शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

चक्की- एक समीक्षा


महिला जीवन है एक ‘चक्की’

एक संवेदनशील महिला अपने जीवन के इर्दगिर्द होते पारिवारिक घटनाओं को जब देखती है तो स्त्री पर होनेवाले प्रभावों को महसूस करती है।  इन घटनाओं में कभी भोगा हुआ यथार्थ होता है तो कभी किसी अन्य महिला से सुनी-सुनाई या फिर पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ी घटनाएँ होती हैं।  ऐसी ही संवेदनशील महिला जब कलम की धनी हो तो वो इन घटनाओं को कागज़ पर उकेर लेती है।  जीवन की इस पिसती चक्की में नारी की इन्हीं कुछ घटनाओं पर आधारित हैं तेलुगु की प्रसिद्ध लेखिका डॉ. मुदिगंटि सुजाता रेड्डी का कहानी संग्रह ‘चक्की’। डॉ. सुजाता रेड्डी ने अपनी सीधी-सादी शैली में स्त्री विमर्श पर लिखी बीस कहानियाँ इस पुस्तक में संग्रहित की है।  इन कहानियों से प्रभावित होकर डॉ. बी.सत्यनारायण ने इन्हें हिंदी में अनुवाद किया है।

‘चक्की’ की कहानियों में स्त्री के जीवन से जुडी कहानियों में स्त्री-पुरुष संबंधों का जायज़ा भी लिया गया है।  शीर्षक कहानी ‘चक्की’ में उस महिला की दयनीय स्थिति दर्शायी गई है जिसका पति अच्छा कमाता तो है पर परिवार की सुध नहीं लेता, केवल अपने पर सारा धन लुटाता है।  परिवार चलाने के लिए कुछ रुपये दे देता है जो दाल-रोटी के लिए भी काफी नहीं होते।  दूसरी ओर बढ़ते बच्चों की अपनी फरमाइशें होती हैं जिन्हें उसकी पत्नी अपना पेट काटकर पूरा करती है।

स्त्री विमर्श का दूसरा जवलंत मुद्दा दहेज और अहम्‌ का है।  स्नेहलता देवी का पत्र, मोक्ष, न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति जैसी कहानियों में ब्याह और दहेज के मामलों पर प्रकाश डाला गया है।  इन कहानियों के माध्यम से कहानीकार ने यह जतलाया है कि आज की नारी अपने पैरों पर खड़े होना चाहती है और अपने माता-पिता का बोझ नहीं बनना चाहती।  दूसरी ओर पुरुष की यह प्रवृत्ति होती है कि किसी न किसी समय पत्नी पर यह ताना मारेगा कि ‘तेरे पिता ने क्या दिया... अंत में अंगूठा दिखा दिया ना!’[पृ.५९]  आज की नारी पढ़-लिख कर अपना कैरियर खुद बनाना चाहती है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहना चाहती है।  यही संदेश देती है कहानी- स्नेहलता देवी का पत्र।

प्रायः यह देखा गया है कि जब पति-पत्नी, दोनों कमाते है तो अहम्‌ का टकराव हो जाता है।  पुरुष चाहता है कि पत्नी अपनी कमाई भी पति के हाथ में रख दे और पत्नी अपनेआप को आर्थिक रूप से स्वतंत्र रखना चाहती है। लालच और अहम्‌ की इन परिस्थितियों में कभी-कभी स्त्री अनिश्चितता के दोराहे पर खडी दीखती है।  जैसे ‘मोक्ष’ कहानी की नायिका का यह सोचना कि ‘ऐसी स्थिति में यदि वह कुछ करने को कहे तो पति की बदनामी! बेइज़्ज़ती! वह जो कहेगा, वही मुझे करना है। नहीं तो उसका पुरुषाहंकार आहत होगा।’[पृ.६५]

युवा लड़कियों के लिए सड़कों पर घूम रहे रोड-रोमियो कभी कभी जी का जंजाल बन जाते है।  इस संग्रह की कहानियाँ- रौडीइज़म और मेरा अपराध क्या है?, इन्हीं मुद्दों पर लिखी गई हैं।  उनकी छेड़छाड में सड़क पर ऐसा भी हादसा हो सकता है कि महिला पूछ सकती है- मेरा अपराध क्या है?

इसे एक विड़म्बना ही कहा जाएगा कि जब किसी महिला में अपने ही घर-परिवार को छोड़ने की छटपटाहट हो  और इसका कारण पुरुष ही नहीं, स्त्री भी हो सकती है।  बुढ़ापे में जब बहू का राज होता है तो ‘आज़ादी’ कथा की सास को अपनी हमउम्र सखियों को घर बुलाने और हँसने बोलने की भी मनाही की जाती है।  ऐसे में उसे वृद्धाश्रम की ओर मुँह करना पड़ता है।  कुछ ऐसी ही छटपटाहट उस ‘बंदिनी’ माँ की होती है जो विदेश में अपनी पुत्री की संतान की देखरेख के लिए जाती है और उसे शिशु को चूमने-पुचकारने की भी मनाही होती है।

स्त्री का सब से कठिन समय वह होता है जब वह विधवा हो जाती है और सामाजिक कार्यक्रमों में उसकी उपस्थिति वर्जिय मानी जाती है।  किसी भी शुभकार्य में उसका आगे ठहरना अशुभ माना जाता है।  इसी तरह के अंधविश्वासों का विरोध करती कहानियाँ है- उसकी अपनी बेड़ियां और न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति।

स्त्री विमर्श के संदर्भ में लेखिका ने महिला के उस पहलु को उजागर किया है जिसके चलते पुरुष तो ख्याति पाता है परंतु उसके पीछे खड़ी स्त्री के बलिदान को कोई नहीं देख पाता।  उन्होंने इस कहानी संग्रह के प्राक्कथन में कहा भी है- ‘कहते हैं कि प्राचीन भारत में, समाज की बात हो या फिर परिवार की, स्त्री का सर्वत्र आदर होता था, उसे देवी समझा जाता था, उसकी पूजा की जाती थी।  किंतु स्री को किसी पूजा की आवश्यकता नहीं है।  उसकी भी अपनी एक हस्ती है, यह सोचकर ढंग से व्यवहार करें, यही काफ़ी है।  लोग उसके अतित्व और उसकी अस्मिता की कद्र करें, यही काफ़ी है।  एक ओर स्त्री की पूजा की गई और दूसरी ओर अनादि काल से उसे मोहिनी के रूप में देखा गया।’

आशा है कि स्त्री समस्याओं, इच्छाओं और अभिलाषाओं को समझने में ये कहानियाँ सही संदेश देने में सफल होंगी।


पुस्तक विवरण
पुस्तक का नाम  : चक्की [कहानी संग्रह]
लेखिका :  डॉ. मुदिगंटि सुजाता रेड्डी [तेलुगु]
अनुवादक : डॉ. बी. सत्यनारायण [हिंदी]
मूल्य : १५० रुपए
प्रकाशक : मिलिंद प्रकाशन
४-३-१७८/२, कंदास्वामी बाग
सुल्तान बाज़ार, हैदराबाद-५०० ०९५





8 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

समीक्षा से लगता है सुजाता जी ने स्त्री जीवन के लगभग सभी रंग उकेर दिये हैं अपनी कथाओं में।
अच्छी लगी समीक्षा।

Amrita Tanmay ने कहा…

चक्की भी यही कह गयी ..अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी . ... प्रभावी समीक्षा .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अच्छी कहानियां । enjoyable ।

ZEAL ने कहा…

स्त्री जीवन 'चक्की' नहीं बल्कि चक्की में पिसने वाला 'गेहूँ' है....

Arvind Mishra ने कहा…

डॉ. मुदिगंटि सुजाता रेड्डी का कहानी संग्रह चक्की स्त्री पुरुष सम्ब्न्धो के कई आयामों को अनावृत करता है -बढियां समीक्षा ..मुफ्त में की है ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जब स्थापित जीवनशैलियाँ टूटती हैं, घर्षण उत्पन्न होता है, कभी सही दिशा में, कभी उल्टी दिशा में।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

प्रभावित करती समीक्षा ..... स्त्री जीवन सच उकेरता लेखन .....

डॉ.बी.बालाजी ने कहा…

भारत में स्त्री की स्थिति बदल रही है. सामाज की सोच में और बदलाव होना अपेक्षित है.
समीक्षा प्रभावी है और साथ ही तेलुगु कहानियों का अनुवाद भी प्रभावशाली लगता है. प्रभावी समीक्षा के लिए आपको , स्त्री जीवन की कठिन परिस्थितियों को प्रकाशित करती कहानियों के लेखन के लिए कहानीकार डॉ. मुदिगंटि सुजाता रेड्डी और उनके अच्छे अनुवाद के लिए अनुवादक डॉ. बी.सत्यनारायण को बधाई.