हरि कृष्ण ‘परेशान’ है "धुएँ के सफ़र" से
हरि कृष्ण सक्सेना पेशॆ से सरकारी अधिकारी पर शौक से कवि हैं जिन्होंने अपना उपनाम ‘परेशान’ रख लिया है। इस उपनाम के पीछे की कहानी बताते हुए हरि कृष्ण कहते हैं कि "जब मैं समाज व अध्यात्म जिस ओर निगाह दौड़ाता हूँ, मुझे कुछ न कुछ ऐसा दिखाई देता है जो मुझे परेशान कर देता है। उसी के अनुरूप परेशानियाँ कागज़ पर कविता का रुप लेती चली जाती है।" आगरा के समानान्तर प्रकाशन के डॉ. राजेन्द्र मिलन भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहते हैं- "जी हाँ, वे परेशान हैं- आज की परिस्थितो से। पैसे की हवस ने इंसानियत, भाईचारा, आचरण, मर्यादा, तौर-तरीका-सलीका सभी पर पानी फ़ेर दिया है।" जीवन की इन परेशानियों को समेटता है हरि कृष्ण ‘परेशान’ का दूसरा काव्य-संग्रह ‘धुएँ का सफर’।
हरि कृष्ण ‘परेशान’ ने इस काव्य-संग्रह में अपनी ५९ कविताएँ संग्रहित की हैं जो विभिन्न विषयों पर कभी कटाक्ष करती हैं, तो कभी हंसाती है और कभी परेशान करती हैं। इन कविताओं में राजनीति, ज्ञान, घर, संसार, भाषा, शुभ-अशुभ, प्रेम, त्योहार, नारी आदि कई विषयों को समेटा गया है। आज की राजनीति तो किसी भी संवेदनशील कवि को परेशान करने के लिए काफी है। नेताओं के कुर्सी-मोह और जोड़-तोड से कोई भी साधारण व्यक्ति द्रवित हो जाता है।
मंथन में जैसे ही
अमृत नज़र आया
प्रत्येक नेता राहू-केतु
ही नज़र आया।
आज का नेता तो बहरूपिया हो गया है। अपने अलग-अलग रूप से वह मासूम जनता को बहलाता है। कवि ने ऐसे नेता का चित्र खींचा है जिसका साक्षात्कार पाठक ने भी कभी किया होगा!
किडनेपर्स, राहज़नी, डकैती,
माफिया, बूथ कैपचरिंग, रंगदारी
पुलिस सलाहकार
नेता बनने की इंडस्ट्रीज़ हैं।
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मज़दूर किसान होने की बात रटता है
कभी बनियान कभी नीम दातुन में दर्शाता है
यदा-कदा चरवाहे के साथ व्यस्तता में
जानवरों के छप्परों में अपने को दिखलाता है
भले ही करोड़ों का वह चारा खा जाता है।
जहाँ राजनीति है वहाँ भ्रष्टाचार भला पीछे कहाँ रहता है। अब तो राजनीति और भ्रष्टाचार का चोली-दामन का साथ हो गया लगता है और इससे अधिकारी भी अछूते नहीं रह गए हैं। कवि ने इस मुद्दे को भी अपनी कविताओं में उकेरा है।
फ़ाइल / थम जाने पर
धूल चाटने लगती है
अगर / उसपर वज़न रख दिया जाये
तीव्र गति से आगे बढ़ती है।
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चलो/ हमीं नेता बन जाएं!
हम भी/ अपनी भूख मिटा लें
चारा लोहा/ सिमेंट पुल खा लें
बहती गंगा में हम भी नहा लें।
राजनीति और भ्रष्टाचार का तीसरा कोण अब आतंकवाद बन गया है। यह आतंक आतंकवादियों तक ही सीमित नहीं है; अब तो गरीब भी इस चक्की में पिसा जा रहा है।
दहशतज़दा शहर/ धमाकों का कहर
विज्ञानिकों पर नज़र/ नेताओं की डगर
गुंडागर्दी का बाज़ार/ जनता का शिकार
अमन-चैन का / कत्ल।
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तुम्हारी कोप दृष्टि
गरीबों की झोपड़ पट्टी पर ही गिरती है
मेले, तमाशों, बाज़ारों एवं
अबोध बच्चों की पाठशाला पर ही पड़ती है।
हरि कृष्ण ‘परेशान’ ने कुछ ज्ञान की बातें भी अपनी कविताओं के माध्यम से बताई हैं। वे मानते हैं कि अज्ञान मिटा कर ही सत्य को जाना जा सकता है।
यह सत्य जान चुका हूँ
ज्ञान के बिना
परिश्रम का फल
फलदायी नहीं होता।
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पहचान
गुणों के आधार पर
सम्मानित करवाती है
अवगुण से
कलंकित कराती है।
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शुद्ध चित्त वाला ज्ञानी कहलाता है
अहंभाव को जीतने वाला
विवेकी बन जाता है
क्योंकि अहंभाव
मानव को पशु बनाता है।
कवि ने रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों से प्रेरणा लेकर खोज, धुआँ, सागर मंथन, उठा लो सुदर्शन चक्र, अग्नि देवता, संत महिमा जैसी कुछ कविताएँ भी रची हैं।
एक/ लिफ़्ट वह भी थी
जिसने दोस्ती का इतिहास रचा
राम को लिफ़्ट देकर
केवट/ भवसागर तर गया।
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कवि ने कुछ हास्य-व्यंग्य की कविताएं भी इस संग्रह में प्रकाशित की है। ऐसी कविताओं के कुछ अंश दृष्टव्य हैं-
मोटे की चमड़ी बुद्धि दोनों मोटी होती हैं
ईश्वर देन के विपरीत होती है
अधिक मोटापा ढोने के लिए
पैर भी असमर्थ होते हैं...
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बचपन में एक कन्या पर दिल आया
बाद में उसे मैंने अपनी पत्नी बनाया
पत्नी बनते ही वह बदल गई
मुझे वह अपना नौकर समझ गई।
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आम के साथ गुठलियां
नेता ही पचा सकता है...
क्योंकि वह
गरीब जनता का पेट खाली करवाता है।
जब से कविता छंदमुक्त हो गई है, तब से कवि को अपनी बात करने की खुली छूट मिल गई है। तभी तो गोरखपुर विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. प्रतिमा अस्थाना कहती हैं कि "साहित्य में कविता ही वह माध्यम है जो भाषा, भाव के साथ कभी छंद, मात्रा और लय में होती है और कभी मुक्त छंद में सहज अभिव्यक्ति बन कर निखरती है। श्री हरि कृष्ण सक्सेना ‘परेशान’ जी का यह काव्य संग्रह अनेक प्रकार से मन को आकर्षित करता है और लगता है कि इसमें हर पाठक के अंतरतम की अनुभूति सरल, निश्छल और सहज रूप से व्यक्त हो रही हो।" हम भी यही कामना करते हैं।
6 टिप्पणियां:
बात तो ठीक है. धुएँ के सफ़र में हैं तो परेशान होंगे ही.
अच्छी समीक्षा...
हरिकृष्ण जी से परिचय कराने के लिए आभार भाई जी !
हार्दिक शुभकामनायें आपको !
कवितायें पढ़कर आनन्द आ गया, पढ़वाने का आभार।
मगर परेशान की कवितायें तो तनिक भी परेशां नहीं करतीं !जोरदार है !
हरिकृष्ण जी से परिचय कराने के लिए आभार, कवितायें बहुत सुंदर हैं, अच्छी समीक्षा,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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