सहायता से अपनों की खोज करने में सफल भी हुए और फायर ब्रिगेड का भी, समय पर पहुंचकर जान-माल बचा लिया.
    मुझे उस वक्त 'द बर्निंग ट्रेन' की याद आ रही थी.
    खुशी के एन मौके पर किस तरह गम का काला साया सब कुछ निगल लेता है, धुएं से लिपट जाता है हर मुस्कुराता चेहरा.

    लेख अच्छा लगा. व्यंग्य भी अच्छा है.

    जवाब देंहटाएं
  15. ये आग किसी के घर में किसी भी रूप में लग जाय
    प्रभावित होने से नही बचता,..फिलहाल लाइलाज बीमारी है,...

    बहुत अच्छी प्रस्तुति,.

    MY NEW POST ...कामयाबी...

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।