[ज्ञानदत्त पाण्डेय जी एक प्रसिद्ध ब्लागर ही नहीं वरिष्ठ रेलवे अधिकारी भी हैं। अपने ब्लाग के माध्यम से वे सभी ब्लागर्स को गंगा स्नान कराते रहते हैं :) कभी कभी वे अपने कार्य से जुड़े संस्मरण से भी अवगत कराते रहते हैं। जब वे गंगा किनारे अपनी पत्नी के साथ सैर करते रहते हैं तो उन्हें देख कर टी वी पर केडवरी का वह एड याद आता है जिसमें पत्नी कहती हैं - तुमने मुझे पिछली बार I LOVE YOU कब कहा था। कल जब मैं डेली हिंदी मिलाप में रेखा खण्डेलवाल की कविता पढ़ रहा था तो मुझे लगा कि यह कविता तो पाण्डेय दम्पत्ति को समर्पित होनी चाहिए । इसलिए मैं यह कविता यहाँ पर उद्धृत कर रहा हूँ।]
रेलवे अफ़सर का अंदाज़-ए-तारीफ़
शिकयत से मैं एक दिन, पति से अपणे बोली
कभी तो थे तारीफ़ से, रंग दो म्हारी झोली
मुस्का के तब ये बोल्या, बस इतणी सी बात
अरी बावली थारे गुण, लै बखानूँ सगरी रात
थारी यो आवाज़ मनै, ऐसी मीठी लागे
नींद में भी सुण लूँ तो, अंजन की सीटी लागे
बल खाती यो कमर थारी, ज्यूँ मोड़ पे रेल खड़ी
धक-धक चलती साँस मानो, प्लेटफ़ॉरम की है घड़ी
थारी सुन्दर गोल आँख्याँ, ज्यूँ अंअजन की लाइट है
म्हारे पर किरपा दृष्टि, रिजरवेशन की तयाँ टाइट है
फ़र्राता जब चले जुबान, शताब्दी एक्सप्रेस याद आवै
छोटा-मोटा टेसन तो छोड़ो, जंक्शन भी रोक न पावै
गुस्सा सू जब तू दहाडे, म्हरो दिल घबरावै है
ऐसा लागे जैसे मालगाड़ी, पटरी से उतर जावै है
अब सुण म्यारी भाग्यवान, तू घणी ही प्यारी है
म्हारे जीवन की पटरी की, गाड़ी तू सबसे न्यारी है
रेखा खंडेलवाल, चिन्नई।
[साभार- डेली हिंदी मिलाप के ६ जून २०११ अंक से]
14 टिप्पणियां:
आपका यह प्रयास भी मन को भा गया ....बहुत सुंदर ..!
बहुत बहुत धन्यवाद! आप ने ज्ञान जी को ब्रह्मास्त्र ही सौंप दिया है। अब पता नहीं यह काम करता है या फिर उलट के लगता है।
रेलवे के उपादानों से सजी कविता श्री ज्ञनदत्त पांडेय जी को अर्पित किया आपने, बहुत अच्छा लगा।
बहुत सुंदर ..!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
धन्यवाद चन्द्रमौलेश्वर जी; यह तो मेरी कम, मेरी पत्नीजी की तारीफ ज्यादा है! :)
बाकी, रेलगाड़ी के सम्मोहन का तो यह हाल है कि (सोते जागते रेल का साथ होने के बावजूद) जब कहीं पास से गुजरती है, तो रुक कर डिब्बे गिनने लगता हूं। हर डिब्बे की पटरी पर खटरपटर सुनता हूं - वैसे जैसे एक बच्चा सुनता देखता है!
कितने अलग अंदाज से आपने पाण्डेय जी का परिचय कराया"
कभी न कभी हम पर भी फिट बैठेगी यह कविता।
Great creation !
:) बहुत सुंदर.ज्ञान जी को भा गई.
बहुत बढ़िया कविता ....आंचलिक शब्द रचना को जीवंत बना रहे हैं.....
रेखा जी की बहुत बढिया रचना चुनी आपने अपने ब्लागर के लिये धन्यवाद
बढिया है।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
bahut sunder milap me padhi hai kavita....
वाह ... बहुत खूब भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति अच्छा लगा।
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