शनिवार, 26 दिसंबर 2009

पहला कौमी तराना



भारत सरकार [संस्कृति मंत्रालय] द्वारा प्रकाशिन ‘संस्कृति’ पत्रिका के नवीनतम [१६वें] अंक में डॉ. दरख़शाँ ताजवर कायनात के लेख ‘भारतवर्ष का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और उर्दू’ के लेख से उद्धृत:



जिस समय प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था उस समय पहला कौमी तराना लिखा गया जिसे नाना साहब के सहयोगी अज़ीमुल्लाह खाँ ने लिखा था। यह तराना उस समय के अखबार ‘पयामे-आज़ादी’ में प्रकाशित हुआ, जिसमें १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित साहित्य प्रकाशित होता था। यह तराना ब्रिटिश म्यूज़ियम लन्दन में सुरक्षित है। इस तराने के कुछ शेर प्रस्तुत हैं :-

हम हैं इसके मालिक हिन्दोस्तां हमारा
पाक वतन है कौम का जन्नत से भी प्यारा
कितना कदीम कितना नईम सब दुनिया से न्यारा
करती है ज़रखेज़ जिसे गंगोजमन की धारा
इसकी खानें उगल रही हैं सोना हीरा पारा
इसकी शानों शौकत का दुनिया में जैकारा
आया फ़िरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा
आज शहीदों ने है तुमको अहले वतन ललकारा
तोड़ गुलामी की ज़ंजीरें बरसाओ अंगारा
हिंदू मुसलमाँ सिख हमारा भाई-भाई प्यारा
ये है आज़ादी का झण्डा इसे सलाम हमारा

साभार: संस्कृत पत्रिका, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार

11 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदू मुसलमाँ सिख हमारा भाई-भाई प्यारा
    ये है आज़ादी का झण्डा इसे सलाम हमारा


    बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....

    आपका आभारी हूँ .....

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  2. हम हैं इसके मालिक हिन्दोस्तां हमारा
    पाक वतन है कौम का जन्नत से भी प्यारा
    बहुत सुंदर लग यह कोमी गीत...
    पाक यानि पबित्र वतन है ओर हमे जन्न्त से भी प्यारा
    आप का बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. हिंदू मुसलमाँ सिख हमारा भाई-भाई प्यारा
    ये है आज़ादी का झण्डा इसे सलाम हमारा

    बहुत सामयिक प्रस्तुति है, प्रशाद जी।
    आज इसी भावना की सख्त ज़रुरत है।

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  4. सलाम करता हूँ ऐसे जज्बो को ।

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  5. आभार इसे प्रस्तुत करने का....

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  6. रचना पुराणी है पर बेहद दिलचस्प है। देशप्रेम हर युग में कविता के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। धन्यवाद ।

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आपके विचारों का स्वागत है। धन्यवाद।