बुधवार, 1 जून 2011

भ्रष्टाचार- Absolute power corrupts absolutely




मुकुट तो गलती नहीं करता


आजकल भ्रष्टाचार पर चर्चा जोरों से चल रही है।  उधर अन्ना साहब एक मोर्चा खोले हुए हैं तो इधर बाबा रामदेव नया मोर्चा खोलने की तैयारी में लगे हैं।  उस पर तुर्रा यह कि ‘राजा’ के बाद अब ‘महाराजा’ का भी नम्बर लग गया है। बेचारे धृतराष्ट्र काला चश्मा चढ़ाए अपनी दुपहिया कुर्सी पर लाचार बैठे हैं, जब कि सत्ता की कुर्सी तो पहले ही छिन गई है। जब सच का सामना करने को कहा गया तो सभी राजा लोग बहरे बने बैठे थे, शायद इसलिए कि

सभी खुदा बहरे होते हैं
इसमें कोई झूठ नहीं,
सच कहने वाले कबीर को
लेकिन कोई छूट नहीं।

उधर उनके साथी भी उनसे मुँह मोड़ने लगे हैं, यही कहते हुए--

अब मुखौटों पर मुखौटे धार कर
फिर चले आए - विश्वासघाती!
अब न हम स्वागत करेंगे।

अब तो पानी सिर से ऊँचा हो गया है।  मुकुटधारी भी तिलकधारियों के इस हट के सामने विवश लग रहे हैं कि क्या करें।  वेद प्रताप वैदिक जैसे चिंतक कह रहे हैं जब देश के एक करोड़ लोग अनशन पर बैठेंगे तो यह सब से बडी अहिंसक घटना होगी। वे यह भी सुझाव दे रहे हैं कि सरकारी कर्मचारियों पर ऐसे कानून लागू हो कि वे समयावधि में अपना कार्य पूरा करें, जिससे किसी को किसी प्रकार की घूस न देनी पड़े।  एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर करते हुए वे बताते हैं कि नोटों के कुल चलन मे ५०० और १००० रुपये के नोटों का हिस्सा ८४ प्रतिशत है! वह भी इस सूरत में कि देश के करोड़ों लोगों की औसत आय २० रुपये प्रति दिन है। देश के बुद्धिजीवी, धार्मिक व सामाजिक कार्यकर्ता चाहे जो भी कह लें पर ....

मुकुट के आगे सभी
             प्रतिपक्ष हैं।
मुकुट में धड़कन कहाँ
             दिल ही नहीं है,
मुकुट का अपना-पराया कुछ नहीं है।

अब यदि मुकुट बहरा भी है, किसी की सुनता भी नहीं और सभी को प्रतिपक्ष ही मानता है तो जनता क्या मूक दर्शक बनी रहे या यही सोच कर भ्रष्टाचार को सहन करती रहे कि----

न्याय राजा का यही है:
रीति ऐसी ही रही है:
मुकुट तो गलती नहीं करता,
केवल प्रजा दोषी रही है।


[साभार - सभी कविता अंश डॉ. ऋषभ देव शर्मा के कविता संग्रह ‘ताकि सनद रहे’ से लिए गए हौ जो कविताकोश पर उपलब्ध है] 

19 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

विचारणीय पोस्ट ......!

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

भ्रष्टाचारी, दुराचारी, अत्याचारी तथैव च.;
मिथ्याचारी, अनाचारी, अधिकारी पंचलक्षणं.

परम प्रभुता परम भ्रष्ट करती है.

सत्यवचन महाप्रभो!

डा० अमर कुमार ने कहा…

सच है..
" मुकुट के आगे सभी
प्रतिपक्ष हैं।"
यदि तुलसीदास ऎसे लोग " समरथ को नहीं दोष गोसाँई " का नो ऒब्जेक्शन पहले जारी कर चुके हों ! राजा को ईश्वर का पर्याय और राजाज्ञा को हरि-इच्छा मानने वाली सँस्कृति में धुर ज़मीन पर टिकी अशिक्षित या अर्धशिक्षित आम जनता हर ज़्यादती को भाग्य का लेखा मान लेती हो । भ्रष्टाचारियों और अत्याचारियों ले लिये हमने स्वयँ ही तो कलियुग नामक का वीटो पावर गढ़ रखा है !

डा० अमर कुमार ने कहा…

ताज़्ज़ुब नहीं कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वालों के अगुआ को हम भगवान का दर्ज़ा देकर उनकी उच्छखृँलता का मार्ग प्रशस्त कर दें । किसी भी सुधार में धार्मिक आवरण बहुत बड़ा धोखा है !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मोर्चों की सरकार में, मोर्चों की दरकार।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

छोटी सी पोस्‍ट ने बहुत सारे मुद्दे समेट लिए हैं।

Suman ने कहा…

बढ़िया लेख के साथ Dr.वृषभ देव जी की
कविताओंसे भी परिचय हुआ !

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

भ्रष्टाचार पर राजनीति की परतें चिपक रही हैं। वह जस का तस है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

चोर, उच्चके, जेबकतरे, गुंडे मवाली सभी तो आज कल राजा बने फ़िरते हे,बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सही विचार प्रस्तुत किये हैं ।

सञ्जय झा ने कहा…

अब मुखौटों पर मुखौटे धार कर
फिर चले आए - विश्वासघाती!
अब न हम स्वागत करेंगे।

yahi hum kahna chahte hain.......

pranam.

G.N.SHAW ने कहा…

काश ये सुधर जाते ! बहुत सुन्दर ..चिंतन

बेनामी ने कहा…

खूब बात कही...
और बेहतर कही...

Arvind Mishra ने कहा…

भ्रष्टाचार तेरे रूप अनेक
कोई तो करे मजबूरी में
किसी को है इसका शौक

SANDEEP PANWAR ने कहा…

आप के हर लेख एक धरोहर के समान है, अब चाहे वो बाबा पर हो बालक पर,

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सार्थक आलेख,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

BrijmohanShrivastava ने कहा…

सर आज कल मुकदमे चलते है उनमें लिखा जाता है स्टेट विरुध्द फलां या शासन विरुध्द फलां । एक जमाना था जब मुकदमों मे क्राउन विरुध्द फलां लिखा जाता था।

Sunil Kumar ने कहा…

ऋषभ देव जी कवितायेँ पढ़वाने के लिए आपका आभार और पोस्ट तो हे ही जोरदार.......

ZEAL ने कहा…

nicely written !