शनिवार, 9 अप्रैल 2011

सलमान रुश्दी- Salman Rushdie


भारतीय मूल के अंतरराष्ट्रीय लेखक- सलमान रुश्दी 


सन्‌ १९४७ ई. में मुम्बई में जन्में  सलमान रुश्दी अपने अंग्रेज़ी उपन्यासों के माध्यम से अंतरराष्ट्रिय ख्याति प्राप्त कर चुके हैं।  उनका दूसरा उपन्यास ‘मिडनाइट चिल्ड्रन’ भारतीय पृष्ठभूमि में लिखा गया था और इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली थी।  अपने जीवन के कठिनतम दौर से उन्हें उस समय गुज़रना पड़ा जब उनका पाँचवा उपन्यास ‘द सेटेनिक वर्सेस’ उनके जीवन का जंजाल बन गया।  जब कभी इस पर उनसे कोई बात करता है तो वे कहते हैं कि वो उस दौर को भूलना चाहते हैं और आगे के लेखन पर अपनी उर्जा लगाना चाहते हैं।

सलमान रुश्दी ने अपने साढ़े छः दशक के जीवन में चार शादियाँ कीं पर शायद उन्हें वैवाहिक जीवन रास नहीं आया।  पहले उन्होंने क्लारिया लॉर्ड से, फिर मारियान विग्गिन से, फिर एलिज़ाबेथ वेस्ट से और अंत में भारतीय मूल की पद्मा लक्ष्मी से विवाह किया; परंतु उनका कोई भी स्थाई जीवन साथी नहीं बन सका।

सलमान रुश्दी ने अपने पुत्र के लिए एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक है ‘हरून एण्ड द सी ओफ़ स्टोरीज़’। उन्होंने बाल-कहानियाँ ‘एलिस इन वंडर लैंड’, ‘पीटर पैन’ ‘विन्नी द पू’ जैसी पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा है कि वे यह मानते हैं कि बच्चों के लिए लिखी हर पुस्तक बड़ों को भी रोचक लगती है क्योंकि हर मनुष्य में कहीं न कहीं उसका बच्चा व बचपन जीवित रहता हैं।  


11 टिप्‍पणियां:

  1. .

    @-क्योंकि हर मनुष्य में कहीं न कहीं उसका बच्चा व बचपन जीवित रहता हैं।

    so true !

    But unfortunately I'm a born octogenarian.

    .

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  2. बहुत ही बढ़िया लेखक हैं.
    ‘मिडनाइट चिल्ड्रन’ अच्छी पुस्तक लगी.
    आपका आभार परिचय करवाने के लिए.

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  3. सलमान रश्दी एक लेखक हैं और इसके लिए पूर्ण सम्मान के हकदार भी, परन्तु भारतीय पृष्ठ भूमि पर उनकी निष्ठां संदेहपूर्ण है

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  4. हर लेखक में एक क्रन्तिकारी छुपा रहता है ।

    जन्मदिन की विलंबित बधाई और शुभकामनायें स्वीकारें प्रशाद जी ।

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  5. हर मनुष्य में कहीं न कहीं उसका बच्चा व बचपन जीवित रहता हैं।

    जैसे मुझमें और आप में :)

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  6. लेखक अच्छा है, मगर इंसान अच्छा नहीं ठीक एम् ऍफ़ हुसैन की तरह , कलाकार अच्छा है मगर इंसान अच्छा नहीं ! so I don't like both of them.

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  7. सलमान रश्दी जी पर अच्छा आलेख...

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  8. मेरे विचार से हमे लेखक, चित्रकार के व्यक्तिगत जीवन में नहीं झांकना चाहिए। हम इनमें साधू ढूँढने लगते हैं जबकि ये भी इंसान ही होते हैं। उनकी महान कृतियों के आगे व्यक्तिग कमियाँ माने नहीं रखतीं यदि वे कानून के दायरे में हों।

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आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।