ग्रहण क्या है?
शीर्षक देख कर डॉ. अरविंद मिश्र जैसे वैज्ञानिक मस्तिष्क वाले कहेंगे कि ये हमें क्या सिखाएगा! हम तो इस विषय में पारंगत हैं। परंतु मैं तो उस ग्रहण की बात करने जा रहा हूँ जिससे हर कोई किसी न किसी प्रकार ग्रसित है।
हैदराबाद के एक प्रसिद्ध कवि हैं थ्री डी पाण्डेय। शायद यह नाम आपने नहीं सुना होगा क्योंकि उनका पूरा नाम है दुर्गा दत्त ‘दुष्ट’ पाण्डेय, जो अपने तीन डी और कविताओं के लिए प्रसिद्ध है। हाँ तो, पाण्डेय जी के पुत्र ने एक दिन उनसे यही सवाल किया था कि यह ग्रहण क्या होता है? पाण्डेय जी ने उसे समझाते हुए कहा था कि बेटा जब सूर्य और चंदा मामा के बीच धरती आ जाती है तो चंद्र ग्रहण कहते हैं और जब तुम्हारी माँ और मेरे बीच तुम्हारे मामा आ जाते हैं तो परिवार को ग्रहण लग जाता है।
तो मित्रो.... [यह हमारे कई प्रोफ़ेसरों के संबोधन का स्टाइल है] ग्रहण भी कई प्रकार के होते हैं। चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण से लेकर पाणिग्रहण तक। पाणिग्रहण तो ऐसा ग्रहण है जिससे पाणिनी जैसे विद्वान भी व्याकरण और ज़ुल्फ़ों के जाल में फंस कर अनुग्रहित हो गए। जब दुल्हन के पाणि का ग्रहण कर लिया है तो निभाना पडेगा और जीवन भर गाते रहना है- जो वादा किया तो निभाना पडेगा...।
यह तो हो गई परिवार के ग्रहण की बात, अब करते हैं समाज को ग्रहण लगने की बात। समाज को ग्रहण तब लगता है जब तंत्री और मंत्री की सांठगांठ से व्यवस्था कुव्यवस्था की ओर बढ़ जाती है। उसकी इतनी अति हो जाती है कि सरकार के आँख और कान को ग्रहण लग जाता है। तब न तो सत्याग्रह काम आता है न हड़ताल। शायद ऐसे में ही नक्सलवाद पनपता है, पर यह कितना सफल होता है.... ‘यह हमें देखना है और हम देखेंगे’।
देखने की बात चली तो प्रायः यह भी देखने में आया है कि राजनीति को भी ग्रहण लग जाता है तब नेता लोगों के बुद्धि पर दम्भ का ऐसा ग्रहण लग जाता है कि किसी अन्य पर आरोप लगाने का अंधकार छा जाता है। कभी दूर अतीत में भारत को सी.आइ.ए. का ग्रहण लगा था, पास अतीत में पड़ोसी आतंकवाद का ग्रहण लगा और वर्तमान में आर.एस.एस. का ग्रहण लगा हुआ है। किसी भी समस्य पर इस प्रकार की संस्थाएँ ग्रसित हो जाती हैं, जैसे हर मर्ज़ की दवा ज़िंदा तिलिस्मात होता है। आज की राजनीति का हर ग्रहण आर.एस.एस. के नाम हो गया है और इससे सरकार अपनी धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए राजनीतिक ग्रहण का परिष्कार करती रहती है।
सरकार को लगा ग्रहण नागरिकों तक उस समय पहुँच जाता है जब बजट में टैक्स का प्रावधान होता है। टैक्स के ग्रहण से तो हर कोई ग्रसित है पर कभी कभी शनि की सहानुभूति दृष्टि महिलाओं की ओर पड़ जाती है और उन्हें कर में कुछ छूट दी जाती है। परंतु ऐसा नहीं है कि सरकारी ग्रहण से बच जाने वाली ये महिलाएँ प्राकृतिक ग्रहण से बच पायें। हर गर्भवती ग्रहणी को ग्रहण के समय एहतियात बरतनी पड़ती है और उसे हिले-डुले बगैर चित्ता लेटे रहना पड़ता है। कहते हैं कि इससे संतान में कोई विकृति नहीं आती। इस सदी के इस लम्बे चंद्र ग्रहण में कितनी महिलाएँ इसका निर्वाह कर पाएँगी, वह भविष्य के लिए एक शोध का विषय रहेगा जो यह प्रमाणित करेगा कि यह अंधविश्वास बुद्धि का ग्रहण है या इसमें कुछ तथ्य भी है।
ग्रहण करने के भी कई तरीके होते हैं। पंडित और अग्नि के सामने पाणिग्रहण किया जाता है। जोड़-तोड़ करके, जुगाड़ करके पिपासु लोग पुरस्कार ग्रहण करते हैं और अपने नाम के पीछे ...पुरस्कार ग्रहीता का टैग लगा लेते हैं। धन ग्रहण करके व्यक्ति चिंता ग्रहण अपने जीवन में लगा लेता है जो उसे चिता की ओर ले जाता है। हम ब्लागर भी तो टिप्पणियाँ ग्रहण करके अपने को टीप का ब्लागर बनाने का ग्रहण लगा ही लेते है।
देखा जाए तो हर व्यक्ति ग्रहण से ग्रसित है। अब आप ही निर्णय कर लें कि आप किस ग्रहण को ग्रहण कर रहे हैं। वैसे मैंने एक विद्वान के कुछ टिप्स को ग्रहण करके इस लेख का जुगाड़ कर पाया हूँ॥
ग्रहण पुराण लिखने का स्कोप अच्छा है।
जवाब देंहटाएंअच्छा कटाक्ष है...
जवाब देंहटाएंग्रहण काल में देवियाँ
जवाब देंहटाएंकरतीं गंगास्नान !
चंद्र पयोधर पर लगा
राहु केतु का ध्यान !!
भाई जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग्रहण पर व्यंग किया है !
और मैं आपसे आपकी कलम की धार ग्रहण करती हूँ.
जवाब देंहटाएंमस्त है जी ग्रहण पुराण
जवाब देंहटाएंआभार
सटीक व्यंग....
जवाब देंहटाएंग्रहण का अर्थ समझाने के लिए आभार अब आप बताइए बच्चों के मामा कब आ रहें ?इस आलेख पर कुछ तारीफ करना अल्फाजों के साथ नाइंसाफी होगी |
जवाब देंहटाएंकोई जब जबरजस्ती बीच में घुसता है, ग्रहण लग जाता है।
जवाब देंहटाएंसही कहा, सबका अपना अपना ग्रहण।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...
ग्रहण के इतने व्यापक रूपों पर आपका ग्रहण खूब निखरा है
जवाब देंहटाएंऋषभ जी जहाँ न पहुंचे रवि को चरितार्थ कर गए और नजर का ग्रहण एक जगहं लगा बैठे हैं :)
.हे तात, नाना प्रकार के ग्रहण विभेदों का श्रवन / पठन करके याचक परम आनन्द को प्राप्त होता भया ।
जवाब देंहटाएंइन सब में अति पीड़ादायक प्रकार पाणिग्रहण का प्रायश्चित करने के विधि विधान को कृपा करके बतलाने का कष्ट करें ।
ब्लॉगर प्रवीण पाण्डेय ने कहा…
कोई जब जबरजस्ती बीच में घुसता है, ग्रहण लग जाता है ।
आपसे मेरा मतभेद है, प्रभो... मैंने आपसे कहा कृपया भोजन ग्रहण करें, और आपने वैसा किया भी ! आप ही बताइये बीच में कोई आया ?
अनूप भार्गव जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंचंद्र मौलेश्वर जी,
काफ़ी कुछ है ग्रहण करने को, आप के इस आलेख में ।
सादर स्नेह
अनूप
सत्यनारायण शर्मा जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंबाद में एक और ग्रहण याद आया जो आजकल उत्तर प्रदेश में पूर्णग्रास से लग
रहा है और पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से आरम्भ हुआ वह है भूमि-अधिग्रहण जिसने
सरकार हिला दी है |
कमल
डॉ.अजित गुप्ता जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंआपका जुगाड़ ग्रहण कर लिया है।
dr. smt. ajit gupta
7 charak marg udaipur
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सत्यनारायण शर्मा जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंआ० मौली जी ,
ग्रहण पर आपकी शोध या कहें शोध का जुगाड़ पढ़ कर आनंद आ गया | चिंता भी हुई कि दुर्गा दत्त पाण्डेय जी में एक डी "दुष्ट "
का आपने जो जोड़ दिया सो चौथा डी कहीं चौथ का चाँद न बन जाय जो उनकी और आपकी मित्रता में ग्रहण लगे | वैसे मैं
जानता हूँ कि आप दोनों ही ऐसी प्यारी नोंक-झोक का आनंद लेते और देते रहते हैं | इतनी मजेदार प्रस्तुति के लिये बधाई !
सादर
कमल
डॉ. दीप्ति गुप्ता जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंआदरणीय चंद्रमौली जी,
आपका हास्य- व्यंग लेख बेहद रुचिकर और हृदयग्राही बन पड़ा है. आपके इस आलेख से हमने अपेक्षित ज्ञान ग्रहण किया. भविष्य में ऐसे और आलेखों की कामना के साथ
सादर,
दीप्ति
अभिनव शुक्ल जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंआदरणीय चन्द्र मौली जी, आपका व्यंग्य बड़ा मज़ेदार लगा. दुर्गा दत्त जी का उपनाम 'दुष्ट' है इसकी जानकारी मुझे नहीं थी.. हाहाहा..
ग्रहण पर लिखे हुए इस लेख का निहितार्थ ग्रहण कर पाठक के मन पर लगे हुए ग्रहण दूर हो जाएँ तथा इस देश के ग्रहणों का भी काल पूरा हो ऐसी कामना है.
आपने तो कई प्रकार के ग्रहणों की बात की है और ग्रहण करने, करवाने वालों पर अच्छा व्यंग्य किया है.
जवाब देंहटाएंतेलुगु में एक कहावत बड़ी प्रसिद्द है - 'आपके घर आने से क्या देंगे, हमारे घर आने से क्या लायेंगे' ('मी inTiki वस्ते एमी इस्तारु, माँ inTiki वस्ते एमी तेस्तारु') ऐसी ही प्रवृति है 'ग्रहण' के झमेले में पड़ने वालों की.
लाख कोशिश करने के बावजूद ग्रहण से कोई नहीं बच पाएगा. हर किसी को किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ ग्रहण करना ही पड़ता है. अब क्या ग्रहण करना पड़ता है, यह तो ग्रहण करने वाला ही बता सकता है. जैसे आपने बताया कि 'एक विद्वान के कुछ टिप्स को ग्रहण करके इस लेख का जुगाड़ कर पाया हूँ॥' हम ने भी आपके ब्लॉग पर लेख को ग्रहण किया और यह टिप्पणी चिपकादी है.