tag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post469593229660583971..comments2024-03-17T19:07:52.863+05:30Comments on कलम: भ्रष्टाचार और साहित्यचंद्रमौलेश्वर प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-28554537917311325452011-09-10T12:05:31.879+05:302011-09-10T12:05:31.879+05:30सर,
रहने दीजिए इस विषय को, इसका खुलासा हुआ तो ब्ला...सर,<br />रहने दीजिए इस विषय को, इसका खुलासा हुआ तो ब्लाग जगत के भी कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगे, जिनका काम ही पूरे दिन लाग लपेट करना है। <br />हैरानी तो इस बात पर हुई कि जिसे सब लोग जानते हैं कि वो क्या क्या नहीं करते हैं, वो भी सीना तान के अन्ना के पीछे खडे होकर अपनी कमीज अन्ना से भी ज्यादा सफेद दिखाने में लगे रहे। <br /><br />बहुत बहुत आभारमहेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-36699911977722293652011-09-09T14:01:09.641+05:302011-09-09T14:01:09.641+05:30कडुवा सत्य है ये ... वैसे साहित्य ही क्या हर विषय,...कडुवा सत्य है ये ... वैसे साहित्य ही क्या हर विषय, कला, समाज में ये इर्षा, द्वन्द गुटबाजी, प्ररिस्पर्धा रहती है ... ये सच है की यह अच्छी बात नहीं ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-39873932028282209792011-09-03T20:44:38.678+05:302011-09-03T20:44:38.678+05:30सच लिखा है आपने । आज साहित्य में भ्रष्टाचार दिख र...सच लिखा है आपने । आज साहित्य में भ्रष्टाचार दिख रहा है । आलेख अच्छा लगा। धन्यवाद ।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-25291060199857105342011-09-03T16:44:55.533+05:302011-09-03T16:44:55.533+05:30जब आँखे इस तरह की विडम्बनाओं को देखने लगती है तो ,...जब आँखे इस तरह की विडम्बनाओं को देखने लगती है तो , मन में जीने का सबसे कारगर व प्रभावी मंत्र - कर्म करते रहना व फल की चिंता न करना .. बार-बार आने लगता है. आशा है कि इस संक्रमण काल से जल्द ही बाहर निकल आये - हमारा साहित्यAmrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-41173386017094359002011-09-03T14:27:23.346+05:302011-09-03T14:27:23.346+05:30सही फरमाया आप ने ! आज -कल ऐसा ही हो रहा है - वह भी...सही फरमाया आप ने ! आज -कल ऐसा ही हो रहा है - वह भी १००%G.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-37097928705906789022011-09-02T23:56:48.597+05:302011-09-02T23:56:48.597+05:30'ज़ेन' साधना पद्धति में ध्यान करने की पद्ध...'ज़ेन' साधना पद्धति में ध्यान करने की पद्धति है कि प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाकर लक्ष्य को इस तरह भेदना कि अपने-आप ही तीर लक्ष्य को भेदे. चाहकर या अभ्यास से नहीं. जिस तरह इस बात को 'ओशो' सरल भाषा में समझा सकते हैं. उसी तरह आपने 'साहित्य में भ्रष्टाचार' विषय पर सरल भाषा में अपनी कलम चलाई है. <br />क्षमा करें मैं आपकी तुलना 'ओशो' से नहीं कर रहा हूँ. आपकी सरल भाषा, सरल शब्दावली पर कहने की इच्छा हुई तो ओशो याद आए. <br />आपके द्वारा प्रत्यंचा पर रखे गए 'तीर' लक्ष्य को अवश्य भेदेंगे. अपने आप. और,यही साहित्य साधना की पद्धति भी है. <br />जहाँ साधारण (प्रतिभावान) लेखक अर्थात बिना किसी 'भाई' वाला, माई बाप वाला लेखक, अपनी उपेक्षा का शिकार होता है तो उसकी पीर को देख कोई तो सहृदयी अपनी कलम उठा लेता है परशुराम की परशु की तरह.<br />अगली किश्तों की प्रतीक्षा रहेगी......डॉ.बी.बालाजीhttps://www.blogger.com/profile/10536461984358201013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-34691970782933708192011-09-02T23:56:48.346+05:302011-09-02T23:56:48.346+05:30'ज़ेन' साधना पद्धति में ध्यान करने की पद्ध...'ज़ेन' साधना पद्धति में ध्यान करने की पद्धति है कि प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाकर लक्ष्य को इस तरह भेदना कि अपने-आप ही तीर लक्ष्य को भेदे. चाहकर या अभ्यास से नहीं. जिस तरह इस बात को 'ओशो' सरल भाषा में समझा सकते हैं. उसी तरह आपने 'साहित्य में भ्रष्टाचार' विषय पर सरल भाषा में अपनी कलम चलाई है. <br />क्षमा करें मैं आपकी तुलना 'ओशो' से नहीं कर रहा हूँ. आपकी सरल भाषा, सरल शब्दावली पर कहने की इच्छा हुई तो ओशो याद आए. <br />आपके द्वारा प्रत्यंचा पर रखे गए 'तीर' लक्ष्य को अवश्य भेदेंगे. अपने आप. और,यही साहित्य साधना की पद्धति भी है. <br />जहाँ साधारण (प्रतिभावान) लेखक अर्थात बिना किसी 'भाई' वाला, माई बाप वाला लेखक, अपनी उपेक्षा का शिकार होता है तो उसकी पीर को देख कोई तो सहृदयी अपनी कलम उठा लेता है परशुराम की परशु की तरह.<br />अगली किश्तों की प्रतीक्षा रहेगी......डॉ.बी.बालाजीhttps://www.blogger.com/profile/10536461984358201013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-12901826214404016062011-09-02T21:54:11.478+05:302011-09-02T21:54:11.478+05:30बिलकुल सही कहा है सार्थक पोस्ट
सहमत हूँ आपसे !
आभा...बिलकुल सही कहा है सार्थक पोस्ट<br />सहमत हूँ आपसे !<br />आभार बढ़िया प्रस्तुती के लिये !Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-9003945464393235522011-09-02T18:03:40.704+05:302011-09-02T18:03:40.704+05:30साहित्य जुगाली करने में मगन है . देखते जाईये कितना...साहित्य जुगाली करने में मगन है . देखते जाईये कितना कुछ निकलता है.Mirchiya Manchhttps://www.blogger.com/profile/08396618399644760256noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-21843188511612974192011-09-02T09:53:35.902+05:302011-09-02T09:53:35.902+05:30मानसिक रूप से व्याधिग्रस्त व्यक्ति ही गुटबाजी में ...मानसिक रूप से व्याधिग्रस्त व्यक्ति ही गुटबाजी में लिप्त होता है अन्यथा -"चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग"ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-64605091955020858142011-09-02T07:51:43.959+05:302011-09-02T07:51:43.959+05:30साहित्यकारों की यह शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति उन्हें दे...साहित्यकारों की यह शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति उन्हें देश समाज के हाशिये पर ला दे रही है .....वे अप्रासंगिक हो चुके हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-22406511970314487152011-09-02T06:37:08.663+05:302011-09-02T06:37:08.663+05:30जब तक साहित्य को भ्रष्टाचार की पीड़ा से भी नहीं जो...जब तक साहित्य को भ्रष्टाचार की पीड़ा से भी नहीं जोड़ा जायेगा, समाज का रूप पूर्णतया सामने नहीं आयेगा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-2350800867406964082011-09-02T04:44:00.536+05:302011-09-02T04:44:00.536+05:30सच है यही हाल ....बेहद विकट स्थिति है..सच है यही हाल ....बेहद विकट स्थिति है.. डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-82900189782415114982011-09-02T00:03:08.250+05:302011-09-02T00:03:08.250+05:30दिया तुम जलाओ हंडा हम जलाएं
मिलकर दुनिया को हम जगम...दिया तुम जलाओ हंडा हम जलाएं<br />मिलकर दुनिया को हम जगमगाएंAyaz ahmadhttps://www.blogger.com/profile/09126296717424072173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-54208307735269449772011-09-01T23:29:39.917+05:302011-09-01T23:29:39.917+05:30चिन्तन योग्य आलेख....चिन्तन योग्य आलेख....Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-83297087841054784502011-09-01T23:04:21.073+05:302011-09-01T23:04:21.073+05:30सांस्कृतिक गिरावट का दौर है....क्या कहूं...
बहुत स...सांस्कृतिक गिरावट का दौर है....क्या कहूं...<br />बहुत संवेदनशील चिंतन है...इस सार्थक लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।Dr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-44338279840558223092011-09-01T22:39:14.135+05:302011-09-01T22:39:14.135+05:30मैँ भी बहुत दिनोँ से इस मुद्दे पर विचार कर रहा था ...मैँ भी बहुत दिनोँ से इस मुद्दे पर विचार कर रहा था । आपने कई कटु सत्य सामने रखा ,आभार आपका ।Mithilesh dubeyhttps://www.blogger.com/profile/14946039933092627903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-23422037061368643322011-09-01T18:32:46.796+05:302011-09-01T18:32:46.796+05:30बहुत सही फ़रमाया है ।
साहित्यकार भी इसी समाज का हि...बहुत सही फ़रमाया है । <br />साहित्यकार भी इसी समाज का हिस्सा हैं । असर तो पड़ेगा ही । महज साहित्यकार होने से भ्रष्टाचार से इम्युनिटी नहीं मिल जाती । आखिर चरित्र ही काम आता है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-44861469090076108902011-09-01T14:26:24.268+05:302011-09-01T14:26:24.268+05:30क्या करे , दुर्भाग्यवश ऐसा ही है सर जी, और सिर्फ ...क्या करे , दुर्भाग्यवश ऐसा ही है सर जी, और सिर्फ साहित्यिक-मौद्रिक-पुरुष्कार भ्रष्टाचार ही नहीं अपितु हर क्षेत्र में! जो इनकी जयजयकार करे, उसके लिए ही धनकुबेर और मान-सम्मान के दरवाजे खुले है ! अब देखिये न जब तक बाबा रामदेव कौंग्रेस के लिए ख़तरा नहीं था, तब तक कुछ भी कर लो सब माफ़ ( थोडा बहुत इनको देकर) और अब हमारा इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट क्या चुस्त नजर आ रहा है, हसन अली को भी मात दे दी ! बस यही कहूंगा इन गंदी राजनीति करने वालों का सत्यानाश हो !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-20684344417201512042011-09-01T12:49:00.775+05:302011-09-01T12:49:00.775+05:30आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है। वर्तमान में दो प...आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है। वर्तमान में दो प्रकार के साहित्यकार हैं, एक वे जो हिन्दी शिक्षण से जुड़े हैं और दूसरे वे जो विभिन्न विधाओं में शिक्षित हैं लेकिन हिन्दी साहित्य की रचना कर रहे हैं। जब हिन्दी शिक्षण नहीं था तब एक ही प्रकार का साहित्यकार होता था, अर्थात जो भी व्यक्ति लिखता था वह साहित्यकार। उससे यह नहीं पूछा जाता था कि तुम्हारे पास डिग्री क्या है? <br />आज जो हिन्दी शिक्षण से जुड़े लोग आलोचक बन गए हैं और ये आलोचक ही तय करते हैं कि कौन साहित्यकार और कौन नहीं। बस यही से गुटबाजी प्रारम्भ होती है। अर्थात साहित्य का विद्यार्थी या शिक्षक यह तय करता है कि साहित्यकार कौन है? ये लोग ही तय करते हैं कि किसे पुरस्कार मिलना चाहिए और किसे नहीं।<br />दूसरा पहलू आपने लिखा है कि लोग अपनों को रेवड़ियां बांटते हैं। असल में साहित्य में इतनी रेवडिया हैं और मांगने वाले भी ढेर हैं तो मांगने वालों की पहुंच बांटने वाले तक होती है। इन पदों पर बैठे लोगों से ये सम्बंध बनाकर रखते हैं और लाभ पाते हैं। क्योंकि उसे भी तो कार्यक्रम देने हैं। <br />मेरा अनुभव यह है कि आज प्रत्येक लेखक केवल पुरस्कार के लिए लिख रहा है। एक किताब लिखी नहीं कि पुरस्कार की दौड़ में निकल जाता है। इसलिए उसे कहाँ समाज और देश की चिन्ता का समय है? बहुत सारे प्रश्न है इस जगत में, लेकिन उत्तर कहीं नहीं है। लेकिन आपने सटीक विश्लेषण किया है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2812607268812599233.post-74429086770129740902011-09-01T12:48:59.762+05:302011-09-01T12:48:59.762+05:30एक कटु सत्य को बड़ी बेबाकी से प्रस्तुत किया है आपन...एक कटु सत्य को बड़ी बेबाकी से प्रस्तुत किया है आपने....<br />सच में इस तरह की खेमेबाजी, गुटबाजी किसी भी साहित्य की समर्द्धि के लिए शुभ संकेत नहीं हो सकते हैं..<br />गहन चिंतन-मननशील प्रस्तुति के लिए आभार..<br />गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायेंकविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.com