चुगली से सब में ये लगाए आँच
मिलकर इसको मारो जूते पाँच॥
चुगली करने वाले को कोई पसंद नहीं करता। चुगलीखोर तो इतना खतरनाक भी हो सकता कि वह अच्छे खासे दोस्तों में लडाई करा दे, राजाओं के बीच जंग छिडा दे। एक ऐसे ही चुगलची का मकबरा एटावा नगर के बाहरी क्षेत्र में फ़रूखाबाद-कन्नौज राजमार्ग पर है जिस पर जाकर आज भी लोग पांच जूते मार कर पुण्य कमाते हैं। अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी के मोहम्मद मन्सूर ने अपने साथियों के साथ इस मकबरे पर जाकर पाँच जूते मारे और अखबार की सुर्ख़ियों में आए!
कहा जाता है कि यह एक दरबारी विदूषक भोला सैयद का मकबरा है जो राजा सुमेर सिंह चौहान के दरबार में रहा करता था। अपनी चुगली की आदत से मजबूर और धन की लालच में उसने एक बार पडोसी अतेर के राजा [भिंड] के दरबार में जाकर यह कहा कि राजा सुमेर सिंह चौहान की सेना उनके राज्य पर हमला करने वाली है। उधर राजा सुमेर सिंह चौहान को बताया कि अतेर के राजा उन पर हल्ला बोलने की तैयारी में है। दोनों के बीच लडाई होना ही था कि उन्हें भोला सैयद की चुगली का पता चल गया। सैयद को यह सज़ा दी गई कि उसे जूतों से तब तक मारा जाय जब तक वह मर नहीं जाता।
भोला सैयद के मरने के बाद उसे जहाँ दफ़नाया गया वहाँ एक गुम्बद भी बनाया गया और यह फ़रमान जारी हुआ कि वहाँ आनेवाला हर राहगीर उसके मकबरे पर पाँच जूते मारेगा और पुण्य का भागीदार होगा। वैसे तो, अब इस मकबरे के गुम्बद की खस्ता हालत है और वहाँ कोई चौकीदार भी नहीं रहता परंतु अब भी लोग वहाँ जाकर पांच जूते मारते है और अपनी मुराद पूरी करते हैं।
कहा जाता है कि यह एक दरबारी विदूषक भोला सैयद का मकबरा है जो राजा सुमेर सिंह चौहान के दरबार में रहा करता था। अपनी चुगली की आदत से मजबूर और धन की लालच में उसने एक बार पडोसी अतेर के राजा [भिंड] के दरबार में जाकर यह कहा कि राजा सुमेर सिंह चौहान की सेना उनके राज्य पर हमला करने वाली है। उधर राजा सुमेर सिंह चौहान को बताया कि अतेर के राजा उन पर हल्ला बोलने की तैयारी में है। दोनों के बीच लडाई होना ही था कि उन्हें भोला सैयद की चुगली का पता चल गया। सैयद को यह सज़ा दी गई कि उसे जूतों से तब तक मारा जाय जब तक वह मर नहीं जाता।
भोला सैयद के मरने के बाद उसे जहाँ दफ़नाया गया वहाँ एक गुम्बद भी बनाया गया और यह फ़रमान जारी हुआ कि वहाँ आनेवाला हर राहगीर उसके मकबरे पर पाँच जूते मारेगा और पुण्य का भागीदार होगा। वैसे तो, अब इस मकबरे के गुम्बद की खस्ता हालत है और वहाँ कोई चौकीदार भी नहीं रहता परंतु अब भी लोग वहाँ जाकर पांच जूते मारते है और अपनी मुराद पूरी करते हैं।
[इंडिया टुडे के ७ दिसम्बर अंक से साभार]
वाह कितने भले व आज्ञाकारी हैं हम लोग ...
जवाब देंहटाएंकि आज भी जूतमपैजार कर रहे हैं मजार पर.
वाह.
फ़िर बुश को दो ही क्यो मारे, उसे भी पांच मारने थे ना:)
जवाब देंहटाएंयह सब बकवास बात है, लेकिन जुते वालो की बिक्री खुब होती होगी
भाई माना पड़ेगा , मान्यता तो बहुत बढ़िया है ।
जवाब देंहटाएंशायद यहीं से उपरोक्त कहावत भी चली होगी? आपने बढिया जानकारी दी है, अब कभी उधर से आते-जाते देखेंगे भी, आभार
जवाब देंहटाएंबिल्कुल नई बात पता चली !!
जवाब देंहटाएंकहावत सुनी थी..इस मकबरे के बारे में आज जाना.
जवाब देंहटाएंअगर ऐसा ही प्रथा होती तो हमारे देश मे बहुत से मकबरे बनाने पड़ते.. हाहाहा ।
जवाब देंहटाएंनारायण...नारायण...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बिल्कुल नई बात पता चली .....और बहुत बढ़िया लगी यह पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंविअसे भी जूतम पैजार में तो हम हमेशा ही आगे रहें हैं .........अब समझ आया कि ट्रेनिंग कैसे मिली होगी?
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी है यह तो। मकबरा देखना पड़ेगा भाई!
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी. भोला सैयद नाम से लगता है बड़े सेकुलर टाइप थे ये. सही भी है. जो सबकी चुगली कर सकता हो, उससे सेकुलर और कौन हो सकता है? आर्किओलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इस मकबरे को अपने अधीन नहीं लिया क्या? अगर नहीं लिया हो तो एक पेटीशन कर दिया जाय?
जवाब देंहटाएंजय हो इस महत्त्व पूर्ण आलेख पर कोई कापी राईट की गंभीर शर्तें न हो तो मैं इसकी छाया प्रतियां बांटना /नोटिस बोर्ड पर चस्पा करना चाहता हूँ ?
जवाब देंहटाएंकोई भी काम करें मन लगाकर करें ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे ।
हा-हा-हा, प्रसाद जी कहाँ कहाँ से ढूंढ निकाल लाते है आप, बहुत मजेदार जानकारी !
जवाब देंहटाएंआप कहाँ से इस चुगलीचर्चा में चोंच मारने पहुँच गए? अब देखिये हमें भी जूते जमाने आना पड़ा न!
जवाब देंहटाएंचुगलखोर की सज़ा तो सही है।
जवाब देंहटाएंपर अब किसको जूते मार रहे हैं लोग ?
आदरणीय काजल कुमार जी, राज भाटिया जी, मिथिलेश दूबे जी, संगीता पुरी जी, ललित शर्माजी, समीरलाल जी, शरद कोकास जी, खुशदीप सहगल जी, प्रवीण त्रिवेदी जी, महफूज़ अली जी, अनूप शुक्ल जी, शिवकुमार मिश्र जी, गिरीश बिल्लोर मुकुल जी, विवेक सिंह जी, पी.सी. गोदियाल जी, ऋषभ देव शर्मा जी तथा डॊ. टी एस दराल जी, आप सब का आभार कि आप लोगों ने टिप्पणी करने का भार उठाया। बहुत बहुत धन्यवाद॥
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