शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

गुरुदयाल अग्रवाल

आप लोगों को याद होगा कि कुछ अर्सा पहले मैंने एक पाठशाला के प्रश्न पत्र के माध्यम से वयोवृद्ध कवि एवं एक ज़िंदादिल इंसान से परिचय कराया था जिनका नाम है गुरूदयाल अग्रवाल।  अग्रवालजी चलता फिरता कविता संग्रह है जिनके मस्तिष्क में न जाने कितनी कविताएं भरी पडी हैं।  कविताएं  धारा प्रवाह कहते हैं भले ही उन्हें कवि का नाम याद न हो।  एक ऐसी ही कविता उनके मस्तिष्क में कौंध गई और उन्होंने इसे भेज दिया।  यदि कोई इस कविता के मालिक का पता ढूंढ सके, तो हम उन्हें यह कविता लौटाने का ज़िम्मा लेते हैं।  तब तक गुरुदयाल अग्रवाल की ज़बानी-बयानी जारी रहेगी।



गीत जग भर के दुखों की आत्मा है
 
                    गीत जग भर के दुखों की आत्मा है
                    प्यार हर इंसान का परमात्मा है
बूँद ने अपनी नई   दुनिया बसाई      
 जब सजाई सिन्धु की नगरी सजाई
इस हिमालय को बडप्पन जब मिला है
भूमी को जब आँख से गंगा पिलाई 
                     इस जगत में हर किसी के प्रिय हैं अलग 
                     किन्तु रचना हर किसी की प्रियतमा है     
                     गीत जग भर के दुखों की आत्मा है
                     प्यार हर इंसान का परमात्मा है
 कुछ नयन इतने दुखी रोया न जाता 
आंसुओं की गोद में सोया न जाता 
उन सभी का दर्द जिसने लिख दिया है 
वो समय की धार  से धोया न जाता 
                          इस  जगत में हर किसी के अहम  हैं अलग    
                           किन्तु ज्ञान सबकी व्यक्तिवादी चेतना है
                           गीत जग भर के दुखों की आत्मा है
                           प्यार हर इंसान का परमात्मा है
 
 
(इस जगत में हर किसी के अहम  हैं अलग) यह मूल शब्द नहीं हैं.  मूल शब्द याद ही नहीं आ रहे हैं अत: मैंने प्रयास किया है.
 
  गुरु दयाल अग्रवाल                     
  

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर गीत है ।
    गीतकार का नाम तो पता नहीं ।
    शुभकामनायें ।

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  2. कुछ नयन इतने दुखी रोया न जाता
    आंसुओं की गोद में सोया न जाता
    उन सभी का दर्द जिसने लिख दिया है
    वो समय की धार से धोया न जाता
    बहुत सुन्दर
    बधाई सर आपको
    मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए क्लिक करें.
    http://dilkikashmakash.blogspot.com

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  3. वाह .
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  4. Nice post .

    मुहब्बत में घायल वो भी है और मैं भी हूँ,
    वस्ल के लिए पागल वो भी है और मैं भी हूँ,
    तोड़ तो सकते हैं सारी बंदिशें ज़माने की,
    लेकिन घर की इज्जत वो भी है और मैं भी हूँ,

    {वस्ल = मिलन}

    http://mushayera.blogspot.com/2012/01/blog-post_03.html

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  5. कुछ नयन इतने दुखी रोया न जाता
    आंसुओं की गोद में सोया न जाता
    उन सभी का दर्द जिसने लिख दिया है
    वो समय की धार से धोया न जाता
    लाजबाब पंक्तियाँ !

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  6. मन भींग सा जाता इतनी सुन्दर गीत को पढ़कर . जिन्होंने लिखा है उनको नमन और आपका आभार पढवाने के लिए . ऐसी और भी रचनाएँ अवश्य पढ़ना चाहूंगी..

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  7. बहुत सुंदर गीत है !
    पर सॉरी मुझे भी पता नहीं किसने लिखा है !

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  8. अत्यंत सुन्दर गीत ! किन्तु आप इसे अनाम कह रहे है ! दुःख दे गयी !जो भी हो कवी , पर दिल है , दीदार है , देश प्रेमी होगा !

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  9. सुन्दर प्रस्तुति.....
    आप सभी को इंडिया दर्पण की ओर से नववर्ष की शुभकामनाएं।

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  10. इस जगत में हर किसी के अहम हैं अलग किन्तु ज्ञान सबकी व्यक्तिवादी चेतना है
    गीत जग भर के दुखों की आत्मा है
    प्यार हर इंसान का परमात्मा है।

    अग्रवाल जी के बारे में कुछ कहना न कहने के बराबर हो जाता है । कविता अच्छी लगी । धन्यवाद ।

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  11. बहुत बढिया परिचय। एक निवेदन है कि भूमि शब्‍द सुधार ले। आपने भूमी लिखा है।

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  12. जीवन-राग में बहता भाव-गीत.

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  13. बहुत सुन्दर गीत है ।शुभकामनाये आपको

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  14. आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  15. मेरे पोस्ट पर आकर स्पष्ट करें कि "सारा आकाश" कहीं खो गया है से आपका क्या अभिप्राय है ! सुबीर रावत जी ने कुछ कहा है। कृपया समय निकाल कर आने की कोशिश कीजिएगा । धन्यवाद ।.

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  16. प्रसाद जी , नमस्कार.
    आपने क्षमा याचना के साथ अपनी टिप्पणी वापस लिया है , इसके लिए मुझे हार्दिक दुख हुआ । हिंदी साहित्य कोई अंक गणित का सूत्र नही है । इसमें कभी - कभी यादें ही हैं जो हमें धोखा दे जाती हैं । यदि आप फिर से मेरे पोस्ट पर आकर -यह कमेंट करें कि यह विस्मृत सा हो गया था कि "सारा आकाश" राजेंद्र यादव जी का लिखा हुआ है, तो मुझे अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति होती । मेरी आपके साथ पूरी सहानुभूति है । शुभ रात्रि ।

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आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।