प्रतिबंध
हाल ही में यह समाचार पढ़ने को मिला कि वकील आर.के.आनंद की लिखी पुस्तक ‘क्लोज़ एन्कांउटर विद नीरा राडिया’ नामक पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया गया है। ऐसे प्रतिबंध पर कई दशकों से बुद्धिजीवियों में चर्चा चलती रही है कि क्या किसी विचार या तथ्य को लेकर प्रतिबंध लगाना उचित है। यह चर्चा मुझे अतीत की ओर ले गई।
स्वतंत्रता के बाद जब गांधी जी की हत्या हुई थी तो गोड़से के मुकदमे पर हो रहे बयान पर भी प्रतिबंध लगा था। फिर, ‘नाइन अवर्स टु रामा’ जैसी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा था। आगे बढ़ते हैं तो सलमान रुशदी की पुस्तक ‘सेटेनिक वर्सेस’ पर प्रतिबंध इसलिए लगा कि उससे मुसलमानों की अस्था को चोट पहुँचती थी, जबकि यह पुस्तक एक मुसलमान द्वारा ही लिखी गई थी। लेडी चैटर्लीस लवर, लॉलिटा... न जाने कितनी पुस्तकें प्रतिबंधित हुईं और जब इन पुस्तकों को पाठकों ने अपनी उत्कंठा मिटाने के लिए चोरी-छुपे पढ़ा तो उन्हें पता चला कि इनमें तो ऐसी कोई बात है ही नहीं जिसके कारण इन पुस्तकों को प्रतिबंधित किया गया।
एक और पुस्तक जो इन दिनों चर्चा में है और जिसे प्रतिबंधित किया गया है वह हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर लिखी गई है। इस पुस्तक के लेखक हैं जोसेफ़ लेलीवेल्ड जिन्होंने ‘ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एण्ड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया’ नाम से रची है। बताया जाता है कि इसमें गांधीजी के निजी जीवन के बारे में कुछ टिप्पणियाँ हैं जिससे उनका चरित्रहनन होता है।
गांधी जी का जीवन एक खुली किताब थी जिसमें उन्होंने अपने जीवन के अंतरंग बातों को भी उजागर किया है। बुढापे में भी वे यौन परीक्षण करते रहे हैं जिससे उनके अनुयायियों के लिए राजनीति में भी कुछ कठिनाइयां उत्पन्न होती रही हैं।
ऐसा नहीं है कि गांधीजी के बारे में ऐसी टिप्पणियां पहली बार प्रकाशित हो रही हैं या उन्हें उजागर करके उनका चरित्रहनन किया जा रहा है। गांधीजी ने खुद अपनी आत्मकथा में ऐसी कई बातें लिखी हैं जिन्हें साधारण मस्तिष्क उन्हें सेक्स-मेनियाक भी समझ सकता है। उनकी आत्मकथा और उनके जीवन के अनेक प्रसंगों से ऐसा लग सकता है कि वे यौन सम्बंधी विषयों से आजीवन त्रस्त थे। अपने जीवन के आठवें दशक में भी वे स्त्रियों और लड़कियों के साथ ब्रह्मचर्य के नाम पर खुला प्रयोग करते रहे जिन्हें सारा जगत जानता है।
ऐसा भी नहीं है कि इस संबंध में जोसेफ़ लेलीवेल्ड पहली बार गांधी जी पर यौन संबंधी टिप्पणियां करके अपनी पुस्तक बेचना चाहते हैं क्योंकि वे भारत-अफ़्रीका संबंधों के विशेषज्ञ माने जाते है। ऐसे कई उद्धरण राजमोहन गांधी, सुधीर कक्कड, वेद मेहता, निर्मल बोस आदि पहले भी अपनी पुस्तकों में दे चुके हैं और ध्यान रहे कि इन पुस्तकों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। यह भी याद रहे कि यद्यपि गांधी जी का राष्ट्रपिता के रूप में सम्मान किया जाता है पर वे देवता नहीं मानव थे।
तो क्या... किसी विषय या पात्र को लेकर रची गई कलाकृति पर प्रतिबंध लगाना लोकतंत्र में स्वतंत्रता का गला घोटना नहीं है? बहस तो चलती रहेगी॥
किसी भी कर्म के लिए हर व्यक्ति का नजरिया अलग - अलग होता है ..और वह उसी अनुरूप धारणा बनाता है ..लेकिन मूल भाव को समझे बिना धारणा बनाना और टिप्पणी करना सही नहीं है ...जहाँ तक पुस्तकों पर प्रतिबन्ध की बात है यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है ..लेकिन लेखकको भी सावधान रहना चाहिए कि उसकी किसी टिप्पणी से सामने वाले पर नकारात्मक प्रभाव न पड़ता हो ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंपुस्तकोंपर प्रतिबंध कही उनको लोकप्रिय
जवाब देंहटाएंबनाकर बेचनेका धंदा तो नहीं ?
अच्छी जानकारी भाई जी !
गांधी ने जो कुछ किया उसे स्वीकारा -यह है नैतिकता का बल
जवाब देंहटाएंताजा खबर यह है कि एक ब्लॉग पर डॉ . अमर कुमार को अभी अब ही बैन कर दियागया है ..
इस पर आपकी क्विक प्रतिक्रया क्या है -क्या अब अगले सौभाज्ञ्शाली आप है?
पुस्तक की बात हो या मौखिक अभिव्यक्ति की, जब भी सरकार को लगता है कि किसी की कोई बात सत्ता के लिए खतरा बन सकती है तो वह अपनी ताकत का दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने के लिए हमेशा करती आई है.
जवाब देंहटाएंआपने प्रासंगिक विषय उठाया है. विषय और जानकारी अच्छी है.
नयी जानकारी ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
Very informative. Sometimes it is found that 'BAN' is also a part and parcel of 'PUBLICITY'.
जवाब देंहटाएंविचारों पर प्रतिबंध लगाना नामुमकिन सा काम है। सरासर झूठ को भी हम सात पर्दों में बन्द नहीं कर पाते तो सत्य को कैसे छिपाएंगे? लेकिन जिसके पास शासन है उसे अपनी हुकुमत दिखाने का दम्भ भी तो पालना होता है।
जवाब देंहटाएंलगता है ये किताबें बेचने की कला बनती जा रही है ...
जवाब देंहटाएंप्रतिबन्धित पुस्तकें बहुधा अधिक पढ़ी जाती हैं।
जवाब देंहटाएंप्रतिबंध पुस्तकों को लोकप्रिय बनानें के लिये भी लगाये जाते हैं,साहब
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रतिबंध से सच को दबाया नहीं जा सकता...
जवाब देंहटाएंजो ऐसा करते हैं, खुद गुमराह होते हैं.
अभिवयक्ति पर प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए लेकिन विवाद से लोकप्रिय होना भी एक trend बनता जा रहा है...
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र में आवाज़ का दबाया नहीं जाना चाहिए पर हमें सिक्के के दोनों पहलु को देखने का अभ्यास भी करना चाहिए ..कबतक हम केवल अच्छी बातों से मन बहलाए
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