शुक्रवार, 27 मई 2011

स्रवंति-मई २०११ Srawanti-May2011



स्रवंति का मई २०११ अंक अंतरजाल के माध्यम से देखा। आवरण पृष्ठ से ही इस पत्र के स्तर का अनुमान लगा लिया।  आवरण पृष्ठ पर लिपि भारद्वाज द्वारा दिया गया फूल का सुंदर चित्र एकदम ‘बतकम्मा’ त्योहार की याद दिला गया। इस बार सम्पादकीय में डॉ. नीरजा का लेखन तेलुगु के मूर्धन्य साहित्यकार वीरेशलिंगम को समर्पित है।  इस प्रकार के सम्पादकीय से हिंदी पाठकों को तेलुगु रचनाकारों की जानकारी मिलती है।  वीरेशलिंगम जी के इस कथन में तथ्य है कि ‘केवल किताबें लिखकर प्रकाशित करने से कोई लाभ नहीं होता। जिस सत्य को हम मानते हैं उसे धैर्य और साहस के साथ आचरण में रखना अनिवार्य है।’

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी का प्रथम दीक्षांत समारोह भाषण दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के लिए गर्व की बात है, साथ ही यह  भाषण साहित्य जगत की धरोहर भी कहलाएगा। उन्होंने सच ही कहा था कि भारत को छोटे पैमाने पर सारे संसार का नमूना माना जा सकता है क्योंकि यहाँ विभिन्न जातियों, भाषाओं और धर्मों के लोगों का सहअस्तित्व शांतिपूर्ण ढंग से होता रहा है। 

इस वर्ष हिंदी साहित्य के चार सुप्रसिद्ध रचनाकारों की शताब्दी मनाई जा रही है।  इस अंक के माध्यम से अज्ञेय जी की शताब्दी पर सभा में हुई संगोष्ठी की विस्तृत जानकारी डॉ. नीरजा की रिपोर्ट के माध्यम से मिली।  इस कार्यक्रम की सफलता की कहानी यहाँ दिये गए चित्र गा रहे हैं।  इस वर्ष बाबा नागार्जुन की जन्मशताब्दी भी है।  इस अवसर पर प्रो. दिलीप सिंह का लेख नागार्जुन को एक जनकवि ही नहीं एक अच्छे गद्यकार के रूप में भी स्थापित करता है।  जैसा कि उन्होंने कहा कि नागार्जुन की भाषा कोई कठिन साहित्य भाषा न होकर साधारण ‘बतकही’ के ‘कहन’ का पाठ है जिसकी मिसाल ‘बलचनमा’ जैसा उपन्यास है।  प्रो. दिलीप सिंह ने ठीक ही कहा है कि इस तरह का गद्य रचने से नहीं बनता बल्कि बनता है जीवन को काँछ-काँछ कर साफ की गई जमीन को फिर-फिर देखने से।

इस वर्ष शमशेर बहादुर सिंह की जन्मशती भी है। इस संदर्भ में 'धरोहर' के अंतर्गत संकलित आचार्य  रामस्वरूप चतुर्वेदी के लेख ‘शमशेर: गद्य की लय’ में वे यह मानते हैं कि आलोचना के क्षेत्र में प्रायः कविता कम और कवि अधिक विवेचित हुए हैं।  इसीलिए शायद कवि उसकी रचना से अधिक प्रसिद्ध हो जाता है; परंतु शमशेर जैसे बहुत कम रचनाकार हैं जो यह कहते हैं- बात बोलेगी, हम नहीं।

जमींदारों, सामंतों, पटेलों और पूंजीपतियों द्वारा  अपनी भूमि पर कृषि करने के लिए बंधुआ मज़दूरों को एक वर्ष के लिए खरीदा जाता है परंतु कर्ज़ और ब्याज़ से दबे ये मज़दूर जीवन भर दयनीय स्थिति में जीते हैं। इसका जीताजागता उदाहरण पूरन सहगल के लेख में मिलता है जो इस अंक में संकलित है।

आशा है कि प्रो. वेंकटेश्वर जी के उस सुझाव को कार्यान्वित किया जाएगा जिसमें उन्होंने ‘अज्ञेय’ पर विशेषांक निकालने की बात कही है।

‘स्रवंति’के सफल प्रकाशन के लिए संकल्पबद्ध  सह-सम्पादक डॉ.जी. नीरजा को एक और संग्रहणीय अंक निकालने के लिए बधाई। समस्त सम्पादक मंडल का यह प्रयास स्तुत्य है।  इसे अंतरजाल पर ‘srawanti.blogspot.com'  पर भी देखा जा सकता है।  

15 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

पत्रिका की जानकारी के लिए धन्यवाद.

Suman ने कहा…

स्रवंति पत्रिका की जानकारी के लिए धन्यवाद !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहले भेजी गयी लिंक खुल नहीं रही थी, अब जाकर पढ़ते हैं।

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

बढिया है।

virendra sharma ने कहा…

बेहद सटीक ग्रन्थ समीक्षा .आभार .

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लगा अब लिंक पर जा कर देखते हे. धन्यवाद

Arvind Mishra ने कहा…

‘स्रवंति’के सफल प्रकाशन par प्रो. ऋषभ देव शर्मा तथा सम्पादक डॉ. नीरजा को बधाई।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी दी आपने इस पत्रिका के बाबत ..... आभार

केवल राम ने कहा…

‘स्रवंति’के सफल प्रकाशन के लिए संकल्पबद्ध सह-सम्पादक डॉ.जी. नीरजा को एक और संग्रहणीय अंक निकालने के लिए बधाई।

डॉ.जी. नीरजा जी को मेरी तरफ से भी हार्दिक बधाई ......आशा है इनकी पत्रिका साहित्य , समाज और संकृति को नए आयाम देगी ....आपका आभार इस जानकारी के लिए ..!

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

स्रवंति पत्रिका की जानकारी के लिए धन्यवाद !

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

स्रवंति का साइट देखा। वहां पत्रिका की सामग्री भी उपलब्ध हो जाती तो बढ़िया था!

G.N.SHAW ने कहा…

प्रसाद जी प्रणाम बहुत ही सुन्दर सूचना दी आपने!

कविता रावत ने कहा…

स्रवंति पत्रिका की जानकारी के लिए धन्यवाद!!

Vivek Jain ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी

- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

ZEAL ने कहा…

Thanks for this info.